बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- एक सच


मानसी एक प्राइवेट विद्यालय मे शिक्षिका है।वेतन भी ठीक है।पूरा परिवार पढालिखा है।पति भी सरकारी इंजीनियर है।मगर आज मानसी को समझने वाला कोई नहीं।थककर उसने नारी शक्ति केन्द्र को फोनकर मिलने का समय लिया।अध्यक्षा महोदया बोली,"अपनी समस्या बताओ"?मानसी बोली,"मै मां बनने वाली हूँ।मेरी एक बेटी है ।उसके बाद दो बार मेरा मातृत्व छीना जा चुका है।पुत्र की चाह मे मेरे अंश का कत्ल किया जा चुका है।बहुत सी महिला डा. आज भी इस कार्य मे संलग्न है।पर इसबार मै नहीं चाहती कि मेरा मातृत्व मुझ से छीना जाये।अभी वह भ्रूण मात्र है फिर भी मै उससे बहुत प्यार करती हूँ।मन ही मन उसे लोरियाँ सुनाती हूँ।,काजल का टीका लगाती हूँ, मै उसके कोमल स्पर्श कोमहसूस करती हूँ।मैउसे खोना नहीं चाहती।"

अध्यक्षा महोदया बोली,"परिवार से बात की?पति को समझाया?"

मानसी बोली,"जी सब करके थक चुकी हूँ।विरोध पर तलाक देने की धमकी देते है।विधवा मां के अतिरिक्त कोई नहीं है।अब इस उम्र मे इस दुख से वो टूट जायेगी।मेरा भी वेतन इतना नहीं कि सबका काम अच्छे से चल जायेगा।इसीलिए कुछ ऐसा करिए कि परिवार भी बचा रहे और बच्चा भी"।

अध्यक्षा की चुप्पी उसे परेशान कर रही थी।यह सोचकर वह परेशान थी कि पढे लिखे लोगो की सोच ऐसी है तो अनपढों को क्या समझाये मगर फिर  बोली,"डाक्टर के यहाँ कब जाना है"?मुझे फोन कर देना मै वहां मिलूगी।"

मानसी के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

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