जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने
दादी की हँसुली ने माँ की पायल ने
उस कच्चे घर की सच्ची दीवारों पर
मेरी टाई टँगने से कतराती है !
माँ को और पिता को यह कच्चा घर भी
एक बड़ी अनुभूति, मुझे केवल घटना
यह अन्तर ही सम्बंधों की गलियों में
ला देता है कोई निर्मम दुर्घटना
जिन्हें रँगा जलते दीपक के काजल ने
बूढ़ी गागर से छलके गंगाजल ने
उन दीवारों पर टँगने से पहले ही
पत्नी के कर से साड़ी गिर जाती है !
जब से युग की चकाचौंध के कुहरे ने
छीनी है आँगन से नित्य दिया-बाती
तब से लिपे आँगनों से, दीवारों से
बन्द नाक को सोधी गंध नहीं आती
जिसे चिना था घुटनों तक की दलदल ने
सने-पुते-झीने ममता के आँचल ने
पुस्तक के पन्नों में पिची हुई राखी
उस घर को घर कहने में शरमाती है !
साड़ी-टाई बदलें या ये घर बदलें
प्रश्नचिह्न नित और बड़ा होता जाता
कारण केवल यही, दिखावों से जुड़ हम
तोड़ रहे अनुभूति, भावना से नाता
जिन्हें दिया संगीत द्वार की साँकल ने
खाँसी के ठनके, चूड़ी की हलचल ने
उन संकेतों वाले भावुक घूंघट पर
दरवाजे की 'कॉल बेल' हँस जाती है !
✍️ डॉ कुंअर बेचैन
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