रविवार, 3 जनवरी 2021

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 27 दिसंबर 2020 को आयोजित 234 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, नजीब सुल्ताना, रवि प्रकाश, मरगूब हुसैन अमरोही, अनुराग रोहिला, राजीव प्रखर, मनोरमा शर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल, संतोष कुमार शुक्ल संत, वैशाली रस्तोगी, अशोक विद्रोही, डॉ शोभना कौशिक, दुष्यंत बाबा , डॉ पुनीत कुमार , मीनाक्षी वर्मा, रामकिशोर वर्मा,डॉ प्रीति हुंकार, विवेक आहूजा,मोनिका मासूम,प्रीति चौधरी,सूर्यकांत द्विवेदी,डॉ ममता सिंह और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ------



























 

हिन्दी साहित्य संगम ने आयोजित की नव वर्ष पर काव्य-गोष्ठी



मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य संगम' की ओर से आज गूगल मीट पर नव वर्ष को समर्पित काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें रचनाकारों ने नव वर्ष पर मंगलकामनाएं करते हुए अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने की। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध नवगीतकार  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' एवं विशिष्ट अतिथि  डॉ. रीता सिंह रहीं। माँ शारदे की  वंदना राजीव 'प्रखर' ने प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का संचालन जितेन्द्र 'जौली' द्वारा किया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा ----
मंगलमय हो आनंदमय हो,
नूतन वर्ष का शुभ आगमन
हो परिवार में शांति और
सुखों का हो आगमन।

     चर्चित साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था---
सब सुखी हों स्वस्थ हों उत्कर्ष पायें
हैं यही नववर्ष की शुभकामनाएँ
अब न भूखा एक भी जन देश में हो
अब न कोई मन कहीं भी क्लेश में हो
अब न जीवन को हरे बेरोजगारी
अब न कोई फैसला आवेश में हो
हम नयी कोशिश चलो कुछ कर दिखायें
हैं यही नववर्ष की शुभकामनाएँ

       कवयित्री डॉ. रीता सिंह का स्वर था -----
मैया तेरा नटखट लाला,
किशन द्वारिकाधीश बना
कल तक जिसने मटकी फोडी
आज वही जगदीश बना ।।

        युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने मुक्तक प्रस्तुत किया-----
दिलों से दूरियाँ तज कर, नये पथ पर बढ़ें मित्रों।
नया भारत बनाने को, नयी गाथा गढ़ें मित्रों।
खड़े हैं संकटों के जो, बहुत से आज भी दानव,
बनाकर श्रंखला सुदृढ़, चलो उनसे लड़ें मित्रों।

        साहित्यकार अरविंद 'आनन्द' ने गजल प्रस्तुत करते हुए कहा-----
हादसों से सज़ा आज अख़बार है ।
झूठ और सच में हर वक़्त तकरार है ।
ज़ख़्म इतने सियासत ने हमको दिये।
अब लगे है फ़रेबी हर सरकार है।

        कवयित्री इन्दु रानी ने कहा-----
हाँ रही हूँ मै समर्पित पर मेरा क्या योग है
वस्तु सम मापी गई औ वस्तु सम ही जोग है

        युवा कवि जितेन्द्र 'जौली' ने कहा -----
कुछ ऐसा तुम काम करो जो, न कर पाया जमाना
याद रखेगी दुनिया तुमको, था कोई दीवाना।

       ओजस्वी कवि प्रशान्त मिश्र का कहना था -----
गम है ज़िन्दगी तो रोते क्यों हो,
नैनों के नीर से जख्मों का दर्द कम नहीं होता,
अपने हम से रूठ जाते हैं...

कार्यक्रम में विकास 'मुरादाबादी' एवं नकुल त्यागी भी उपस्थित रहे।

:::::: प्रस्तुति::::::
 राजीव 'प्रखर'
कार्यकारी महासचिव
8941912642

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की दोहा यात्रा के संदर्भ में योगेंद्र वर्मा व्योम का आलेख ---. कितने धोखेबाज़ हैं, दो रोटी के ख़्वाब


‘दोहा’ हिन्दी कविता का ऐसा छंद है जो आज भी आमजन के हृदय में बसता है, ज़ुबान पर हर वक़्त विराजता है और दो पंक्तियों की अपनी छोटी-सी देह में ही कथ्य की सम्पूर्णता को समाहित कर बहुरंगी खुशबुएँ बिखराने की क्षमता रखता है। भक्तिकाल से लेकर आज तक अपनी सात्विक यात्रा में दोहा छंद ने कई महत्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस परंपरागत छंद ने कविता के विभिन्न युगों और कालों में कथ्य के अनूठेपन के साथ हिन्दी साहित्य के इतिहास में अपनी दस्तावेज़ी उपस्थिति दर्ज़ कराते हुए अपने समय के खुरदुरे यथार्थ को भी पूरी संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त किया है। इंदौर के कीर्तिशेष कवि चन्द्रसेन ‘विराट’ ने दोहे की विशेषता को ही केन्द्रित करते हुए दोहा कहा है-‘बात ठोस संक्षिप्ततम, और दोष से मुक्त/कहने की यदि हो कला, तो दोहा उपयुक्त।’ यह दोहा छंद की लोकप्रियता और हिन्दी साहित्य में उसकी कालजयी भूमिका ही है कि वर्तमान समय में हिन्दी कवियों के साथ-साथ उर्दू के भी अनेक रचनाकार दोहे लिख रहे हैं, अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ अपने ‘दोहा विशेषांक’ प्रकाशित कर रही हैं और समवेत रूप में व मौलिक दोहा-संग्रह भी प्रचुर मात्रा में प्रकाशित हो रहे हैं। वर्तमान में दोहा छंद पर किया जा रहा कार्य, चाहे वह सृजनात्मक हो अथवा शोधपरक निश्चित रूप से हिन्दी कविता को समृद्ध करने वाला दस्तावेज़ी कार्य है।

