'भाव तेरे शब्द मेरे' शीर्षक से व्यास की कविताओं का एक सुन्दर-संग्रह प्रकाशित हुआ है। इसके
'पन्थ बीहड़ अंग जर्जर
पाँव थककर चूर प्रियतम ।'
अपने कर्म के बीहड़ पन्थ को आनन्द से आद्र करने के लिए वे निरन्तर गाते हैं -
इस प्रशान्त जीवन में सुख सन्तोष यही है
तुम मिल जातो हो तो जी बहला लेता हूँ।
तुम मिल जातीं छन्दों के बन्धन खुल जाते
मुक्त पवन में मेरे कवि के स्वर लहराते
मैं चलता हूँ क्योंकि घड़ी पल क्षण भर में ही
तुमसे अपने मन की कुछ कहला लेता हूँ।'
व्यास जी के गीतों को स्थूल रूप से दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। एक आत्मपरक और दूसरे प्रकृति वर्णन सम्बन्धी । उनके आत्मपरक गीतों में अनुभूति और अभिव्यक्ति आवेग की उत्कृष्टतम अवस्था में हैं। कवि का हृदय निरन्तर जीवन की झंझाओं से टकरा-टकराकर कटुता को अपने में समाहित करने में समर्थ हो गया है । उसके अंग-प्रत्यंग में दुख, दैन्य, पीड़ा, टीस, वेदना और व्यथा ने स्थायी रूप से निवास कर लिया है। यही कारण कि प्रेम की संयोग अवस्था में भी उनकी दृष्टि वेदनाओं के अन्वेषण में लगी रहती है। रिमझिम बरसात, सागर की लहरों की क्रीडाएँ, दूर्वादल पर सुप्त ओस कण, सरिता का कलरव गान और श्रंगों के रजत हास आदि प्रकृति के सौंदर्य स्थलों में कवि के व्याकुल हृदय को किसी व्यथित के अश्रुओं का प्रवाह, किसी गम्भीर पुरुष की भावनाओं का अन्तर्द्वन्द, किसी पीड़ित के अन्तःकरण के उच्छवास, आदि का ही आभास होता है। चन्द्रमा की धवल तारिकाएँ एवं सुरभित समीर उसके हर्ष का आलम्बन नहीं बन सकती क्योंकि उसका हृदय शोकाकुल विरह विदग्धों की आहों से परिपूर्ण है चाँदनी रात खिलखिलाती रही:
पर न कोक कोकी ने पाया
मिलने का अधिकार रे
बसा किसी का सद्म किसी का
उजड़ रहा संसार रे
मिला कुमदिनी को सुहाग, पर कमल कोर कुम्हला गई ।
चांद गगन में आया तो चांदनी धरा पर छा गई ।
परिव्याप्त-वेदनाओं से यह नहीं समझना चाहिए कि कवि निराशावादी है । वह अदम्य उत्साही है। उसकी शरीर में जीवन झंझाओं को बरदास्त करने के लिए पवनपुत्र जैसी शक्ति भी अन्तर्हित है-
मैं खड़ा हूँ इस किनारे तुम खड़े प्रिय उस किनारे
बीच में बैठी सलिल-सुरसा भयंकर मार पसारे
पर न है चिन्ता मुझे कुछ वायु-सुत की शक्ति मुझ में पार कर उत्तम लहरें पास पहुंचूंगा तुम्हारे
नयन इंगित ! यान दो लो लांघ-जल अगाध लूं मैं ।
व्यास जी का समस्त श्रङ्गार आस्थावादी है। उनका श्रृंगार भक्तिपरक है। प्रेम का आलम्बन अज्ञात शक्ति है, जो उन्हें सदैव प्रोत्साहित करती है।
तुम मुझे प्रणिधान दो तो अश्म को आराध लूं मैं'
व्यास जी प्रकृति की आलम्बनात्मक कविताओं में अपूर्व चित्रमयता आलंकारिकता एवं संगीतात्मकता प्राप्त होती है। 'स्वप्न' 'मधुमास', 'तितली', 'फूल' आदि कविताओं के माध्यम से एक ओर दार्शनिक अभिमतों की सरस विवेचना तथा जीवन की क्षणभंगुरता, असारता की अभिव्यञ्जना की गई है साथ ही प्रकृति के मनोरम क्रोड़ का बिम्वग्रहण भी है।
कवि के रूप में श्री व्यास जी एक अनुपम स्वर साधक और महान शब्द शिल्पी है। अपनी प्रत्येक रचना में एक एक अक्षर, शब्द प्रौर शब्द चिन्ह के प्रति वे अत्यन्त सावधान है। उनका शब्द-चयन भाव अनुकूल ध्वनि प्रस्फुटित करने में सदैव समर्थ है । अतुकांत रचनाओं में शब्दों का यह संयोग बहुत ही विचित्र गति लय और थिरकन उत्पन्न करता है। अतुकान्त रचनाओं में जो स्थान निराला को प्राप्त है यही व्यास जी को मिलेगा इसमें सन्देह नहीं है।
✍️✍️✍️पंडित ब्रह्म शंकर व्यास
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