गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- सीख

आज भरत पुत्र के साथ हुई बहस के बाद थका हुआ बैठा था।जिस पुत्र वैभव के पालन केलिए उसने क्या नहीं किया।उसकी इच्छाओं को पूरा करनै केलिए गलत ढ़ंग सै पैसा कमाया।उसकी हर ख्वाहिश पूरी की आज वही वैभव "तुमने मेरे लिए किया ही क्या है,"?कहकर उसे छोड गया।
आज उसे अपने पिता की बहुत याद आ रही थी ।एक साधारण मास्टर होते हुए भी  उपके पिता ने उपकी शिक्षा का पूरा ध्यान रखा।मगर साथ के अमीर बच्चों की चीजें देखकर उसकी फरमाइश पर समझाया "बेटा, हमे अपनी आमदनी के अनुसार ही खर्च करना है।तुम पढो जब इतना कमाओ तब खरीदना।इन दिखावटी वस्तुओं पर अनावश्यक व्यय कर हम अपना कल नहीं बिगाडेगे।साथ अपने मन को वश मे रखना सीखो।दुनिया मे अपनी इच्छानुसार सब.कुछ नही मिलता"।उस दिन वह बहुत रोया कि वह इस घर मे क्यों पैदा हुआ।शादी के बाद जब वैभव उसके जीवन मे आया उसने प्रण किया कि वह अपने बेटे की हर इच्छा पूरी करेगा । मगर संयम और धन की उपयोगिता न सिखा पाया।इसीकारण आज और अधिक सुख सुविधाओं को पाने के चक्कर मे वह अपने से अधिक धनवान पत्नी के साथ उसके घर रहने चला गया ।
आज  अपने पिता के प्रति नाराजगी उसकी आँखों से आँसू बनकर बह रही थी।


 ✍️  डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

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