रविवार, 3 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की दोहा यात्रा के संदर्भ में योगेंद्र वर्मा व्योम का आलेख ---. कितने धोखेबाज़ हैं, दो रोटी के ख़्वाब


‘दोहा’ हिन्दी कविता का ऐसा छंद है जो आज भी आमजन के हृदय में बसता है, ज़ुबान पर हर वक़्त विराजता है और दो पंक्तियों की अपनी छोटी-सी देह में ही कथ्य की सम्पूर्णता को समाहित कर बहुरंगी खुशबुएँ बिखराने की क्षमता रखता है। भक्तिकाल से लेकर आज तक अपनी सात्विक यात्रा में दोहा छंद ने कई महत्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस परंपरागत छंद ने कविता के विभिन्न युगों और कालों में कथ्य के अनूठेपन के साथ हिन्दी साहित्य के इतिहास में अपनी दस्तावेज़ी उपस्थिति दर्ज़ कराते हुए अपने समय के खुरदुरे यथार्थ को भी पूरी संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त किया है। इंदौर के कीर्तिशेष कवि चन्द्रसेन ‘विराट’ ने दोहे की विशेषता को ही केन्द्रित करते हुए दोहा कहा है-‘बात ठोस संक्षिप्ततम, और दोष से मुक्त/कहने की यदि हो कला, तो दोहा उपयुक्त।’ यह दोहा छंद की लोकप्रियता और हिन्दी साहित्य में उसकी कालजयी भूमिका ही है कि वर्तमान समय में हिन्दी कवियों के साथ-साथ उर्दू के भी अनेक रचनाकार दोहे लिख रहे हैं, अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ अपने ‘दोहा विशेषांक’ प्रकाशित कर रही हैं और समवेत रूप में व मौलिक दोहा-संग्रह भी प्रचुर मात्रा में प्रकाशित हो रहे हैं। वर्तमान में दोहा छंद पर किया जा रहा कार्य, चाहे वह सृजनात्मक हो अथवा शोधपरक निश्चित रूप से हिन्दी कविता को समृद्ध करने वाला दस्तावेज़ी कार्य है।

मुरादाबाद में भी अनेक रचनाकार हैं जिन्होंने दोहा विधा में महत्वपूर्ण सृजन किया है किन्तु विशुद्ध दोहाकार के रूप में संभवतः किसी की पहचान नहीं बन सकी। यह सुखद है कि यहाँ के नवोदित रचनाकारों में अत्यंत संवेदनशील और संभावनाशील श्री राजीव ‘प्रखर’ द्वारा लिखे जा रहे धारदार दोहे उनकी पहचान धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण दोहाकार के रूप में बना रहे हैं। उनके दोहों की यह विशेषता है कि वह समसामयिक संदर्भों में साधारण सी लगने वाली बात को भी असाधारण तरीके से सहज रूप में अभिव्यक्त कर देते हैं। प्रखरजी ने अपने दोहों में भोगे हुए यथार्थ को भी केन्द्र में रखा है और जीवन-जगत के इन्द्रधनुषी रंगों को भी शब्द दिए हैं। कविता का मतलब सपाटबयानी नहीं होता, प्रतीकों के माध्यम से संवेदनशीलता के साथ कही हुई बात पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ती ही है, यह बात उनके दोहों में हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराती हुई दिखाई देती है। एक दोहा देखिए-

भूख-प्यास में घुल गए, जिस काया के रोग

उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग

भूख की भयावह त्रासदी के संदर्भ में सुपरिचित ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ का एक शे’र है-‘मैं अपनी भूख को ज़िन्दा नहीं रखता तो क्या करता/थकन जब हद से बढ़ती है तो हिम्मत को चबाती है।’ यह भूख ही है जिसे शान्त करने के लिए व्यक्ति सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत करता है, फिर भी उसे पेटभर रोटी मयस्सर नहीं हो पाती। देश में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो भूखे ही सो जाते हैं, वहीं कुछ लोग छप्पनभोग जीमते हैं और अपनी थाली में जूठन छोड़कर रोटियां बर्बाद करते हैं। यह पूँजीवाद का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव है कि अमीर और ज़्यादा अमीर होता जा रहा है तथा ग़रीब और ज़्यादा ग़रीब। भूख से हो रही इस आत्मघाती जंग से जूझते/पिसते आम आदमी की व्यथा को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं प्रखरजी-

फिर नैनों में बस गए, कर दी नींद खराब

कितने धोखेबाज़ हैं, दो रोटी के ख़्वाब


वहीं दूसरी ओर, ‘अनेकता मे एकता’ भारत की संस्कृति रही है, भारत की पहचान रही है और सही मायने में भारत की शक्ति भी यही है तभी तो आज भी गाँव के किसी परिवार की बेटी पूरे गाँव की बेटी होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी सभी धर्मों के लोग एक दूसरे के त्योहार प्रेम और उल्लास के साथ मनाते हैं। राजनीतिक रूप से प्रायोजित धार्मिक तथा जातीय उन्माद के इस विद्रूप समय में साम्प्रदायिक सौहार्द को मज़बूती से पुनर्स्थापित करने और राष्ट्र को सर्वोपरि रखने की ज़रूरत को प्रखरजी अपने दोहे में बड़ी शिद्दत के साथ महसूस करते हैं-

