बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कहानी ---- नाम

   

        कमल ने अपनी पत्नी जया, दो बच्चों और माँ-पापा के साथ नया मकान किराए पर लिया। पापा-मम्मी दोनों ही की तबीयत ठीक ना होने की वजह से, कमल ने अपना काम घर से ही करना शुरू कर दिया था।
कमल अपनी व्यस्तता की वजह से बाजार  से सब्जी नहीं ला पाता था।
जया भी अपने ऑफिस से  काफी लेट आती। जया ने घर आते ही कमल से कहा,  "आप ज्यादातर घर पर ही रहते हो, सब्जी लेकर आ सकते हैं।"
कमल ने सवाल किया, "तुम क्यों नहीं लेकर आती?"
"क्या कह रहे हो आप ? सब्जी का थैला इतना ज्यादा भारी हो जाएगा, मैं कैसे बाजार से यहां तक लेकर आऊंगी।" जया ने जवाब दिया।
दोनों के बीच की बहस को देख-सुनकर बीमार पापा ने कहा, "तुम दोनों मत जाओ, मैं खुद ही जाकर सब्जी लेकर आजाऊँगा।"
"नहीं पापा मैं कुछ रास्ता निकलता हूं। आप इतना भारी थैला कैसे लेकर आ सकते हैं?" ऐसा कह कर जया कि तरफ कमल ने तिरछी निगाहों से देखा....।
काम की व्यस्तता, घर के सारे सदस्यों की अपेक्षाओं के बीच समझदारी और तालमेल नहीं बना पाने की वजह से कमल बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो गया था।
अगले दिन जया के ऑफिस जाने के बाद , लगभग 12:00 बजे कमल को सब्जी वाले की आवाज सुनाई दी। कमल बालकोनी में आया.., "भैया!!, सब्जी वाले भाई, रुक जाना सब्जी लेनी है..।"
"जी साहब आ रहा हूं मैं, आपके मकान के नीचे..।" सब्जी वाला मुस्कुराकर बोला।
"आलू ,प्याज ,टमाटर ...इन सब का भाव बताओ", कमल ने पूछा।
सब्जी वाले के कहे भाव को सुनकर कमल ने कहा,  "अरे तू तो बहुत ज्यादा भाव बता रहा है। लूट मचा रखी है तुम जैसो ने, देना है तो सही भाव में दे वरना खिसक ले।"
"नहीं साहब मंडी से बस हर किलो पर तीन रुपए ज्यादा ले रहा हूँ। आप चाहो तो मालूम कर लो..., साहब यह भी तो देखो धूप में घूम रहा हूं।", सब्जी वाला सफाई देता हुआ बोला।
 "मै तुम जैसों के मुंह नहीं लगता। सब्जी दे और पैसे लेकर खिसक ले । और सुन,हर रोज इसी समय पर आ जाया कर", कमल ने बहुत रुखेपन से कहा।
"जी ...जी साहब!!
साहब आपको जो सही लगे पैसे दे देना", सब्जी वाले ने प्यार से कमल को कहा। पर कमल का रुखा व्यवहार हर रोज बढ़ता ही जा रहा था।
रविवार का दिन था ,जया घर पर ही थी सब्जी वाले ने घंटी बजाई। कमल- जरूर सब्जीवाला होगा। कमल जया दोनों बालकनी में गए।
आ गया तू ,वहीं रुक और सुन घंटी एक ही बार बजाया कर। हमें तेरा समय पता है", कमल ने चिढ़कर कहा।
"कमल रहने भी दो", जया ने टोका।
दोनों साथ नीचे गए।
"भैया क्या नाम है आपका?" जया  ने मुस्कुराकर पूछा। 
"दीदी, मेरा नाम गणेश है", सब्जी वाले ने धीरे से कहा।
"भैया आप अपना मोबाइल नंबर दे दो, हम सब कल बाहर जा रहे हैं... वापिस आते ही कमल आपको फोन कर देंगे। फिर आप सब्जी देने आ जाना", जया ने कहा।
सब्जी वाले ने जया को कहा - "जी दीदी।" गणेश नाम सुनकर राहुल का व्यवहार उस दिन सब्जी वाले के साथ थोड़ा मधुर था, और उस दिन उसने सब्जी वाले को आप कह  कर बोला।
कुछ दिनों बाद जब जया ,कमल सहित पूरा परिवार शहर वापस आए तो कमल ने सब्जी वाले को फोन किया,  "भैया गणेश जी आप सब्जी देना आ जाओ।"
"साहब मैंने आप सबके आशीर्वाद से  छोटी सी सब्जी दुकान खोल ली है ।आपके घर के पीछे वाली गली में  ही है। गेट से शायद पचास कदम दूर ही होगा...., साहब आप मेहरबानी कर यहीं आ जाइए", उधर से सब्जी वाले कि आवाज आई।
शाम होते ही कमल उस दुकान पर गया। कमल सब्जी वाले से -  "कैसे हो गणेश भैया?"
सब्जी वाला -  "ठीक हूं साहब ,और आप और दीदी..?"
कमल - "हम भी बढ़िया। बधाई हो गणेश भैया, अब धूप से बचोगे। एक जगह बैठकर बेचना है सब्जी।अच्छी है तरक्की...."
तभी बगल में एक साहब आए,बोले - "वालेकुम सलाम मियांं,अब्दुल।"
सब्जी वाला - अस्ससलाम वालेकुम आरिफ़ भाईजान सब खैरियत।"
"साहब इनका नाम गणेश है।"कमल ने  बीच में कहा उसे समझ नहीं आ रहा था। 
वे दोनों एक दूसरे को हतप्रभ होकर देखने लगे।
"भैया क्या नाम है आपका?", आरिफ ने भी चौंक कर पूछा।
"साहब आप दोनों माफ करे, मेरा नाम जॉन है। पर साहब मेरा नाम आप सब ने जब अपने भगवान, खुदा के नाम पर सुना तो फिर मै आपके रूखे व्यवहार से, गाली-गलौज से बच गया। अब आप सब मुझसे प्यार और आदर से पेश आते हैं।" सब्जी वाले ने धीरे से कहा।
ऐसा सुनकर कमल और आरिफ़ दोनों ने अपनी नजर शरम से झुका लीं।
"भैया जॉन माफ करना हमें" दोनों के मुँह से एक साथ निकला।


✍️  प्रवीण "राही"
मुरादाबाद

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