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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी) ए टी ज़ाकिर की कविता --- नया कानून
✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोरपंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2,फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail- atzakir@gmail.com
मुरादाबाद की ( वर्तमान में नई दिल्ली निवासी) साहित्यकार मंगला रस्तोगी की कविता ----आखिर कब तक
तारीख़ बदलती रही हर बार
साल आते रहे, जाते रहे
बदलती रहीं सत्तायेंं
नहीं बदली रेप की मानसिकता
1973 में अरुणा शॉनबाग
1980 में बागपत में हुआ
माया त्यागी कांड
या हो..
2012 का निर्भया रेप केस
यहां तक की कठुआ रेप केस के बाद भी
क्यों जगा नहीं हिन्दुस्तान?
बात हाथरस की हो या हो
किसी शहर मोहल्ले की
देख हैवानियत दरिंदों की
जन्म लेने से भारत में
अब बेटी की रूह कांंपती होगी
देश की अंतरात्मा अब भी नहीं
तो पता नहीं फिर कब जागेगी
बेटी बचाओ तो कैसे हर मां
दिन रात यही सोचती होगी
बलात्कारी देश के हर कोने में छुपा है।
हर गली और हर चौराहे पर है,
वो बस में भी है,
वो स्कूल में भी है,
वो जेलों में भी है,
वो अस्पतालों में भी है,
वो धार्मिक संस्थानों में भी है,
वो कठुआ में भी है,
वो उन्नाव में भी है।
वो शहर में भी है
वो गांंव में भी है
कौन सी जगह बताओ
जहां वो नहीं
धर्म-मज़हब ,जात -पात को
ना हथियार बनाओ
साथ एक दूसरे का दो
मानवता का धर्म निभाओ
मासूमोंं को करो सुरक्षित हाथ बढ़ाओ
दरिंदगी करने वालोंं की
इस खतपतवार का खात्मा
अब बहुत जरूरी है
क्यों कि बलात्कारी
देश के हर कोने में छुपा है।
मंगला रस्तोगी, नई दिल्ली
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----बधाई
ज़िले के लोकप्रिय समाचारपत्र में छपा कविंद्र जी का मुक्तक सबको बहुत पसन्द आया और उनके पास बधाई संदेशों की लाइन लग गई
उनको पढ़कर कविंद्र जी सोच रहे थें "येे कैसी बधाई है,इस मुक्तक मेेें तो एक शब्द भी मेरा नहीं है।पहली पंक्ति पत्नी ने और दूसरी पंक्ति कविमित्र ने बदल दी थी।तीसरी पंक्ति में मात्रा दोष बताकर गुरुजी ने नई पंक्ति डाल दी थी,और चौथी पंक्ति संपादक महोदय को रुचिकर नहीं लगी तो उन्होंने अपने हिसाब से लिख दी थी।"
✍️
डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505,आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---- मां
राजू ने माँ के कंधे पर हाथ रखकर कहा "माँ !भूख लगी है।रोटी दो ना।माँ तुम सुनती क्यों नहीं ?"
काफी देर हो गई बच्चे को कहते हुए, आखिर माँ ने कहा," जा पड़ोस से मांग ला--।"
बच्चा गया और रोटी मांग लाया।"लो माँ तुम भी खा लो ।"
" नहीं बेटा।"
" परन्तु माँ तुम खाओगी नहीं तो जियोगी कैसे ?"
माँ बोली," बेटा!मैं तुझे देख कर ही जी लूंगी--तू रोटी तो खा मेरे लाल ।"
✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---- लॉक डाउन
लॉक डाउन में चप्पे चप्पे पर पुलिस बल तैनात था कोरोना संक्रमण रोकने के लिये पुलिस सख्ती कर रही थी किसी को घर से बाहर नही निकलने दे रही थी चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था चौराहे पर ड्यूटी दे रहे दरोगा जी समीप के एक घर मे घुस गये जाते ही उन्होंने एक खूबसूरत महिला को बाहों में भर लिया दरोगा जी की बाहों में कसमसाती महिला डरते हुए कहने लगी- 'छोड़ो जी, कोई आ जायेगा' महिला को आश्वस्त करते हुए कुटिल मुस्कान के साथ दरोगा जी बोले -'डरो नही डार्लिंग, कोई नही आ सकता । बाहर लॉक डाउन लगा है ।' सुनकर महिला भी मुस्करा दी ।
✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा' , सिरसी (सम्भल) 9456031926
मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ----उपहार
आज अचानक बैसाखी लाल के दरवाजे की घंटी बजी तो ,बैसाखी लाल ने अपनी छोटी बेटी रजनी को आवाज लगाई..... "बेटा देखो दरवाजे पर कौन है" रजनी ने दरवाजा खोला तो सामने डाक बाबू खड़े थे, उन्होंने कहा .....बेटा जाओ पापा को बुला लाओ उनका अमेरिका से एक पार्सल आया है ।
अमेरिका का नाम सुनकर रजनी उछल पड़ी व भागकर अपने पापा के पास आई और बोली "पापा देखो रमेश भैया का पार्सल आया है ,डाक बाबू आपको बुला रहे हैं" बैसाखी लाल दौड़कर गेट पर पहुंचे और डाक बाबू से पार्सल रिसीव किया ।
बैसाखी लाल , उनकी पत्नी व बेटी रजनी बड़ी उत्सुकता से पार्सल को देख रहे थे । रजनी बोली "पापा इसे जल्दी से खोलो , देखो भैया ने इसमें क्या भेजा है" बैसाखी लाल ने ड्राइंग रूम में आकर पार्सल खोला , तो सारे परिवार के लोग उसे देख हैरान रह गए, रमेश ने पूरे परिवार के लिए बहुत से उपहार भेजे थे , साथ ही उसमें कुछ कागज भी रखे थे । बैसाखी लाल ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे अतः उन्होंने अपनी बेटी राखी और दामाद सुनील , जो कि उनके घर के पास ही रहते थे , उन्हें अपने घर बुलवा लिया ।
बैसाखी लाल ने सुनील से कहा "बेटा देखो यह कैसे कागज हैं, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा कि मेरे भतीजे डॉ रमेश ने इसमें क्या भेजा है" सुनील ने सारे कागजों का गहराई से अध्ययन किया तो चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला "पापा जी आपके भतीजे ने आपको तोहफे में अमेरिका से कार भेजी है" "फोर्ड कार" यह अमेरिका की सबसे महंगी गाड़ियों में से एक है , फोर्ड कार का नाम सुनते ही बैसाखी लाल धम से सोफे पर बैठ गए , उनकी आंखों से अश्रु की धार बह निकली । सुनील बैसाखी लाल के पास आया व बोला .....पापा जी यह तो खुशी की बात है कि आपका भतीजा आपको कितनी इज्जत देता है और उसने आपको अमेरिका से गाड़ी भेजी है । आप खुश होने की बजाय रो रहे हैं क्या बात है । बैसाखी लाल चुप रहे और अपना मुंह छुपा कर सोफे पर बैठ गये । सुनील बैसाखी लाल के पैरों के पास आकर बैठ गया और भावुक होते हुए बोला "मैं आपका दामाद हूं ,लेकिन मैंने आपको हमेशा अपना पिता का ही दर्जा दिया है, अगर आप मुझे अपना बेटा समझते हैं तो मुझे सच सच बताएं क्या बात है" बैसाखी लाल ने सुनील को पैरों के पास से उठाया और बोले मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा कि मुझसे कितना बड़ा पाप हुआ है बैसाखी लाल ने कहना शुरू किया ....
