गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----सांड दादा


महानगर मेंं एक व्यापारी की मृत्यु के बाद जनता के शोर मचाने पर नगरनिगम ने सांड पकड़ने का अभियान शुरू किया।भूरा सांड  जोअपने क्षेत्र मे पेड़ के नीचे पड़ा पड़ा आराम करता था आज अपनी जान बचाने के लिए भागा भागा घूम रहा था।हाफँते हुए एक गली मे घुसा जहाँ गाडी़ नहीं जा सकती थी।देखा एक दीवार के पीछे कालु दादा छिपे थे लम्बी लम्बी साँसें ले रहे । भूरा बोला ," दादा आप भी ?"कालू बोला भाई सुबह से जान पर बन आयी है।भागते भागते थक गया हूं।भाई एक बात बताओ कि हमेंं सजा क्यों दी जा रही है?हमने क्या किया । उस गुस्सैल हीरा के कारण हम सबकी जान पर बन आयी है।"

साँस जब काबू मेंं आयी तब भूरा बोला,"दादा हमेंं भी विरोध करना चाहिए।एक की सजा सबको क्यों मिले?ये इंसान कितने विचित्र है खुद रोज एक दूसरे की जान लेते है और आजाद घूमते है ।हमारे एक साथी ने चोट खाने के बाद हमला किया।हमारी पूरी बिरादरी के पीछे पड़ गये।सुबह से कुछ खाने को भी नही मिला भाग भाग कर दम निकल रहा है।बस बहुत हुआ अब नही डरेगे"।भूरे सांड की बात पूरी भी नही हुई थी कि सरकारी गाड़ी का होर्न सुनाई दिया और भूरा और कालू बात छोड़ जान बचाने को विपरीत दिशा मेंं दौड़ पड़े ।

✍️ डा श्वेता पूठिया, मुरादाबाद


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