बेटियाँ-
शीतल हवाएँ हैं
जो पिता के घर
बहुत दिन तक नहीं रहती
ये तरल जल की परातें हैं
लाज़ की उज़ली कनातें हैं
है पिता का घर हृदय-जैसा
ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं
बेटियाँ-
पावन-ऋचाएँ हैं
बात जो मन की,
कभी खुलकर नहीं कहतीं
हैं तरलता प्रीति- पारे की
और दृढता ध्रुव-सितारे की
कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन
नाव हैं ये उस किनारे की
बेटियाँ-
ऐसी घटाएँ हैं
जो छलकती हैं,
नदी बनकर नहीं बहतीं
✍️ डॉ कुंअर बेचैन
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