शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कहानी ------बदलाव


       सुधीर बाबू- हैलो.... राजू ,काका (माखन लाल) कहां है.. बात करा , उनकी तबीयत तो ठीक है ना। आज पार्क में भी टहलने नहीं आए।।
राजू - जी साहब मैं बाबूजी को आपके कॉल का बता कर आ रहा हूं ,पर साहब सुबह से बाबूजी ने अपने कमरे का दरवाजा नहीं खोला है।
राजू थोड़ी देर बाद आकर फोन उठाया
और बोला
साहब, बाबूजी का कमरा अंदर से बंद है,काफी दरवाजा खटखटाने पर भी कोई सुगबुगाहट नहीं......जाने क्या हुआ... दरवाजा नहीं खोल रहे हैं । साहब आप आ जाए ,मेरी बुद्धि काम नहीं कर रही है।मुझे तो  डर लग रहा है ।
सुधीर बाबू- राजू तुमको याद है, कुछ हुआ हो तो बता....। राजू - बस ,सुबह राहुल भैया का बाबूजी के पास फोन आया और फिर बाबूजी बहुत तेज चिल्ला चिल्ला कर बात कर रहे थे। मानो नाराज हो रहे हो भैया पर।
राजू तू डर मत मैं आ रहा हूं ।
राहुल माखनलाल का इकलौता बेटा है और अपने जॉब की वजह से जम्मू में ही रहने लगा था। माखन लाल कभी-कभी उसके पास आते जाते रहते थे। दो घर छोड़कर ही सुधीर बाबू का भी घर था और माखनलाल और सुधीर बाबू दोनों ही कॉलेज के समय से ही पक्के दोस्त हैं। रिटायरमेंट के बाद दोनों ने आसपास ही घर बना लिया।
जैसे ही सुधीर बाबू घर आए राजू को दरवाजे पर बैठा हुआ पाए।
तेजी से सुधीर  बाबू माखन के कमरे की ओर गए और दरवाजे को जोर जोर से खटखटाया ,पर अंदर से कोई आवाज नहीं आने पर राजू और सुधीर बाबू ने मिलकर दरवाजे को तोड दिया । सामने पंखे से लटके माखनलाल ......माखन...कहते हुए दौड़कर गोद में सुधीर बाबू ने उठा लिया और माखन को  सहारा दिया। राजू और सुधीर बाबू  ने मिलकर माखन बाबूजी को  नीचे उतारा। माखन लाल की सांसे चल रही थी ,मानो आत्महत्या की कोशिश थोड़ी देर पहले की गई हो ...राजू दौड़ कर रसोई से पानी लेकर आया , बाबूजी को पानी पिलाकर ,आंखों पर पानी कि  छिंट मारी। सुधीर बाबू उनके सिरहाने बैठ गए और राजू पैर के पास...बिछावन के नीचे।
कुछ 15 मिनट बाद बाबूजी रोते रोते बैठ गए और सुधीर को जोर से से गले लगा कर फुट  फुट कर रोने लगे ।सुधीर बाबू ने राजू की तरफ इशारे में कमरे से बाहर चले जाने को कहा। क्या हुआ ....माखन ,क्या बात हो गई ....बच्चे की तरह क्यों हो रहा है ,बात बता । माखन - राहुल ने शादी कर ली है और वो भी दूसरे जाति की लड़की के साथ और शादी के बाद मुझे फोन करके बताया। मेरी सारी आज तक की इज्जत उसने एक झटके में खत्म कर दिया,...दोस्त। क्या शक्ल लेकर  मैं तुझसे मिलने आता,कैसे अब बाहर घूम सकता हूं। आज तक सर उठा कर जिया हूं ।पर,राहुल ने सब खत्म कर दिया । अब सगे संबंधियों को भी क्या जवाब दूंगा।लोगों के ताने सुनने पड़ेंगे। उसके मां के बाद इसे मा बाप दोनों का प्यार  दिया है मैंने। जाने क्या कमी रह गई। तू ही बता दोस्त ,मरू नहीं तो और क्या करू।
सुधीर ने माखन से-  अगर तू मुझसे पूछ रहा है तो मै बोलता हू।  तू तो पहले कहानी में  या फिल्मों में अगर ऐसा कुछ पढ़ते या देख लेते थे तो बुरा नहीं मानते थे। खुद ही कहते थे कि जात पात से हमें ऊपर उठकर अब सोचना है ,जीना है । अब फिर ...अब ऐसा क्यों ...क्यों? क्यों इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रहे हो। घर की बहू है  वो और मुझे भरोसा है,जैसा राहुल पढ़ा लिखा है.. लड़की भी पढ़ी लिखी होगी ,संस्कारी होगी ।जाओ मिलो और अपनाओ उनको।  एक नई रोशनी फैलाओ और एक नया उदाहरण पेश  करो । पता है माखन -  *हमें बदलाव* *पसंद है पर अपने घर से* *नहीं* ...बस यह सुनते ही माखन के अंदर हिम्मत आ गई......, आंखों में एक बदलाव से लड़ने की हिम्मत । और सुधीर ने एक बात और कहा -  दोस्त माखन याद है मुझे (अच्छी तरीके से ) पार्क में तुमने ही अभिनेता  सुशांत कि  आत्महत्या पर कहा था, जिंदगी में  कोई भी ऐसी परिस्थिति नहीं जिसका  आत्महत्या  उपाय हो.... फिर अपनी बात से तुम कैसे पलट सकते हो? जो आदर्श तुमने मानसिक स्तर पर रखे है,उसे वास्तविक भूमि पर भी फलीभूत करों,दोस्त....

प्रवीण राही
मुरादाबाद

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