शनिवार, 17 अप्रैल 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना कौल की छह रचनाएं ..…...


 (1)

सावन  की मत बात करो, इस कोरोना काल में

सावन भी सूखा जाएगा, इस कोरोना काल में।


सूने हैं  सुख के आँगन ,दुख की चादर है मैली

जीवन ह॔स है तड़प रहा  ,फँसा हुआ है जाल में।


घेवर फैनी मेंहदी चूड़ी , कैसे झूले गीत मल्हार

देवालय भी हैं बंद पड़े , इस अभागे साल में।


धरती का आँचल रीता ,अम्बर का दामन खाली

नहीं दिखती वो सौगातें ,जो सज जाएं  थाल में।


सखी सहेली रिश्ते नाते ,सिमट गए दरवाज़ों तक

आस लगी बस कदमों की ,जाने हैं किस हाल में। 


गरजते बादल बरसती बूंदे ,सावन का संगीत हैं

मन के मीना गीत हैं बिखरे, न सुर में न ताल में।


जीवन की उम्मीद है टिकी,जग के पालनहार पे

समेट ले ये उलझन सारी,गति भर दे चाल में।


(2)


आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,

न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।


ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा

नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।


अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज

अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।


चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,

लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी


सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन

जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।


अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम

बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की


मन दर्पण पर जमी  हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम

रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।


हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान

बात नहीं करने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।


रंग  बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे

अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।

   

(3)


वक्त के आगे किसी का जोर नहीं चलता

बड़े- बड़े सूरमाओं को हाथ मलते देखा है ।


खादी पहन देश भक्त होने का दम्भ भरता,

रेशम पहने देश द्रोह की राह चलते देखा है।


कहीं गरीब  के आँगन में चूल्हा नहीं जलता

कहीं दंगो की आग में गाँव जलते देखा है।


उम्र भर सूखा रहने  पर शिकवा नहीं करता

भूखे बच्चे की आह से पेड़ फलते देखा है।


हर पिता अपने अंदर बच्चे सा दिल रखता

आँच के अहसास से लोहा गलते देखा है।


दिल के पत्थर होने का जो खुद दावा करता

हमने उसकी आँख में आँसू पलते देखा है।


धन -वैभव ,रूप-रंग पर गर्व नहीं कभी करना

क्षण भंगुर धन की महिमा रूप ढलते देखा है।


सावित्री सा विश्वास अगर मन में हो जो बसता

कितना भी हो चाहे सख्त वक्त टलते देखा है।


मीना किसी के साथ भी बहुत नहीं घुलना

अपनो को अपनो के सपने छलते देखा है।


(4)


जिंदगी आजकल

कोरोना के खौफ में गुजर रही है

  हर कदम पर बीमारी

  एक नयी साजिश रच रही है।

  वायरस के बोझ से

  हर व्यवस्था कुचल रही है

  निर्दोषों की चीख से

  मानवता भी दहल रही है।

  महामारी की आग में

  हर इच्छा ही जल रही है

  दूर देश से उठी आग

  कितनी साँसें निगल रही है।

  आपसी सद्भाव पर

  संदेह की काली छाया पड़ रही है

  धर्म स्थल पर भी

  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।

  कौन है जिसने

  यह अवांछित कर दिया

अपने ही घर में

हमें असुरक्षित कर दिया।

आखिर कब तक

जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी

आँखें कब तक

अपने सपनों को तरसेंगी।

कभी कभी लगता है

इसकी कोई दुआ जरूर आएगी

महामारी छोड़ पीछे

मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।

  

(5 )