मुरादाबाद में भी अनेक रचनाकार हैं जिन्होंने दोहा विधा में महत्वपूर्ण सृजन किया है किन्तु विशुद्ध दोहाकार के रूप में संभवतः किसी की पहचान नहीं बन सकी। यह सुखद है कि यहाँ के नवोदित रचनाकारों में अत्यंत संवेदनशील और संभावनाशील श्री राजीव ‘प्रखर’ द्वारा लिखे जा रहे धारदार दोहे उनकी पहचान धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण दोहाकार के रूप में बना रहे हैं। उनके दोहों की यह विशेषता है कि वह समसामयिक संदर्भों में साधारण सी लगने वाली बात को भी असाधारण तरीके से सहज रूप में अभिव्यक्त कर देते हैं। प्रखरजी ने अपने दोहों में भोगे हुए यथार्थ को भी केन्द्र में रखा है और जीवन-जगत के इन्द्रधनुषी रंगों को भी शब्द दिए हैं। कविता का मतलब सपाटबयानी नहीं होता, प्रतीकों के माध्यम से संवेदनशीलता के साथ कही हुई बात पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ती ही है, यह बात उनके दोहों में हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराती हुई दिखाई देती है। एक दोहा देखिए-

भूख-प्यास में घुल गए, जिस काया के रोग

उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग

भूख की भयावह त्रासदी के संदर्भ में सुपरिचित ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ का एक शे’र है-‘मैं अपनी भूख को ज़िन्दा नहीं रखता तो क्या करता/थकन जब हद से बढ़ती है तो हिम्मत को चबाती है।’ यह भूख ही है जिसे शान्त करने के लिए व्यक्ति सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत करता है, फिर भी उसे पेटभर रोटी मयस्सर नहीं हो पाती। देश में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो भूखे ही सो जाते हैं, वहीं कुछ लोग छप्पनभोग जीमते हैं और अपनी थाली में जूठन छोड़कर रोटियां बर्बाद करते हैं। यह पूँजीवाद का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव है कि अमीर और ज़्यादा अमीर होता जा रहा है तथा ग़रीब और ज़्यादा ग़रीब। भूख से हो रही इस आत्मघाती जंग से जूझते/पिसते आम आदमी की व्यथा को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं प्रखरजी-

फिर नैनों में बस गए, कर दी नींद खराब

कितने धोखेबाज़ हैं, दो रोटी के ख़्वाब


वहीं दूसरी ओर, ‘अनेकता मे एकता’ भारत की संस्कृति रही है, भारत की पहचान रही है और सही मायने में भारत की शक्ति भी यही है तभी तो आज भी गाँव के किसी परिवार की बेटी पूरे गाँव की बेटी होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी सभी धर्मों के लोग एक दूसरे के त्योहार प्रेम और उल्लास के साथ मनाते हैं। राजनीतिक रूप से प्रायोजित धार्मिक तथा जातीय उन्माद के इस विद्रूप समय में साम्प्रदायिक सौहार्द को मज़बूती से पुनर्स्थापित करने और राष्ट्र को सर्वोपरि रखने की ज़रूरत को प्रखरजी अपने दोहे में बड़ी शिद्दत के साथ महसूस करते हैं-

चाहे गूँजे आरती, चाहे लगे अज़ान

मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान


वर्तमान समय ही नहीं सदियों से नारी-उत्पीड़न मानव-सभ्यता को शर्मसार करने वाली सामाजिक विद्रूपता और सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। मानसिक और सामाजिक रूप से आधुनिकता सम्पन्न इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी स्त्री को दोयम दर्ज़ा ही प्राप्त है। वह घर की चाहरदीवारी के भीतर और बाहर समान रूप से प्रताड़ना का भाजन बनती ही रही है चाहे कन्याभ्रूण हत्या हो, घरेलू-हिंसा हो, दहेज उत्पीड़न हो या फिर शारीरिक शोषण हो। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की क्रूरतम घटनाओं के संबंध में अख़बारों में लगभग प्रतिदिन आने वाले समाचार पढ़कर बच्चियां तो भयाक्रांत होती ही हैं, मानवता भी लज्जित होती है। प्रखरजी इसी पीड़ा को अपने एक दोहे में समाज पर व्यंग्य करते हुए बेहद संवेदनशीलता के साथ उजागर करते हैं-

