नन्दिता ने अपनी दोनों बेटियों का पालन पोषण अच्छी तरह किया।अनेक बार पति की डाँट खाकर भी उनकी इच्छाओं को पूरा किया।बडी बेटी दीपशिखा को इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करवायी हर बात मे उसका मान रखा।छोटी बेटी विदिशा पढाई मे औसत थी मगर फिर भी बी एड कर एक स्थानीय स्कूल मे शिक्षिका का कार्य करने लगी।मगर दोनो के वेतन मे बहुत अतंर था। दीपशिखा का विवाह हुआ।सब बहुत खुश थे।मगर ये खुशियाँ ज्यादा देर न रही।शादी की पहली वर्षगांठ के कुछ दिनों बाद गर्भवती दीपशिखा को उसका पति मायके छोड गया।बच्ची एक वर्ष की होगयी।मगर वह न लौटा आया तो तलाक का नोटिस।नन्दिताका रो रो कर बुरा हाल हो गया और उसके पति को हार्टअटैक आ गया।
जैसे तैसे मुकदमा निपटा।
आज कोरोना की मंदी के कारण जब घर मे आमदनी का जरिया न रह तो नन्दिता ने भारी मन से कहा ,"आजतक हमने कुछ नहीं कहा।मगर अब तुम्हारे पापा की तबीयत भी खराब हैऔर आमदनी बंद है।अब तुम दोनों कुछ सहयोग करो"।विदिशा ने कहा,"ठीक है मां आप जैसा कहे।"मगर दीपशिखा बोली,"मां मै कैसे करूँ, मुझे तो अपनी बेटी केलिए भी सोचना है।उसका कल मुझे ही संवारना है।" अपनी बेटी के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर नन्दिता स्तब्ध रह गयी।
✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद
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