(1) सूट बूट में बंदर मामा
सूट बूट में बंदर मामा,
फूले नहीं समाते हैं।
देख देख कर शीशा फिर वह,
खुद से ही शर्माते हैं।।
काला चश्मा रखे नाक पर,
देखो जी इतराते हैं।
समझ रहे वह खुद को हीरो,
खों-खों कर के गाते हैं।।
सेण्ट लगाकर खुशबू वाला,
रोज घूमने जाते हैं।
बंदरिया की ओर निहारें,
मन ही मन मुस्काते हैं।।
फिट रहने वाले ही उनको,
बच्चों मेरे भाते हैं।
इसीलिए तो बंदर मामा,
केला चना चबाते हैं।।
(2) चिड़िया रानी
दाना चुगने चिड़िया रानी,
फुदक फुदक जब आती है।
मेरी प्यारी छोटी गुड़िया,
फूली नहीं समाती है।।
थोड़ा सा ही दाना चुग कर,
झट से वह उड़ जाती है।
फिट रखती है सदा स्वयं को,
दवा कहाँ वह खाती है।।
पढ़ने जाती कहीं नहीं है,
फिर भी जल्दी उठती है।
सर्दी बारिश या हो गर्मी,
श्रम से कभी न ड़रती है।।
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर,
घर वह एक बनाती है।
छोटी सी है पर बच्चों को,
जीना ख़ूब सिखाती है।।
(3) मेरी पतंग ---
रंग बिरंगा काग़ज लाकर,
एक पतंग बनाऊँगी।
हिंदुस्तानी माँझे से माँ,
उसको आज उड़ाऊँगी।
तेज हवा के झोंके भी फिर,
उसको रोक न पायेंगे।
देख उड़ान गगन से ऊँची,
दंग सभी रह जायेंगे।
धरती से पतंग अम्बर तक,
मेरी अब लहरायेगी।
बात करेगी आसमान से,
बार-बार इठलायेगी।
छू कर नील गगन को जब वह,
लौट जमीं पर आयेगी
उठना-गिरना ही जीवन है,
सबक यही दे जायेगी।
( 4) तितली रानी -
तितली रानी ज़रा बताओ,
कौन देश से आती हो।
रस पी कर फूलों का सारा,
भला कहाँ छिप जाती हो।
इधर उधर उड़ती रहती तुम,
मन को बड़ा लुभाती हो।
अपने सुन्दर पंखों पर तुम,
लगता है इठलाती हो।
सब फूलों पर बैठ बैठ कर,
अपनी कला दिखाती हो।
पास मगर आने में सबके,
तुम थोड़ा सकुचाती हो।
पीले काले लाल बैंगनी,
कितने रंग सजाती हो।
मुझको तो लगता है ऐसा,
होली रोज़ मनाती हो।
(5) बचपन की याद
कहाँ खो गया प्यारा बचपन,
मिल जाए यदि कहीं बताना।
भूले बैठे हैं जो इसको,
फिर से उनको याद दिलाना।
गुड़िया गुड्ड़ों की शादी में,
माँ का वह पकवान बनाना।
और दोस्तों के संग मिल कर,
सबका दावत खूब उड़ाना।
बारिश के मौसम में अक्सर,
कागज़ वाली नाव चलाना।
सर्दी ज्वर हो जाने पर फिर,
पापा जी का डाँट लगाना।
कन्धों पर पापा के अपने,
चढ़कर रोज सैर को जाना ।
नींद नहीं आने पर माँ का,
लोरी फिर इक मीठी गाना।
छोटी छोटी बातों पर भी,
गुस्सा अपना बहुत दिखाना।
बहुत प्यार से माँ का मेरी,
आ कर फिर वह मुझे मनाना।
रहीं नहीं पर अब वह बातें,
देखो आया नया ज़माना।
पर कितना मुश्किल है ’ममता’,
उस बचपन की याद भुलाना।
✍️ प्रो. ममता सिंह
गौर ग्रेशियस
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल नम्बर - 9759636060, 7818968577
शानदार रचनाएं ।बहुत बहुत बधाई हो मैडम ममता जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक
शानदार कवितायें
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