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगत से त्रास

जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास


आज के विसंगतियों और विषमताओं भरे अंधकूप समय में मानवता के साथ-साथ हमारे सांस्कृतिक मूल्य भी कहीं खो गए हैं, रिश्तों से अपनत्व की भावना और संवेदना कहीं अंतर्धान होती जा रही है और संयुक्त परिवारों की परंपरा लगभग टूट चुकी है लिहाजा आपस की बतियाहट अब कहीं महसूस नहीं होती। बुज़ुर्गों को पुराने ज़माने का आउटडेटेड सामान समझा जा रहा है। इसीलिए शहरों में वृद्धाश्रमों की संख्या और उनमें आकर रहने वाले सदस्यों की संख्या का ग्राफ़ अचानक बड़ी तेज़ी के साथ बढा है। समाज में व्याप्त विद्रूपताओं से आहत कविमन ने रिश्तों में मूल्यों की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से ही माँ के महत्व को अपने दोहों में गढ़ा है। माँ के प्रति श्रद्धा और आस्था को बढाने के साथ-साथ समाज को जाग्रत करने का भी पवित्र कार्य करता प्रखरजी का यह दोहा मन को छूने और मन पर छाने का काम करता है-

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस

जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास


अपनी कृति ‘समर करते हुए’ में कीर्तिशेष गीतकवि दिनेश सिंह ने कहा है कि ‘जो रचना अपने समय का साक्ष्य बनने की शक्ति नहीं रखती, जिनमें जीवन की बुनियादी सच्चाईयाँ केन्द्रस्थ नहीं होतीं तथा जिनका विजन स्पष्ट और जनधर्मी नहीं होता वह कलात्मकता के बाबजूद अप्रासंगिक रह जाती हैं।’ केवल दोहे ही नहीं साहित्य की अन्य कई विधाओं-गीत, लघुकथा, बाल कविता आदि के सृजन में भी रत राजीव प्रखर के दोहों को पढ़कर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवन की बुनियादी सच्चाइयों को केन्द्रस्थ रखकर रचे गए उनके दोहे अपने समय का साक्ष्य बनने की शक्ति रखने के साथ-साथ हिन्दी कविता को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध कर रहे हैं। 

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

ए.एल.-49, दीनदयाल नगर-।,काँठ रोड, मुरादाबाद-244001 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर - 9412805981


        


शनिवार, 2 जनवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की गीतिका ----इस नये साल की यूँ शुरूआत हो हर खुशी द्वार पर एक सौगात हो


इस नये साल की यूँ शुरूआत हो 

हर खुशी द्वार पर एक सौगात हो ।।1।।


लौट आये वही भोर खुशियों भरी 

आपदा मुक्त फिर देश-हालात हों ।।2।।


ये कदम ना रुकें,चल पड़ें जोश से

जिन्दगी से नयी फिर मुलाकात हो ।।3।।


भूख से अब तड़पता न कोई रहे

अन्न धन की सभी द्वार बरसात हो ।।4।।


सो सकें चैन से अब घरों में सभी 

खौफ से दूर अपनी सभी रात हों।।5।।


 ✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा

                           

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की रचना ------गए साल जैसा नहीं हाल होगा, है उम्मीद अच्छा नया साल होगा



गए    साल   जैसा    नहीं   हाल   होगा,

है   उम्मीद  अच्छा   नया  साल   होगा।


बढ़ेगी   न   केवल  अमीरों  की  दौलत,

ग़रीबों  के  हिस्से  भी कुछ माल होगा।


रहेगा   सजा    आशियाँ    रौशनी   का,

घरौंदा    अँधेरे    का    पामाल    होगा।


जगत  में  सभी   और   देशों  से  ऊँचा,

सखे!हिंद  का   ही  सदा  भाल  होगा।


न   होगा  फ़क़त  फाइलों-काग़ज़ों  में,

हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।


 ✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 3 । यह कृति वर्ष 2019 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी नई कविताएं हैं जो उनके पूर्व प्रकाशित काव्य संग्रहों अन्याय के विरुद्ध, काल भेद और भावना का मंदिर में प्रकाशित हो चुकी हैं ।



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डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 2 । यह कृति वर्ष 2019 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी गीति,दोहा और मुक्तक काव्य रचनाएं हैं



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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 1 । यह कृति वर्ष 2018 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी पूर्व प्रकाशित काव्य कृतियों 'भाव सुमन' (1996), 'पथ की अनुभूतियाँ (1997), 'विविधा (1999), युवकों सोचो !' (2003), 'सूत्रधार है मौन' (2007), 'रंग-रंग के दृश्य' (2009), 'नया भारत' (2012), 'हिन्दी की मुस्कान' (2018), 'फिर खिलेंगे फूल (2018) में प्रकाशित समग्र दोहों को सँजोया गया है। इसमें लगभग 6480 दोहे समाहित हैं।



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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी की रचना ----मंगलमय हो, आनन्दमय हो , नूतन वर्ष का शुभ आगमन


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी की रचना ----भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया । यह रचना हमें भेजी है उनकी सुपुत्री मनीषा चड्डा ने



यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया 

नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया 


तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे 

आज ही सर को घुटा ले, साल आया है नया 


जो पुरानी चप्पलें हैं उन्हें मंदिरों पर छोड़ कर

कुछ नए जूते उठा ले, साल आया है नया 


मैं अठन्नी दे रहा था तो भिखारी ने कहा

तू यहीं चादर बिछा ले, साल आया है नया


दो महीने बर्फ़ गिरने के बहाने चल गए

आज तो "यार" नहा ले, साल आया है नया


भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के 

साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया


दौड़ में यश और धन की जब पसीना आए तो 

'सब्र' साबुन से नहा ले, साल आया है नया


मौत से तेरी मिलेगी, फैमिली को फ़ायदा

आज ही बीमा करा ले, साल आया है नया 

✍️ हुल्लड़ मुरादाबादी

::::प्रस्तुति:::::

मनीषा चड्डा सुपुत्री स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत ----नये साल का आओ मिलकर, हम अभिनन्दन करते हैं


नये साल का आओ मिलकर, हम अभिनन्दन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


सच्ची, मीठी वाणी बोले, नहीं किसी का बुरा करें। 

हर मुश्किल का करें सामना, अन्यायी से नहीं डरें। 

वैर भाव सब आज मिटा कर, मन को चन्दन करते हैं। 

रोली, केसर , तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


ऊँच -नीच सब भेदभाव का, आओ अब हम अन्त करें। 

सतरंगी कुछ फूल खिलाकर, आशाओं के रंग भरें। 

 बिखरा कर के छटा निराली , मन को उपवन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


देखे हमने जो भी सपने, अब उनको साकार करें। 

देश प्रेम की अलख जगा कर, हर मन में विश्वास भरें। 

करे प्रगति ये देश हमारा, ऐसा चिन्तन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं। 


नये साल का मिल कर आओ, हम अभिनन्दन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


✍️ डाॅ ममता सिंह, मुरादाबाद

 

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की रचना ----आशा की इक नई किरण से स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा


आशा की इक नई किरण से स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

लेते हैं संकल्प यही हम मिटे जगत का हर अंधियारा। 

करनी है स्वीकार चुनौती कदम कदम पर आने वाली

नव वर्ष के मंगलमय का हो सपना साकार हमारा

✍️ शिशुपाल "मधुकर", मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी )आमोद कुमार अग्रवाल की रचना ----दिल में हिंदुस्तान बसाए रखना


चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना,

और अपना ईमान बनाए रखना,

पटल पर बिताई मीठी यादों का ,

टेबुल पर गुलदान सजाए रखना, 

कोई मज़हब, कोई जात हो हमारी,

दिल मे हिन्दुस्तान बसाए रखना ।

✍️ आमोद कुमार अग्रवाल

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की रचना ----शुभ हो नववर्ष




 

 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई(जनपद सम्भल) के साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल की रचना ---जा रहा है साल पिछला, इक नया फिर साल दे-


 

मुरादाबाद मंडल जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय की रचना -----शुभ सबको नवबर्ष, लो ये इक्कीस आया




 

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार इंद्र देव भारती का गीत ----है नवल वर्ष !हो तुम्हारा अवतरण शुभ मंगलम


 

मुरादाबाद के साहित्यकार पंकज दर्पण की रचना ----आने वाले साल में हो एक नई शुरुआत ...…


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना ----आया नूतन वर्ष है , लेकर नवल प्रभात


आया  नूतन  वर्ष  है , लेकर  नवल  प्रभात

कहता  है  विस्मृत  करो ,विगत अँधेरी रात

विगत  अँधेरी  रात ,  एक   दुःस्वप्न सरीखी

यह  ऐसी  खूँखार , नहीं  पहले  थी   दीखी

कहते रवि कविराय ,चलो नव लेकर काया

लेकर नव-उत्साह ,जन्म समझो नव आया

 रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल 99976 15451 


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) साहित्यकार अटल मुरादाबादी का नवगीत ----और समय की आकांक्षा ले, देखो नूतन साल आ रहा।


कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर बीता साल जा रहा।

और समय की आकांक्षा ले,

देखो नूतन साल आ रहा।

*******************

मन की डाली पर अब नित ही

कोमल कोंपल फूट रही है।

बीती बातों की यह श्रृंखला

खुद ही हमसे छूट रही है।

कोरोना का काला साया

दुनिया में बेचाल छा रहा।

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर बीता साल जा रहा।।

*******************

आओ लिख लें गीत नया अब।

सबकी खबर रखेगा बस रब।।

अनुपम फूलों की खुशबू से

महक रहा है घर-उपवन भी।

कोना कोना हुआ उल्लसित,

हर्षित है अब मही-गगन भी।

नये वर्ष का करें स्वागतम,

मौसम भी नवगीत गा रहा।

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर बीता साल जा रहा।।

✍️ अटल मुरादाबादी, नौएडा

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल(वर्तमान में मेरठ निवासी) साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी

 


लेते- देते शुभ कामना

वर्ष कितने ही बीत गये

रही अंजुरी प्यासी प्यासी

हाथ आये, सब छिटक गये

जब भी जोड़े कर जीवन में

वर्ष कितने ही रीझ गये।। 

है बैसाखी पर समर्पण 

शून्य भाव, सजल तर्पण

ढोनी है परम्परा सबको

वर्ष कितने ही मीत गये।। 

पर आशा क्यों हार माने

नभ में सूर्य, शशि शेष है

हुई भोर, उड़े है पंछी

वर्ष कितने ही जीत गये।। 

सोया कब क्षितिज सवेरा

कुछ पल ही तिमिर बसेरा

पंख रंग, उड़ती है तितली

वर्ष कितने ही शीत गये।।

लेते- देते शुभ कामना

वर्ष कितने ही बीत गये।। 

✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी, मेरठ

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की रचना ---नवल वर्ष में हिल-मिल सब बोलें - बतलाएँ


बतलाएँ क्या आपको कैसे बीता साल

वक्र दृष्टि शनि की हुई, चली राहु ने चाल

चली राहु ने चाल, कमाना -खाना मुश्किल

सूने सब त्योहार, रही फीकी हर महफ़िल

चाहे दिल "मासूम" लौट कर शुभ दिन आएँ

नवल वर्ष में हिल-मिल सब बोलें - बतलाएँ

✍️ मोनिका "मासूम",मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की रचना ---साल एक बीत गया


काल फिर जीत गया

साल एक बीत गया

आ गया साल नया

लेकर के जाल नया


अब नहीं फंसना है

मन अपना कसना है

बुद्धि को छोड़ना है

विवेक से चलना है


प्यार को लुटाना है

सबका साथ पाना है

एकता सद्भाव के

गीत हमें गाना है


प्रभु से यही प्रार्थना

हृदय से कामना

देशप्रेम से सजे

हम सबकी भावना

✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेसीडेंसी

मधुबनी के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----थामी बीस ने सर्दी में इक्कीस की पक्की डोर

 


थामी बीस ने सर्दी में

इक्कीस की पक्की डोर 

जा बैठा है अब किनारे

कर कोरोना का शोर ।

टीका आने की राह है

देख रही अब प्रजा सारी

कैसे देगी सब जनों को

सोच रही सरकार हमारी ।

भूख गरीबी और बेकारी

जनसंख्या भी कितनी भारी

जल संकट धूल धुआँ धुंध

फैली अनगिन हैं बीमारी ।

बिसर गयीं सारी ही बातें

महामारी के फैलावे में

कैसे स्वस्थ हो देश हमारा

रह न जाये बहकावे में ।

✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना ---आने वाले नए साल का , इम्तेहान अभी बाकी है


अलविदा हुआ दो हजार बीस।

कुछ खट्टी -मीठी यादें दे कर ।

कुछ उलझी -सुलझी सी बातें दे कर ।

कुछ नया हुआ या नही हुआ ।

लॉकडाउन तो एकदम नया हुआ ।

अनुभव दे गया हजारो ऐसे ।

जिनसे सीखने को मिला नया ।

जीना सीखा गया हर परिस्थिति में।

चाहे घर में हो या बाहर हो ।

समय कभी भी बदल सकता है ।

कुल मिला कर बता गया ।

कुछ अपने -पराये दूर हुए , तो 

कुछ दूर हो कर पास आये ।

गिले-शिकवे सभी भुला कर ,

कोरोना काल ने मिला दिया ।

जाते -जाते बता गया ,कि 

जंग अभी बाकी है ।

आने वाले नए साल का ,

इम्तेहान अभी बाकी है ।

✍️ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की रचना----नव वर्ष तुम्हारी आहट ने ,मेरी मुस्कान लौटाई है


 जो बीत गया उसे जाने दो

             कुछ नया उभर कर आने दो

    कुछ लम्हे बेशक घायल थे

             अब वक्त को मरहम लाने दो

   जो गुजरा है वो गुजर गया

              सन्नाटा था पर बिसर गया

  अब दस्तक कल की आई है 

                फिर जोश ने ली अंगड़ाई है 

   नव वर्ष तुम्हारी आहट ने 

                मेरी मुस्कान लौटाई है

   मैं फिर उमंग से सज्जित हो

               कस कमर खड़ा हूँ चौखट पर

   नूतन प्रभात की किरणों से

               आरती तुम्हारी गाऊँगा

  नव वर्ष तुम्हारे वंदन को

               अपने कल के अभिनंदन को

  मैं फिर जीवंत हो जाऊँगा 

               मैं स्वप्न नए फिर पाऊंँगा

  मैं निर्भय यशस्वी मानव हूँ 

               जो हर लम्हे पर विजयी है

  नव वर्ष  "नव प्रयास , नव कर्मों की" 

         नव श्रंखला मैं पुनः सजाऊँगा ।। 

✍️सीमा वर्मा, मुरादाबाद

    

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी की रचना ----हम नव वर्ष में आए हैं


