कॉलोनी के वाट्स एप ग्रुप पर एक मैसेज आता है। मैसेज भेजने वाली महिला का नाम ताराबाई है । वह लिखती हैं- "मैंने ऑक्सीजन का एक सिलेंडर पिछले एक सप्ताह से खरीद कर रखा हुआ है । सोचा था अगर जरूरत पड़ेगी तो घर पर रखा हुआ यह सिलेंडर काम में आ जाएगा। लेकिन अब सोचती हूं कि मैं तो स्वस्थ हूं लेकिन बहुत से अस्वस्थ लोगों को इस सिलेंडर की जरूरत होगी ।अतः जहां से यह सिलेंडर मैंने लिया है ,वहीं पर इसे वापस लौटाने जा रही हूं । इससे मुझे बहुत हल्का महसूस होगा तथा मौजूदा समय में देश के लिए यह मेरा छोटा - सा योगदान हो जाएगा।"
मैसेज पढ़कर कॉलोनी में सभी के घरों में एक हलचल - सी होने लगी । काफी लोगों ने अपने - अपने घरों पर ताराबाई की तरह ही ऑक्सीजन के सिलेंडर स्टॉक में इसलिए रख रखे थे ताकि जरूरत पड़े तो काम आ जाएँ । रोजाना खबरें आ रही थीं कि ऑक्सीजन की कमी चल रही है। भयंकर मारामारी है। लेकिन अब ताराबाई के मैसेज में सबको सोचने पर विवश कर दिया ।
थोड़ी देर बाद कॉलोनी के एक घर से ताराबाई ऑक्सीजन के सिलेंडर को जमीन पर हाथ से आगे बढ़ाते हुए सबको दिखाई दीं। वह अकेली आगे बढ़ती जा रही थीं। उनका लक्ष्य कॉलोनी के गेट तक पहुंचना था ,जहां से उन्हें एक ई -रिक्शा अथवा ऑटो पकड़ कर अपनी मंजिल तक पहुंचना था । लेकिन इससे पहले कि ताराबाई कॉलोनी के गेट पर पहुंचें, उनके पीछे कॉलोनी की दो और महिलाएं भी ऑक्सीजन के सिलेंडर हाथ से घुमाते हुए आगे बढ़ने लगीं। फिर तो धीरे-धीरे 10 - 12 स्त्री पुरुष अपने-अपने घरों से सिलेंडर निकालकर ताराबाई का अनुसरण करते हुए दिखाई पड़ने लगे ।
ताराबाई एक ऑटो में बैठ कर जब जाने के लिए तैयार हुईं, तो उनके साथ 10- 12 लोग और भी थे । इकट्ठे सब लोग ऑटोकर के चले । जहां से ऑक्सीजन का सिलेंडर लिया था ,वहां पहुंचकर सबने देखा कि 20- 25 लोगों की भीड़ लगी थी । सब ऑक्सीजन के लिए चिंतित थे । जैसे ही ताराबाई ने सब के ऑक्सीजन के सिलेंडर बाहर निकाले तो भीड़ में हलचल मच गई। लोग दौड़कर ताराबाई के पास आए ।
"क्या यह खाली सिलेंडर हैं ? "- पहुंचते ही प्रश्न शुरू हो गए
"नहीं इन सब में ऑक्सीजन भरी हुई है ।
हमें इसकी जरूरत इस समय नहीं है । जब जरूरत होगी तब ले लेंगे । हम लोग इन्हें वापस लौटाने आए हैं।"
"अरे ! हमें तो बहुत सख्त जरूरत है । आप देवता बनकर हमारे लिए आए हैं । हमें सिलेंडर दे दीजिए ! "-यह शब्द किसी एक के नहीं थे। पूरी भीड़ अब सिलेंडरों के आसपास गिड़गिड़ाते हुए मानों दया की भीख मांग रही हो । चटपट 10 - 12 सिलेंडर लोग लेकर चले गए । इसी बीच पीछे से दस-बीस सिलेंडर और आ गये। वह भी कालोनी के लोगों के ही थे। धीरे-धीरे सारी भीड़ को ऑक्सीजन के सिलेंडर मिल गए । कमी खत्म हो गई । अब पीछे से जब 20 - 25 सिलेंडर और आए तब उनको लेने वाला कोई नहीं था । वह भंडार में जमा करा दिए गए । भंडार के बाहर जो तख्ती लटकी हुई थी और जिस पर लिखा था " *ऑक्सीजन का स्टॉक खत्म हो गया है* ", वह हटा ली गई।
भंडार के गेट पर पुलिस के दो सिपाही थे । उनमें से एक कहने लगा " अब किस बात की सुरक्षा ? अब तो गैस खूब आसानी से मिल रही है । "
दूसरे सिपाही ने इत्मीनान से मोबाइल खोलकर समाचार देखना शुरू किया । फिर कहने लगा "अभी भी लोगों के दिमाग में ऑक्सीजन की कमी तो है। "
✍️ रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) , मोबाइल 99976 15451
बहुत सुंदर और सकारात्मक लघुकथा अथवा सत्यघटना। काश! ऐसे ही संदेश और अधिक से अधिक प्रसारित हों जिससे लोग अनावश्यक अपरिग्रह से बच सकें और समाज हित में जरूरतमंदों के लिए लौटाते रहें साथ ही कालाबाजारी पर लगाम लगाने में मदद करें। लेखक को साधुवाद।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏 वर्तमान में ऐसे ही संदेशों को फैलाने की आवश्यकता है ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद डॉ. मनोज रस्तोगी जी
हटाएंरवि प्रकाश ,रामपुर
धन्यवाद नीलम कुलश्रेष्ठ जी
हटाएंरवि प्रकाश, रामपुर
सार्थक कहानी ।साधुवाद ।सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनोरमा शर्मा जी
हटाएंरवि प्रकाश ,रामपुर
🙏🙏🙏🙏🙏
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