शनिवार, 17 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास पर केंद्रित डॉ राजीव सक्सेना का आलेख ---- एक भूला - बिसरा कवि--स्व. मदन मोहन व्यास । यह आलेख उनकी कृति समय की रेत पर ( साहित्यकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर एक दृष्टि ) में संगृहीत है। यह कृति वर्ष 2006 में श्री अशोक विश्नोई ने अपने सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की थी। श्री सक्सेना वर्तमान में प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) , मथुरा हैं ।


यह मेरे नगर की विडम्बना रही है कि इसमें जितने भी साहित्यकारों को जन्म दिया। वे उनमें से अधिकांश उपेक्षित रह गये हैं या फिर विस्मृति के गर्त में डूब गये है। यूं उनके अपवाद भी हैं जैसे जिगर मुरादाबादी एवं हुल्लड़ मुरादाबादी। किन्तु इन अपवादों को छोड़कर शेष की नियति उपेक्षा, निराशा और अपवंचना ही रही है। मुरादाबाद के विस्मृत साहित्यकारों में से एक हैं- स्व० मदन मोहन व्यास। यद्यपि एक समय था जब हर किसी की जुबान पर एक नाम चढ़ा था व्यास जी का, लेकिन अब स्थिति विपरीत है। युवा पीढ़ी में से बहुतेरे तो यह भी नहीं जानते होंगे कि उनके नगर में मदन मोहन व्यास नामक कोई सरस्वती पुत्र भी हुआ था। दरअसल, यह केवल युवा पीढ़ी का दोष नहीं, बल्कि वे कथित साहित्यकार भी दोषी हैं जो अपने आप को व्यास जी के बहुत निकट होने का दम भरते हैं। इन कथित साहित्यकारों ने कभी युवा पीढ़ी को व्यास जी के बारे में या उनके कृतित्व से परिचित कराने की आवश्यकता ही न समझी।

       व्यास जी, जैसा कि सर्वविदित है, मुरादाबाद के प्रसिद्ध व्यास घराने के सदस्य थे। यह परिवार अपनी साहित्य और संगीत साधना के लिए बड़ा प्रसिद्ध रहा है। कई प्रतिभाशाली लोगों ने इस परिवार में जन्म लिया है  जिनमें प्रमुख हैं प्रसिद्ध फिल्मकार व रामकथा के विद्वान श्री नरोत्तम व्यास एवं स्वयं श्री मदन मोहन व्यास। व्यास जी एक उच्च कोटि के कवि और विद्वान अध्यापक थे। साहित्य के अलावा वे संगीत के क्षेत्र में भी दखल रखते थे। एक कवि के तौर पर भी व्यास जी का पदार्पण लगभग उस समय हुआ जब हिन्दी काव्य में छायावादी काव्य रचा जा रहा था। स्पष्ट है कि व्यास जी पर भी छायावाद का प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने जो गीत व कविताएं लिखी उनमें स्वत: ही छायावाद के तत्वों का समावेश हो गया । उनकी कविता में प्रकृति के प्रति अनुराग और रहस्यवाद को स्पष्ट तौर पर  देखा जा सकता है।

   यूँ तो व्यास जी के काव्य में बहुत से गुण और बहुत से तत्व खोजे जा सकते हैं। किन्तु एक तत्व उनकी कविताओं में प्रमुख तौर पर दृष्टि गोचर होता है जो उन्हें अन्य कवियों की अपेक्षा विशिष्टता प्रदान करता है। व्यास जी एक संगीतकार भी थे, अत: उनका संगीतकार व्यक्तित्व उनके कवि व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता था। उनका संगीत स्वत: उनकी कविताओं व गीतों में समाविष्ट हो जाता था। यही कारण है कि उनके सम्पूर्ण काव्य में संगीत तत्व की प्रधानता है जो संगीतात्मकता और गेयता उनकी रचनाओं में है वह अब दुर्लभ है। मैं समझता हूँ कि व्यास जी काव्यात्मक संगीत के मामले में अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवियों शैली और स्विनबर्न के समकक्ष थे।

     व्यास जी से अपनी वार्तालापों के जरिये मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि वे काव्य में छन्दबद्धता के हिमायती थे। वे कहते थे कि काव्य सृजन का असली आनन्द व कवि का प्रयास छन्द में ही निहित है। यद्यपि वे छन्द व काव्य के पक्षधर थे, तथापि अकविता के प्रति भी उनकी अरुचि न थी। जब व्यास जी की जीवन संध्या निकट थी मुझे एक-दो बार उनके श्रीमुख से कुछेक यथार्थवादी कविताएं सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

