शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कविता ----मन की बात


भाइयों, बहनों, मित्रों
यहां "मन की बात "का तात्पर्य है
केवल स्वयं के मन की बात
क्या मतलब पड़ी है जनाब को
हम जनता के हैं क्या है हालात?
केवल बात बड़ी करने से
कोई कुशल न्यायाधीश नहीं होता
गीता का उपदेश देने से
कोई द्वारिकाधीश नहीं होता
काश ,कुछ वादे जमीनी स्तर के होते
चाहे , उनमें कुछ पूरे होते
कुछ अधूरे भी अंतस को छूते
पर मान गए जनाब
आप हर मुद्दे में हाथ लगाते हैं
फिर लुढ़कते पत्थर सा
खुद ही साबित हो जाते हैं
कुंभकरण की नींद नहीं सो रहे हैं हम
हम लोग बहुत जल्द मिलकर जागेंगे
फिर देखते हैं आप सब किधर भागेंगे
आप जिस थाली में खाते हैं
बंद करें उसमें छेद पे छेद करना
यह देश की  पावन मिट्टी है
 सबको अपने कर्मों को यही है भरना
अब थोड़ा हमारे मन की बात भी कर ले
कई कदम  आप आगे चल रहे हैं
थोड़ा  थम कर हमारे साथ भी चल ले

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद 244001

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें