बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा--------- - फूल सी बेटी

      
कई बार अखबार पढ़ कर सिहर सा जाता हूं।  बहू बेटियों की अस्मिता घर की चारदीवारी में भी सुरक्षित नहीं हैं। उम्र में बढ़ती बेटी को लेकर कभी कभी मेरे मन में भी बुरे ख्याल आने लगते थे । उसकी सुरक्षा को लेकर मैंने एक युक्ति निकाली।।      एक महीने तक घर में जो भी आगंतुक आए, उनको मैं अपने बागीचे में लेकर जाता और अपनी बेटी को उनकी  फूलों के प्रति व्यवहार को  देखने को कहता।
कुछ आगंतुक फूलों को निहारते,तो कोई दूर से देखता ,कोई देखकर उनकी तारीफ करता ,तो किसी ने फूल तोड़ा और मसलकर खुशबू सूंघी  जबकि किसी ने फूल को टहनी से तोड़कर अपने हाथ में ले लिया, तो किसी आगंतुक ने फूल की तारीफ कर यह कहा यह फूल यूं ही खिलते रहे और आपके उपवन को सुंदर बनाए रखें और तो और उन जनाब ने  मुझसे भी यह  कहा  कि आप भी इन फूलों को छूने की कोशिश ना करें ताकि फूल जब खिले तो पूरा घर उसकी खुशबू से महक उठे। इस तरीके से मेरी बेटी  पूरे महीने लगभग सारे नजदीकियों , रिश्तेदारों के फूलो के प्रति व्यवहार को देखती और परखती रही।एक महीने बाद मैंने बेटी से पूछा कि  इस एक महीने में तुम्हें किसका  कौन सा व्यवहार  सबसे ज्यादा फूलों  के प्रति  उत्तम लगा । बेटी ने दूर से फूलों को निहारने वालों की तारीफ की और उसके व्यवहार को ही उत्तम बताया।
फिर मैंने उसे समझाया  प्यारी बेटी तुम्हें अपने आप को इसी तरीके से फूल  समझना है और  उनके व्यवहार को देखते हुए तुम्हे उनसे नजदीकियां या दूरी बनाकर रखनी है।

प्रवीण राही
मुरादाबाद

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