 जीत का यह जश्न देख ख्वाब मुस्कुराए हैं

टूटी सी उम्मीदो ने फ़िर दिए जलाए हैं।

कर्म की इन बस्तियों में गांव फिर  बसाए हैं।

    फिर से मेरी आंखों ने नव स्वप्न  सजाए है

 फिर से मेरे चित्त में यह भाव उभर आए हैं।

 फिर  से इन परिंदों ने पंख नए  पाए हैं।

 गाते -गाते गीत नए आसमां पर आए हैं।

 गुजार कर हसीन वर्ष नव वर्ष में आए हैं।

  हम नव वर्ष में आए हैं।

  सर्द रात है ज़रा ,है बड़ी कठिन डगर।

  सहमी सी है हर दिशा, सहमे -सहमे हैं सज़र।

  मुस्कुराती धीमे-धीमे उस सुबह पर मेरी नजर।

  खूबसूरत  आंखों ने चित्र  वो सजाए हैं।

टूटी सी उम्मीदो ने फिर दिए जलाए हैं।

 कर्म की इन बस्तियों में गांव फिर बसाए हैं।

 गुजार कर हसीन वर्ष नव वर्ष में आए हैं।

  हम नव वर्ष में आए हैं।

 यूं तो और एक वर्ष जिंदगी का कम हुआ।

 पर मेरे तजुर्बे में एक वर्ष और जुड़ा।

 बीते पूरे वर्ष का हर समां हसीन था।

 विषाद युक्त क्षण भी मुझको वहां मिला है सीख का।

 कुछ जुड़ी हैं खट्टी- मीठी यादें हार जीत का।

 रेखा गुन - गुना रही है फिर  गीत अपनी जीत का।

 जीत का यह जश्न देख ख्वाब मुस्कुराए हैं।

✍️ रेखा रानी, गजरौला

मुरादाबाद के साहित्यकार के पी सिंह सरल की रचना ---नव वर्ष मुबारक हो सब को ये खुशियों का संचार करे !

 


नव वर्ष मुबारक हो सब को ये खुशियों का संचार करे !  

 छल प्रपंच अरु द्वेश भाव दुख दूर समस्त विकार करे  !! 

अरि से अरिता त्याग अधम को अच्छी राह दिखाओ तुम!  

तन मन में जो व्याप्त बुराई सब को दूर भगाओ तुम!! 

अहंकार मद मोह भुलाये पावन सत्य बिचार भरे !      

लघुता प्रभुता भाव भुला कर समता का व्यवहार करो !  

सच्चे मन से सेवा करके दुखियों के दुख दूर करो !!      

विश्व बन्धु के भाव जगें नहिं कोई किसी पर वार  करे !      

पावन रीति पुनीत मार्ग को साधु जन अपनाते हैं !      

कर्मठ पुरुषों की राहों पर देव सुमन बर्षाते हैं !!     

 'के पी'जन निष्काम रहें तो खुशियों से संसार भरे  !      

नव वर्ष मुबारक हो सब क़ो ये खुशियों का संचार करे  !!     

✍️के पी सिंह 'सरल'  , मुरादाबाद             

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

अलविदा 2020 : बीत गया एक और साल । इस साल का अधिकांश समय कोरोना काल के चलते लोकडाउन में बीता। इस दौरान ऑन लाइन गतिविधियों में सक्रियता रही । शेष समय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के बीच गुजरा । इस साल भी तमाम उपलब्धियां हासिल हुईं । अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेखों का प्रकाशन भी हुआ और विभिन्न आयोजनों में काव्य पाठ का अवसर भी मिला । इस साल स्कूली बच्चों को स्वतंत्रता संग्राम में मुरादाबाद के योगदान के बारे में जानकारी देने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बीते साल के मधुर, अविस्मरणीय पल आपके साथ साझा कर रहा हूँ । डॉ मनोज रस्तोगी 8, जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नंबर 9456687822

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वर्ष 2020 में मुरादाबाद के साहित्यकारों की प्रकाशित कृतियों और सम्मान पर केंद्रित शुभम शर्मा का दैनिक अमृत विचार समाचार पत्र के 31 दिसम्बर के अंक में प्रकाशित आलेख .......


 

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकार स्मृतिशेष दुष्यन्त कुमार की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा ......


 वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत मुरादाबाद मंडल के बिजनौर जनपद के साहित्यकार दुष्यंत कुमार को उनकी पुण्यतिथि पर 29 व 30 दिसम्बर 2020 को याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की।   

सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उनके जीवन के बारे में विस्तार से बताया कि दुष्यंत कुमार उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर के रहने वाले थे। दुष्यन्त कुमार का जन्म बिजनौर जनपद उत्तर प्रदेश के ग्राम राजपुर नवादा में एक सितम्बर 1933 को और निधन भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को हुआ था| इलाहबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे बाद में प्रोड्यूसर पद पर ज्वाइन करना था लेकिन तभी हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य अस्त हो गया| वास्तविक जीवन में दुष्यन्त बहुत सहज और मनमौजी व्यक्ति थे| सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की। समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यन्त कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है| दुष्यंत एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं| दुष्यंत का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है| दुष्यंत कुमार अपने हाथों में अंगारे लिए ऐसा शायर है जो अपने लोगों की ज़िंदगियां अन्धेरी होने के कारण ही नहीं बताता बल्कि उन्हें रौशन करने के उपाय भी सुझाता है। इस कवि ने कविता, गीत, गज़ल, काव्य नाटक, कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया। उन्होंने पटल पर उनकी निम्न रचनाएं भी प्रस्तुत कीं-----

