लेते- देते शुभ कामना
वर्ष कितने ही बीत गये
रही अंजुरी प्यासी प्यासी
हाथ आये, सब छिटक गये
जब भी जोड़े कर जीवन में
वर्ष कितने ही रीझ गये।।
है बैसाखी पर समर्पण
शून्य भाव, सजल तर्पण
ढोनी है परम्परा सबको
वर्ष कितने ही मीत गये।।
पर आशा क्यों हार माने
नभ में सूर्य, शशि शेष है
हुई भोर, उड़े है पंछी
वर्ष कितने ही जीत गये।।
सोया कब क्षितिज सवेरा
कुछ पल ही तिमिर बसेरा
पंख रंग, उड़ती है तितली
वर्ष कितने ही शीत गये।।
लेते- देते शुभ कामना
वर्ष कितने ही बीत गये।।
✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी, मेरठ
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