मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ---गुनगुनाती जिंदगी


जितना मैंने पढ़ा,

जितना मैंने सुना,

डर फैलता गया,

आँखों के कोने कोने में,....

मुझे साक्षात दिखने लगी 

पड़ोस में रहने आयी मौत.....

उसके नाखून भयानक थे,

हर पल मंडराने लगे 

उसके नाखून 

मेरे सिर पर......। 

मौत के लक्षण 

उतर आये 

मेरे शरीर में।

प्राणवायु सूखने लगी....

और मैं जुट गयी इंसान होने के नाते

अपनी जान बचाने की होड़ में...

इसी होड़ा होड़ी के दरमियान 

मैंने अचानक ध्यान दिया....

बेजुबानों पर.......

हमारा पालतू 'जैरी' निडर था 

और मस्त भी....

छत पर आने वाली चिड़िया भी 

दहशत में नहीं दिखी....

दाना लेने आयी गिल्लू भी 

बेफिक्र थी....

उसने देखा मुझे मुड़कर 

बार बार हमेशा की तरह....

जितना मैंने देखा...….

अपने आस पास....

ज़िन्दगी गुनगुनाती मिली....

चढ़ते सूरज की किरणों में,

सरसराते पत्तों में

मम्मी जी की आरती में।

दूध वाले,अखबार वाले,

सब्जी वाले,कूड़े वाले,

और ये गली में खेलते बच्चे,

सब ही तो ज़िन्दगी से भरे हुए थे।

अब नहीं दिख रही थी

मुझे मौत पड़ोसन सी...

और अब वे नाखून भी 

गायब हो रहे हैं यकायक....

क्योंकि मैंने बंद कर दिया है

आभासी पढ़ना और सुनना

मैं अब पास पड़ोस का 

सच देखने लगी हूँ...

जानने लगी हूँ.... 

मौत तो एक चारपाई है

जब कोई थक जाता है,

उस पर जाकर लेट जाता है।

लेकिन ज़िन्दगी मेहमान है,

उसे होंसलों के सोफे पर बैठाना होगा,

उम्मीद की मीठी चाय पिलानी होगी।

मेहमान का स्वागत सत्कार करना होगा,

क्योंकि 'अतिथि देवो भव' के 

संस्कार है हमारे...

तब तक मौत की खटिया 

खड़ी करनी ही होगी,

क्यों न शुरुआत हम सब 

अपने दिमाग के दालान से करें....

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

2 टिप्‍पणियां:

  1. " शुरुआत हम सब अपने दिमाग के दालान से करें " सुंदर कविता , प्रेरणादायक समापन ।। आशा का संचार करती आवश्यक कविता ।। बधाई हेमा भट्ट जी ।
    रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451

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