" कित्ते में " मोहन बाबू ने इशारे से पूछा । सड़क पर खड़ी औरत ने उँगलियों से बताया -- पाँच !!!
मोहन बाबू मोल भाव पर उतर आए । फिर से इशारा किया -- " तीन "
औरत शायद जल्दी में थी । उसने पास आकर कहा " ठीक है बाबू , पर घ॔टे भर में छोड़ देना ।"
" क्यों और कित्ते निपटाएगी रात भर में ।" मोहन बाबू निर्लज और संवेदनहीन होकर बोले ।
"जितने बन पड़ें " " ज्यादा से ज्यादा " औरत ने बिना बुरा माने तटस्थ भाव से कहा और दोनों ने पास के होटल की राह पकड़ी ।
औरत के इतने संयमित और दो टूक उत्तर को मोहन बाबू हजम नहीं कर पा रहे थे । कदाचित उनके मन में ये भाव था कि वो औरत उनके सामने रोएगी या गिड़गिड़ाएगी या दो चार तीखे कटाक्ष ही करेगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था ।
घंटे भर बाद मोहन बाबू के मन में जाने क्या आया कि तीन की जगह पाँच पकड़ा दिए । बोले " चल जा ऐश कर "
"नहीं कर सकती " औरत ने साड़ी लपेटते हुए फिर सपाट सा उत्तर दिया ।
अब तो मोहन बाबू भन्ना गए , चिढ़ कर बोले " तो रात भर रकम बटोर कर क्या सुबह आचार डालेगी ?"
इस बार औरत ने थोड़ी सी हिचकिचाहट से बड़ी दर्दीली मुस्कुराहट के साथ उत्तर दिया "नहीं साब" कल मेरे पति की आखिरी "कीमो" है ( कैंसर के मरीजों को दी जाने वाली थैरेपी ) "मैं चाहती हूँ इस करवा चौथ तक तो वो मेरे साथ रह ही जाए" , "अगले बरस का क्या भरोसा" "फिर तो आप बाबू लोगों का ही सहारा है ।"
किंकर्तव्यविमूढ़ से मोहन बाबू उसकी कर्तव्य निष्ठा के आगे नतमस्तक हो गए थे ।
✍️ सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद ।
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