शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कुंअर बेचैन का गीत ----बेटियाँ- पावन-ऋचाएँ हैं बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतीं...... यह गीत उन्होंने 11 अप्रैल 1987 को लिखा था ।

                         


 बेटियाँ-

शीतल हवाएँ हैं

जो पिता के घर

 बहुत दिन तक नहीं रहती

ये तरल जल की परातें हैं

लाज़ की उज़ली कनातें हैं

है पिता का घर हृदय-जैसा

ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं

बेटियाँ-

पावन-ऋचाएँ हैं

बात जो मन की, 

कभी खुलकर नहीं कहतीं

हैं तरलता प्रीति- पारे की

और दृढता ध्रुव-सितारे की

कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन

नाव हैं ये उस किनारे की

बेटियाँ-

ऐसी घटाएँ हैं

जो छलकती हैं, 

नदी बनकर नहीं बहतीं

✍️ डॉ कुंअर बेचैन

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