बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ----- वास्तविक सोच

  मेरे बेटे रोहन ने एक स्वनिर्मित चित्र मेरे सामने लाकर रख दिया ...। इस चित्र में उसने अपनी मां को आठ हाथों के साथ दिखाया है ... पहले हाथ में किताब, दूसरे हाथ में बर्तन, तीसरे हाथ में छोटे बच्चे (शायद रोहन खुद को दिखाना चाहते हो), चौथे हाथ में छोटी बहन, पांच हाथ में। पापा, छठे हाथ में घर, सातवें हाथ में कार्यालय, और आठवें हाथ में घड़ी ... उसे देखकर ही सुबह का वाकया मेरी आँखों के सम्मुख छा गया। 

जब बेटे रोहन ने आज दुर्गा नवमी पर पूजा के दौरान मां दुर्गा की प्रतिमा को देखकर मुझसे पूछा "पापा हम सभी के दो- दो हाथ, पर माता दुर्गा के आठ हाथ, ये तो झूठ है ... ऐसा नहीं हो सकता है ना!" पापा "। मैं उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया था और बोला कि ... 

"बेटा तुम देखो, मां दुर्गा ने अपने सभी हाथों में अलग-अलग चीजें धारण कर रखी हैं। इन सभी चीजों में, मां दुर्गा पार्वती हैं"। 

"क्या हुआ पापा?" बेटे ने आवाज दी तो मेरी तन्द्रा भंग हुई मैंने उसे गले से लगा लिया और पत्नी की ओर प्रेम से देखकर मुस्करा भर दिया।

✍️ प्रवीण राही, मुरादाबाद

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