चाहे गूँजे आरती, चाहे लगे अज़ान

मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान


वर्तमान समय ही नहीं सदियों से नारी-उत्पीड़न मानव-सभ्यता को शर्मसार करने वाली सामाजिक विद्रूपता और सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। मानसिक और सामाजिक रूप से आधुनिकता सम्पन्न इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी स्त्री को दोयम दर्ज़ा ही प्राप्त है। वह घर की चाहरदीवारी के भीतर और बाहर समान रूप से प्रताड़ना का भाजन बनती ही रही है चाहे कन्याभ्रूण हत्या हो, घरेलू-हिंसा हो, दहेज उत्पीड़न हो या फिर शारीरिक शोषण हो। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की क्रूरतम घटनाओं के संबंध में अख़बारों में लगभग प्रतिदिन आने वाले समाचार पढ़कर बच्चियां तो भयाक्रांत होती ही हैं, मानवता भी लज्जित होती है। प्रखरजी इसी पीड़ा को अपने एक दोहे में समाज पर व्यंग्य करते हुए बेहद संवेदनशीलता के साथ उजागर करते हैं-

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगत से त्रास

जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास


आज के विसंगतियों और विषमताओं भरे अंधकूप समय में मानवता के साथ-साथ हमारे सांस्कृतिक मूल्य भी कहीं खो गए हैं, रिश्तों से अपनत्व की भावना और संवेदना कहीं अंतर्धान होती जा रही है और संयुक्त परिवारों की परंपरा लगभग टूट चुकी है लिहाजा आपस की बतियाहट अब कहीं महसूस नहीं होती। बुज़ुर्गों को पुराने ज़माने का आउटडेटेड सामान समझा जा रहा है। इसीलिए शहरों में वृद्धाश्रमों की संख्या और उनमें आकर रहने वाले सदस्यों की संख्या का ग्राफ़ अचानक बड़ी तेज़ी के साथ बढा है। समाज में व्याप्त विद्रूपताओं से आहत कविमन ने रिश्तों में मूल्यों की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से ही माँ के महत्व को अपने दोहों में गढ़ा है। माँ के प्रति श्रद्धा और आस्था को बढाने के साथ-साथ समाज को जाग्रत करने का भी पवित्र कार्य करता प्रखरजी का यह दोहा मन को छूने और मन पर छाने का काम करता है-

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस

जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास


अपनी कृति ‘समर करते हुए’ में कीर्तिशेष गीतकवि दिनेश सिंह ने कहा है कि ‘जो रचना अपने समय का साक्ष्य बनने की शक्ति नहीं रखती, जिनमें जीवन की बुनियादी सच्चाईयाँ केन्द्रस्थ नहीं होतीं तथा जिनका विजन स्पष्ट और जनधर्मी नहीं होता वह कलात्मकता के बाबजूद अप्रासंगिक रह जाती हैं।’ केवल दोहे ही नहीं साहित्य की अन्य कई विधाओं-गीत, लघुकथा, बाल कविता आदि के सृजन में भी रत राजीव प्रखर के दोहों को पढ़कर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवन की बुनियादी सच्चाइयों को केन्द्रस्थ रखकर रचे गए उनके दोहे अपने समय का साक्ष्य बनने की शक्ति रखने के साथ-साथ हिन्दी कविता को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध कर रहे हैं। 

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

ए.एल.-49, दीनदयाल नगर-।,काँठ रोड, मुरादाबाद-244001 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर - 9412805981


        


8 टिप्‍पणियां:

  1. एक दोहा कार के रूप में अपनी अच्छी पहचान स्थापित कर चुके श्रेष्ठ रचनाकार श्री राजीव प्रखर की दोहा - यात्रा के संबंध में श्री योगेंद्र वर्मा व्योम जी का लेख पसंद आया । प्रखर जी के दोहों में जो विचार और भाव कुशल शिल्प के साथ चित्रित हुए हैं , उन पर सार्थक टिप्पणियाँ समीक्षक महोदय ने की हैंं । बधाई

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  2. बेहद सटीक विश्लेषण भाई राजीव जी की रचनाधर्मिता का,बधाई हो भाई राजीव प्रखर जी व शानदार आलेख हेतु बधाई आ. व्योम जी 💐💐💐💐🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
    ✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

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  3. भाई राजीव प्रखर जी की रचनाधर्मिता पर बहुत सुंदर सार्थक आलेख, हार्दिक बधाई भाई राजीव जी 💐💐
    ✍️ डॉ ममता शर्मा, मुरादाबाद

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  4. भाई राजीव प्रखर जी को बहुत बहुत बधाई.एक दोहाकार के रूप में
    अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
    आदरणीय व्योम जी का बहुत सुन्दर आलेख। आप सबको शुभकामनाएं। ����

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