रविवार, 18 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी ( जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार डॉ मूलचंद्र गौतम का व्यंग्य ---- मैया, मैं तो मोबाइल ही लैहों

 


सूरदास आज होते तो उन्हें कृष्ण की बाललीला में अनेक संशोधन करने पड़ते। अव्वल तो बालकृष्ण, मैया से चंद्र खिलौने की जगह मोबाइल की डिमांड करते, क्योंकि उन्हें मालूम होता कि चौदहवीं का चांद दूर से जितना खूबसूरत दिखता है, पास से उतना ही बदसूरत है। दूसरा, मैया को भी अब चंदा भैया उतने प्यारे नहीं लगते, जितने पहले थे। 'रक्षाबंधन' और 'भाई दूज' जैसे त्योहार सिर्फ दिखावे के लिए इसलिए चल रहे हैं, क्योंकि इस बहाने, बहनों को भी भाइयों से भात, छोछक की गारंटी बनी रहती है। आधुनिक युग में चंद्रमा और मोबाइल के तुलनात्मक विश्लेषण में मोबाइल का पलड़ा भारी पड़ता है।

   सुभद्रा के जमाने में मोबाइल होता तो चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु की हत्या न होती। सुभद्रा, चक्रव्यूह भेदन के बारे में अर्जुन की आवाज को रिकॉर्ड कर लेती और गर्भस्थ अभिमन्यु को बार-बार सुनाकर पक्का कर देती। यह इंटरनेट का ही कमाल है कि जो नीला-पीला ज्ञान पहले युवकों को गृहस्थाश्रम में प्रवेश पर भी उपलब्ध नहीं होता था, वह अब आंख खोलते ही थोक में मिल जाता है। गर्भावस्था में जब मां ही दिन-रात मोबाइल पर लगी रहती है तो बच्चे की डिमांड गलत नहीं।

        पुराने जमाने में गरीब मां-बाप, आठ-दस बच्चों को  एक-दूसरे की उतरन पहनाकर पाल लेते थे। एक ही हंसली पायल से सबके शादी-ब्याह निपटा लेते थे। अब बच्चों की डायरेक्ट जवानी में एंट्री से माता-पिता के तनाव में वृद्धि हो गई है। अब कानूनन उनकी पिटाई भी जुर्म है। ऐसे माहौल में अब पैदा होते ही वे ब्रांडेड माल की डिमांड करने लगे हैं। पूरे कुनबे के खर्च में अब एक बच्चा पलता है। मोबाइल प्रेम के विपरीत आधुनिक बच्चों को दुग्धपान और स्नान सख्त नापसंद है। कन्हैया जी को चोटी बढ़ने का लालच देकर मैया खूब दूध, दही और मक्खन का सेवन  करा देती थी। आज के जमाने में चोटी और लंगोटी, गुजरे जमाने के पिछड़ेपन की निशानियां हैं। संडे हो या मंडे, रोज खाओ अंडे के कल्चर में 'अमूल' ने मुश्किल से इज्जत बचा रखी है, क्योंकि 'चीता भी पीता' है कि तर्ज पर मरगिल्ला से मरगिल्ला बालक भी एक-आध बोतल पी ही जाता है।

✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम

शक्तिनगर, चंदौसी (जनपद सम्भल ) -244412

उत्तर प्रदेश,भारत 

मोबाइल फोन नम्बर 9412322067


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