होलिका दहन के लिए गली के बाहर ही लकड़ियों का ढेर लगवा दिया था भाई साहब ने। कुछ लोगों ने स्थान न होने की बात कही लेकिन भाई साहब नहीं माने।अब बस मुश्किल से एक फुट का रास्ता ही बचा था जाने आने के लिए।
दिन भर डी जे पर कानफोडू संगीत बजाया गया। भाई साहब युवा नेता ठहरे और उस पर संस्कृति के पोषक संगठन के नगर प्रमुख,तो इतना करना,बनता ही था।
रात को होलिका दहन के बाद सब अपने घर चले गये। भाई साहब के पिता जी की अचानक तबियत खराब हो गई। एंबुलेंस के लिए फोन कर दिया गया। लेकिन गली से बाहर निकलने के लिए रास्ते में गुंजाइश ही नहीं थी। होली पूरे जोर से जल रही थी।
✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल', धामपुर, उत्तर प्रदेश
धन्यवाद भाई साहब। नमस्कार
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