देखकर तैयार धानों की फसल को।
आ गये तूफान आंधी और बारिश।
स्वप्न कुछ देखे थे हरसुख चौधरी ने,
आस एक पाली थी रामू की बुआ ने।
कर्ज इन दानों के ऊपर ले लिया था,
लाड़ले के जन्मदिन पर हरखुआ ने।।
सबकी उम्मीदों को मिट्टी में मिलाकर,
खा गये तूफान आंधी और बारिश।।
इस दिवाली पर नये कपड़े बनेंगे।
सोचते थे घर में बूढ़े और बच्चे।
कल ही तो कलुआ ने आकर के कहा था,
पक रहे इस बार अम्मा धान अच्छे।।
आज बनकर दर्द गम के मेघ काले,
छा गये तूफान आंधी और बारिश।।
कर रहे अट्टहास काले मेघ अब भी,
पूर्णिमा की रात को मावस बनाकर।
हँस रही हैं बिजलियाँ अम्बर में बैठी,
छीनकर खुशियाँ हमारी खिलखिलाकर।।
छीनकर सबकुछ हमारा जाने क्या ही,
पा गये तूफान आंधी और बारिश।।
✍️ प्रदीप कुमार "दीप"
सुजातपुर, सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मो०-8755552615
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