*1.*

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है

आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है

ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए

यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो

इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है

मस्लहत—आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम

तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है

इस क़दर पाबन्दी—ए—मज़हब कि सदक़े आपके

जब से आज़ादी मिली है मुल्क़ में रमज़ान है

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए

मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ

हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है

*2.*

ये शफ़क़ शाम हो रही है अब

और हर गाम हो रही है अब

जिस तबाही से लोग बचते थे

वो सरे आम हो रही है अब

अज़मते—मुल्क इस सियासत के

हाथ नीलाम हो रही है अब

शब ग़नीमत थी, लोग कहते हैं

सुब्ह बदनाम हो रही है अब

जो किरन थी किसी दरीचे की

मरक़ज़े बाम हो रही है अब

तिश्ना—लब तेरी फुसफुसाहट भी

एक पैग़ाम हो रही है अब

*3.*

नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं

जरा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं

वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है

मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं

यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन

ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं

चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना

ये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहीं

तमाम रात तेरे मैकदे में मय पी है

तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं

कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी

कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं

ये लोग होमो-हवन में यकीन रखते है

चलो यहां से चलें, हाथ जल न जाए कहीं

*4.*

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी

शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

*5.*

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

मैं बेपनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ

मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं

तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरह

तू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं

तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँ

अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहीं

तुझे क़सम है ख़ुदी को बहुत हलाक न कर

तु इस मशीन का पुर्ज़ा है तू मशीन नहीं

बहुत मशहूर है आएँ ज़रूर आप यहाँ

ये मुल्क देखने लायक़ तो है हसीन नहीं

ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो

तुम्हारे हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं

*6.*

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो

अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो

दर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा

इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे

आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे

आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया

इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता

एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की

तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो

*7.*

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है

चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये

न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही

कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता

मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये

जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले

मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये

*8.*

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं

कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो

धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं

बूँद टपकी थी मगर वो बूँदो—बारिश और है

ऐसी बारिश की कभी उनको ख़बर होगी नहीं

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है

पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं

आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर

आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं

सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की अस्लियत

हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं

 ***अपनी प्रेमिका से

मुझे स्वीकार हैं वे हवाएँ भी

जो तुम्हें शीत देतीं

और मुझे जलाती हैं

किन्तु

इन हवाओं को यह पता नहीं है

मुझमें ज्वालामुखी है

तुममें शीत का हिमालय है।

फूटा हूँ अनेक बार मैं,

पर तुम कभी नहीं पिघली हो,

अनेक अवसरों पर मेरी आकृतियाँ बदलीं

पर तुम्हारे माथे की शिकनें वैसी ही रहीं

तनी हुई.

तुम्हें ज़रूरत है उस हवा की

जो गर्म हो

और मुझे उसकी जो ठण्डी!

फिर भी मुझे स्वीकार है यह परिस्थिति

जो दुखाती है

फिर भी स्वागत है हर उस सीढ़ी का

जो मुझे नीचे, तुम्हें उपर ले जाती है

काश! इन हवाओं को यह सब पता होता।

तुम जो चारों ओर

बर्फ़ की ऊँचाइयाँ खड़ी किए बैठी हो

(लीन... समाधिस्थ)

भ्रम में हो।

अहम् है मुझमें भी

चारों ओर मैं भी दीवारें उठा सकता हूँ

लेकिन क्यों?

मुझे मालूम है

दीवारों को

मेरी आँच जा छुएगी कभी

और बर्फ़ पिघलेगी

पिघलेगी!

मैंने देखा है

(तुमने भी अनुभव किया होगा)

मैदानों में बहते हुए उन शान्त निर्झरों को

जो कभी बर्फ़ के बड़े-बड़े पर्वत थे

लेकिन जिन्हें सूरज की गर्मी समतल पर ले आई।

देखो ना!

मुझमें ही डूबा था सूर्य कभी,

सूर्योदय मुझमें ही होना है,

मेरी किरणों से भी बर्फ़ को पिघलना है,

इसीलिए कहता हूँ-

अकुलाती छाती से सट जाओ,

क्योंकि हमें मिलना है।

***फिर कर लेने दो प्यार प्रिये

अब अंतर में अवसाद नहीं

चापल्य नहीं उन्माद नहीं

सूना-सूना सा जीवन है

कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं


तव स्वागत हित हिलता रहता

अंतरवीणा का तार प्रिये ..