  तेरे कारण

तेरे कारण

कोरोना तेरे कारण

कितने दिन हो गए

काम पे नहीं गए

भूल गए सारे सपनों को

नजरबंद हो गए

तेरे कारण

कोई कितना भी लुभाए

निकलूँगी न मैं घर से

घर में ही बैठूँगी

कमरे बदल बदल के

दरवाजे पर गई

झांक के मैं आ गई

आग लगे इस वायरस को

दूर अपने हो गए

तेरे कारण

झाडू मैं जोर जोर से

सब घर के कोने कोने

फिर याद आया

बरतन भी हैं धोने

झट रसोईघर गई

काम सब कर गई

कूकर में चावल

मिक्सी में चटनी

फिर खाली हो गई

तेरे कारण

तेरे कारण

कोरोना तेरे कारण


(6)


भ्रष्टाचार का रावण बढ़ता जाता है। 

शिष्टाचार का राम नजर नहीं आता है ।। 

जब जब धर्म की हानि होगी

और बढ़ेगा अत्याचार 

तब-तब धर्म की रक्षा हेतु 

धरती पर होगा अवतार

 गीता का यह सार अखर-सा जाता है।

शिष्टाचार का राम नजर नहीं आता है ।।

 हाहाकार का रावण बढ़ता जाता है। 

 जै-जैकार का राम नजर नहीं आता है।।


देश कभी सोने की

चिड़िया कहलाता। 

भ्रष्ट आदमी खड़ा 

देखकर मुस्काता ।।

सोने का संसार बिखर-सा जाता है। 

शिष्टाचार का राम नज़र नहीं आता है ।।

 अपकार का रावण बढ़ता जाता है।

उपकार का राम नजर नहीं आता है।। 

देश की सत्ता पर जो

जम कर बैठे हैं।

रक्षक होकर भक्षक ही

बनकर ऐंठे हैं 

नेता का हर रूप बदल सा जाता है।

 शिष्टाचार का राम नजर नहीं आता है ।।

लूटमार का रावण बढ़ता जाता है। 

बलिदानों का राम नजर नहीं आता है ।।

नैतिकता के सारे

बन्धन तोड़ दिए

मानवता के सही

मायने छोड़ दिए।।

घोटालों का बाजार पनप सा जाता है।

शिष्टाचार का राम नजर नहीं आता है।

दुराचार का रावण बढ़ता जाता है।

 सदाचार का राम नजर नहीं आता है।

राष्ट्र के कर्णधार जहाँ 

संवरते     हैं

राजनीति के अड्डे वहाँ 

बिचरते     हैं

शिक्षा में व्यापार नजर-सा आता है।

शिष्टाचार का राम नजर नहीं आता है।।

अंधकार का रावण बढ़ता जाता है।

 उजियारों का राम नजर नहीं आता है

हाय व्यवस्था की अर्थ

पर रोते हैं। 

वही फसल तो काटेंगे

जो बोते हैं ।।

धरती का शृंगार उजड़ सा जाता है।

शिष्टाचार का राम नजर नहीं आता है ।। 

अंहकार का रावण बढ़ता जाता है। 

संस्कार का राम नजर नहीं आता है ।।

 बहुत सह लिया जनता ने

अब नहीं सहेगी

भ्रष्ट व्यवस्था की सत्ता 

अब नहीं रहेगी 

जनता में प्रतिकार नजर-सा आता है। 

चेतना में चमत्कार नजर-सा आता है ।।

अत्याचार का संहार नजर-सा आता है।

 भ्रष्टाचार में प्रहार नजर-सा आता है ।।

कोई अन्ना, राम, कृष्ण

बनकर आएगा

रावण औ कंस के सिर को

काट गिरायेगा ।।

अमृत का पारावार नजर-सा आता है।

 सृष्टि पर अवतार नजर-सा आता है ।।

भ्रष्टाचार का नाश नजर अब आता है। 

शिष्टाचार का राम नजर अब आता है ।। 

असत्य पर सत्य की

होकर विजय रहेगी

खड़ी अनीति की लंका

 सागर बीच बहेगी

खुशियों का त्यौहार नजर अब आता है। 

हर व्यक्ति में राम नजर अब आता है ।।


 ✍️✍️ डॉ मीना कौल , मुरादाबाद

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