बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा -----गुरु


पुरानी दिल्ली में लाल किले रोड की एक तरफ जूते का बड़ा शोरूम खुला और दूसरी तरफ रोड पर एक बुजुर्ग चलते फिरते  सी  किताबो की दुकान सजा रहे थे। बेडशीट को बिछाकर उस पर गीता, कुरान ,बाइबल ....आरती ,पूजा मंत्रों की छोटी-छोटी पुस्तके ,प्रेमचंद्र की कहानियां, चेतन भगत ,रॉबिन शर्मा ,शेक्सपियर .....आदि  की किताबें उन्होंने सजाई।  पर अचरज की बात तो यह है की आज जब हर दिन की तरह एक दूसरे से शर्माए लिपटी किताबों ने जूतों को उन पर हंसते हुए नहीं देखा ......बल्कि वो श्रद्धा पूर्वक सर झुका कर नमन कर रहे थे।तो फिर किताबों  ने एक दूसरे से पूछा कि आज इन घमंडी जूतों में  इतना बदलाव कैसे आ गया, आज ये अचानक हमारे सामने ऐसे झुक रहे हैं जैसे  हमें अपना गुरु समझते हो। तभी उनमें से एक किताब "हाउ टू सेल रिटन बाय प्रवीण राही" ने बाकी किताबों को कहा "कल इस जूते के शो रूम का मालिक हमारे बाबूजी के पास आया था। और बाबू जी से कहा कि हमारी दुकान की बिक्री नहीं चल रही है। इस तरीके से जूतों को फेंकना पड़ जाएगा या कौड़ी के भाव बेचना पड़ जाएगा। आप कोई रास्ता बताएं। कोई किताब बताएं ,जिस को पढ़कर मैं अपने तरीके में बदलाव ला सकूं और अपनी बिक्री बढ़ा सकूं"। फिर किताबों ने कहा अच्छा इसी वजह से  आज सुबह से ही इनके  दुकान में  ग्राहकों की भीड़ लगी हुई हैं। आज जूते खुद पर शर्मिंदा होकर अपनी इज्जत बचाने के लिए किताबों का आभार व्यक्त कर रहे थे।

✍️प्रवीण राही

संपर्क सूत्र 8860213526

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