इच्छाएँ मुझको लूट चुकी

आशाएं मुझसे छूट चुकी

सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ

मेरे हाथों से टूट चुकी


खो बैठा अपने हाथों ही

मैं अपना कोष अपार प्रिये

फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..


***सूना घर


सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।


पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर

अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर

खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।


पर कोई आया गया न कोई बोला

खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला

आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।


फिर घर की खामोशी भर आई मन में

चूड़ियाँ खनकती नहीं कहीं आँगन में

उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।


पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साए हैं

कमरे के कोने पास खिसक आए हैं

सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।

***एक आशीर्वाद

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

भावना की गोद से उतर कर

जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।

चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये

रूठना मचलना सीखें।

हँसें

मुस्कुराएँ

गाएँ।

हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें

उँगली जलाएँ।

अपने पाँव पर खड़े हों।

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

***सूर्यास्त: एक इम्प्रेशन

सूरज जब

किरणों के बीज-रत्न

धरती के प्रांगण में

बोकर

हारा-थका

स्वेद-युक्त

रक्त-वदन

सिन्धु के किनारे

निज थकन मिटाने को

नए गीत पाने को

आया,

तब निर्मम उस सिन्धु ने डुबो दिया,

ऊपर से लहरों की अँधियाली चादर ली ढाँप

और शान्त हो रहा।


लज्जा से अरुण हुई

तरुण दिशाओं ने

आवरण हटाकर निहारा दृश्य निर्मम यह!

क्रोध से हिमालय के वंश-वर्त्तियों ने

मुख-लाल कुछ उठाया

फिर मौन सिर झुकाया

ज्यों – 'क्या मतलब?'

एक बार सहमी

ले कम्पन, रोमांच वायु

फिर गति से बही

जैसे कुछ नहीं हुआ!

मैं तटस्थ था, लेकिन

ईश्वर की शपथ!

सूरज के साथ

हृदय डूब गया मेरा।

अनगिन क्षणों तक

स्तब्ध खड़ा रहा वहीं

क्षुब्ध हृदय लिए।

औ' मैं स्वयं डूबने को था

स्वयं डूब जाता मैं

यदि मुझको विश्वास यह न होता –-

'मैं कल फिर देखूँगा यही सूर्य

ज्योति-किरणों से भरा-पूरा

धरती के उर्वर-अनुर्वर प्रांगण को

जोतता-बोता हुआ,

हँसता, ख़ुश होता हुआ।'

ईश्वर की शपथ!

इस अँधेरे में

उसी सूरज के दर्शन के लिए

जी रहा हूँ मैं

कल से अब तक!

   


चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि दुष्यन्त मुहावरों की तरह आम आदमी की ज़बान पर चढ़ कर आज भी जहां-तहां कभी तबीयत से पत्थर उछालता मिल जाता है तो कभी हिमालय से गंगा निकालने लगता है राजा भगीरथ की तरह। 


वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि दुष्यंत कुमार एक ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने न केवल सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विद्रूपताओं- विसंगतियों के खिलाफ अपनी रचनाओं के जरिए आवाज उठाई बल्कि वे उस आवाज में असर के लिए बेकरार थे। वे बंद दरवाजे को तोड़ने का जतन कर रहे थे। वे जर्जर नाव के सहारे लहरों से टकरा रहे थे । वे देख रहे थे- इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है, हर किसी का पांव घुटनों तक सना है । उनके सामने स्थितियां थी- इस शहर में वो कोई बारात हो या वारदात, अब किसी भी बात पर खुलती नहीं खिड़कियां। वह हतप्रभ थे यह देखकर- यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं । इन तमाम स्थितियों को खत्म करने के लिए उनकी लेखनी ने आह्वान किया - कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं। पुराने पड़ गए डर को फेंक दो तुम । चारों तरफ बिखरी राख में चिंगारियां देखो और पलकों पर शहतीर उठाकर एक पत्थर तो तबीयत से उछालो। उनका मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहीं था, वह पर्वत सी हो गई पीर को पिघलाना चाहते थे, हिमालय से गंगा निकालना चाहते थे। वे चाहते थे बुनियाद हिले और यह सूरत बदले ।

प्रसिद्ध गीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि दुष्यंत कुमार स्थापित परंपराओं के विरुद्ध जाकर नई परंपराओं को इस तरह विकसित करने वाले रचनाकार थे कि नई पीढ़ियां उनसे प्रेरणा हासिल कर सकें। 


युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि उनके महान व क्रांतिकारी रचनाकर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह   तात्कालिक रूप से प्रभावशाली होने के साथ-साथ भविष्य की तस्वीर को भी स्वय॔ में समाहित किये रहा।

युवा कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि दुष्यंत कुमार अपने रचनाकर्म के माध्यम से आमजन में इतने रचे बसे हैं कि दुष्यंत के बिना कोई महफिल, कोई कार्यक्रम यहाँ तक कि संसद के अधिवेशन भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते। 

:::::;;प्रस्तुति::::::

 ज़िया ज़मीर

ग्रुप एडमिन

मुरादाबाद लिटरेरी क्लब

मो०8755681225