      कविता के बारे में व्यास जी के विचार बड़े स्पष्ट थे। उनकी मान्यता थी कि काव्य आदमी के अन्दर एक प्रकार का सौंदर्यबोध (एस्थेटिक सेंस) जाग्रत करता है। उनका कहना था कि काव्य में आनन्द लेना और आनन्द के लिए काव्य रचना प्रत्येक सुसंस्कृत व्यक्ति के क्रिया-कलाप का साधारण अंग होना चाहिए। वे कहते थे कि काव्य का प्राथमिक उद्देश्य आनन्द की सृष्टि या मनोरंजन प्रदान करना है, शेष सारे उद्देश्य गौण हैं।

      काम्पटन रिकेट ने एक जगह लिखा है - 'जो शब्दों की दुनिया में प्रविष्ट होता है उसे आजीवन गरीब रहने की प्रतिज्ञा करनी होती है।' अन्य साहित्यकारों की भांति व्यास जी को भी आजीवन संघर्षरत रहना पड़ा। वे संघर्ष करते ही रहे-कभी अपने मूल्यों के लिए तो कभी व्यक्ति और समाज के लिए, जब तक वे स्वयं टूट नहीं गये लेकिन संघर्षमय जीवन को गाकर, हंसी-खुशी काटने में विश्वास रखते थे। प्रसिद्ध कवि बच्चन के अनुसार व्यास जी की मान्यता थी- 'संघर्ष में जुटे हुए, चिंताकुल घड़ियों के भार को हलका करने के लिए, थकान मिटाने के लिए, आगे कार्य करने की प्रेरणा पाने के लिए कुछ गा लिया जाए तो बुरा क्या है। यहीं, इसी तरह से गाना ठीक है। जिन को गाने के सिवा कोई काम नहीं वे मुझे बीमार लगते हैं।

 वे मुझे बीमार लगते हैं निकुंजों

में पड़े जो गीत अपना मिनमिनाते

गीत लिखने के लिए जो जी रहे हैं 

काश, जीने के लिए वे गीत गाते ।

व्यास जी की अपने समकालीन समाज पर तो गहरी पकड़ थी ही वे एक स्वप्नद्रष्टा और दूरदृष्टि सम्पन्न कवि भी थे। जो दलित विमर्श और नारी विमर्श आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रमुख स्वर है व्यास जी ने दशकों पहले अपनी कृति 'हमारी घर' में 'हृदय से दो सब को सम्मान' शीर्षक में उसे अभिव्यक्ति दी है।

 दान दो नहीं चाहिए भीख

सभी को जीने का अधिकार ।

तुम्हारा यह पवित्र कर्तव्य

न समझो इसको तुम उपकार । 

हृदय के सौदे की यह बात

हृदय से दो सब को सम्मान ।

करो श्रम-धन-धरती का दान ।

यह बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि व्यास जी एक सिद्धहस्त बालगीतकार भी थे। उन्होंने रमा शंकर जैटली 'विश्व' के बाद मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले बाल मासिक 'बाल विनोद' का सम्पादन किया था। व्यास जी ने बच्चों के लिए कई सरस बाल गीतों की रचना की थी जो आज भी बालकों को कण्ठस्थ हैं। व्यास जी के गीत प्रवाहमयता और छन्द की दृष्टि से उत्कृष्ट है इसलिए बच्चों को सहज ही याद हो जाते हैं। यद्यपि व्यास जी द्वारा रचित बाल साहित्य आज प्रायः उपलब्ध नहीं हैं किन्तु कतिपय संकलनों में आज भी उनके बाल गीत उपलब्ध हैं।

व्यास जी के बाल साहित्य के प्रति रुझान और उनके योगदान को प्रसिद्ध बाल साहित्यकार निरंकार देव 'सेवक' ने भी स्वीकार किया था और अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'बाल गीत साहित्यः इतिहास एवं समीक्षा' में उनका सम्मान सहित उल्लेख भी किया था। व्यास जी का एक प्रसिद्ध बाल गीत दृष्टव्य है।

"इस मिट्टी के बेटे हम,

 इस मिट्टी पर लेटे हम,

 इस मिट्टी पर बड़े हुए, 

 लोटपोट कर खड़े हुए,

 इसकी आन निभायेंगे,

 इस पर जान गवांयेंगे,

 इसकी सीमाओं के रक्षक,

 वीर जवान जिन्दाबाद।

 हिन्दुस्तान जिन्दाबाद ।"

व्यास जी के दो ही काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं- 'भाव तेरे शब्द मेरे' और 'हमारा घर'। *अब आवश्यकता इस बात की है कि उनकी सभी अप्रकाशित रचनाओं को संकलित कर प्रकाशित किया जाए ताकि युवा पीढ़ी उनसे परिचित हो सके और साहित्य में उन्हें स्थान दिलाया जा सके।


✍️ डॉ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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