जो बीत गया उसे जाने दो
कुछ नया उभर कर आने दो
कुछ लम्हे बेशक घायल थे
अब वक्त को मरहम लाने दो
जो गुजरा है वो गुजर गया
सन्नाटा था पर बिसर गया
अब दस्तक कल की आई है
फिर जोश ने ली अंगड़ाई है
नव वर्ष तुम्हारी आहट ने
मेरी मुस्कान लौटाई है
मैं फिर उमंग से सज्जित हो
कस कमर खड़ा हूँ चौखट पर
नूतन प्रभात की किरणों से
आरती तुम्हारी गाऊँगा
नव वर्ष तुम्हारे वंदन को
अपने कल के अभिनंदन को
मैं फिर जीवंत हो जाऊँगा
मैं स्वप्न नए फिर पाऊंँगा
मैं निर्भय यशस्वी मानव हूँ
जो हर लम्हे पर विजयी है
नव वर्ष "नव प्रयास , नव कर्मों की"
नव श्रंखला मैं पुनः सजाऊँगा ।।
✍️सीमा वर्मा, मुरादाबाद
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