शनिवार, 23 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा -- आचरण


    पचास किलोमीटर के क्षेत्रफल में धनिया जैसा बेहतर कोई और मूर्तिकार नहीं था।धनिया की बनाई मूर्ति मां सरस्वती ,गणेश-  लक्ष्मी, मां काली की प्रतिमा साक्षात जीवंत सी जान पड़ती थी...। आसपास का कहना था कि मां सरस्वती ने उसे ही नहीं बल्कि उसके पूरे खानदान को यह वरदान दिया है कि जिस पत्थर या मिट्टी को वो गढ़ दे उसमे साक्षात देवी वास कर जाएगी।उसका पूरा खानदान इसी पेशे में कई दशक से लगा हुआ था, हां यह सत्य है कि जितनी शोहरत, पैसा धनिया ने कमाया उतना उसके पूर्वजों ने नहीं...

पर जाने क्यों उसके अब अभागे दिन आ गए हैं,  दो साल से कोई भी मूर्ति नहीं बिकी। लोगों का कहना है अब धनिया तेरे हाथ में वह बात नहीं रही...
घर में पैसे आने बंद हो गए हैं और घर में  रोज कलह होने लगी ।
धनिया की पत्नी मुनिया ने अंदर से आवाज लगाई-   सुनो जी अंदर आओ.....जल्दी....मां की प्रतिमा कैसे खंडित हुई ,तुमने तो कल ही बनाई थी ...हमने तो छुआ भी नहीं ,यहां तो हवा भी नहीं आती । मुझे तो लगता है कि जरूर कोई अपशगुन है।
 हे.... हे... मां मां .. माफ करो कुछ गलती हुई जाने अनजाने में.
धनिया की बेटी मुन्नी ने कहा-  बाबा आप तो मां लक्ष्मी की मूर्ति बनाते हो, इतनी सुंदर ,फिर भी हमारे पास पैसे की तंगी.. क्यों बाबा, क्यों??
धनिया जोर जोर से रोने लगा.. मां ....मां... मां माफ करो मां .....।
बिना खाना खाएं वह उस रात जल्दी सो गया।
देर रात महालक्ष्मी उसके सपने में आईं औऱ बोलीं  - बेटा धनिया तुमने अपने काम का  अनादर किया है। घमंड में आकर मदिरा का सेवन करते हुए तुम मूर्ति बनाते हो उस समय तुम असलियत में तुम नहीं होते,तुम्हारी नजर में भी वो बात नहीं होती.....
नशे में चूर तुम मुनिया को मारते पीटते हो ,गाली गलौज करते हो,और वह भी बेटी के सामने.....
 अरे मूर्ख ,देवी की प्रतिमाएं बनाता है और नारी का अपमान करता है। कर्तव्य का आचरण से सीधा संबंध है ।यह कहकर मां अंतर्ध्यान हो गई। सुबह उठते ही धनिया अपनी पत्नी का पैर पकड़कर माफी मांगने लगा और कहा - मुनिया तुझ पर जितनी बार हाथ उठाया मुझे उससे ज्यादा मार पर माफ कर दे...माफ कर ...माफ कर,कह कर रोने लगा
 "घर की देवी है तू,उसका अपमान देवी का अपमान ,फिर मूर्ति में कैसे लाऊं जान"

प्रवीण राही
Nc-102, मुरादाबाद
मो.नो.- 8860213526,8800206869

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