हम लोग लुधियाना के पास एक गांव में रहते थे ,मेरे पिताजी रेलवे में एक फोर्थ क्लास कर्मचारी थे । पिताजी की अचानक मृत्यु के पश्चात रमेश के पिताजी ने मुझे अपने बेटे की तरह पाला और पिताजी की जगह मुझे रेलवे में फोर्थ क्लास नौकरी पर लगवा दिया । रेलवे में नौकरी करते करते , मैं दिल्ली आकर बस गया और आर्थिक रूप से भी संपन्न हो गया । लेकिन इसके विपरीत मेरे बड़े भाई साहब की गांव में एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी ,जो ना के बराबर चलती थी उनकी आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी । लेकिन इस सबके बावजूद रमेश ने बहुत मेहनत की और दिल्ली के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने में सफल रहा ।
बैसाखी लाल ने आगे बताना शुरू किया , भाई साहब रमेश को मेरे पास छोड़ गए क्योंकि वह हॉस्टल का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं थे । रमेश का कॉलेज हमारे घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर था रहन-सहन के मामले में रमेश बिल्कुल सादा सुधा व्यक्तित्व वाला छात्र था । उसके पास सिर्फ दो ही जोड़े थे ,वह एक जोड़ा पहनता और एक धोता था । उधर बैसाखी लाल का रहन सहन शाही था ,लेकिन उसने कभी रमेश की मदद करने का मन नहीं बनाया । एक दिन रमेश ने हिम्मत करके अपने चाचा बैसाखी लाल से कहा मेरा कॉलेज आपके घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है और मुझे रोज पैदल जाना होता है । आपके घर साइकिल ऐसे ही पड़ी रहती है , अगर आप इजाजत दें तो मैं आपकी साइकिल ले जाया करू, चाचा जी ने बड़ी बेरुखी से रमेश को साइकिल के लिए मना कर दिया और कह दिया "मैं अपनी साइकिल किसी को नहीं देता" यह बात जब रमेश के दोस्तों को कॉलेज में पता चली तो सभी ने संयुक्त रूप से मदद कर रमेश का हॉस्टल में प्रवेश करा दिया । उसके पश्चात रमेश कॉलेज के हॉस्टल में ही रहने लगा और अपने चाचा जी से कभी कभार ही मिलने आया करता था। 5 वर्ष का कोर्स करने के पश्चात रमेश ने एक केरल की नर्स के साथ शादी कर ली और बाद में उसकी पत्नी की अमेरिका में नौकरी लग गई । अमेरिका में एक वर्षीय कोर्स करने के पश्चात रमेश भी वहां पर नौकरी करने लगा । आज करीब आठ 10 वर्षों के पश्चात रमेश का यह "उपहार" हमें प्राप्त हुआ है । बैसाखी लाल अपनी बात को विराम देकर चुप हो गए ।
सभी लोग उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे । माहौल एकदम शांत था , तभी फोन की घंटी बजी तो बैसाखी लाल ने फोन उठाया दूसरी ओर से आवाज आई "हेलो, मैं रमेश बोल रहा हूं चाचा जी" रमेश की आवाज सुन बैसाखी लाल भावुक हो गए और उन्होंने रमेश से कहा "बेटा ,मैंने तेरे साथ बहुत बुरा किया है, फिर भी तूने मुझे याद रखा, मुझे माफ कर दे"
रमेश ने चाचा जी से कहा "नहीं चाचा जी ,आप पुरानी बातों को दिल से ना लगाएं आप हमारे बड़े हैं , मैं आपको पिताजी के बराबर ही सम्मान देता हूं" कृपया करके मेरे द्वारा भेजा गया "उपहार" स्वीकार करें । यह कह रमेश ने फोन रख दिया । भतीजे रमेश से फोन पर बात करके बैसाखी लाल का मन हल्का हो गया, उन्होंने सुनील से कहा ......"बेटा चलो , एयरपोर्ट गाड़ी की डिलीवरी लेने चलना है" और वह दोनों एयरपोर्ट पर "उपहार" में आई फोर्ड गाड़ी की डिलीवरी लेने चले गए ।
✍️विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ----- 'भ्रांत धारणा ' और 'यथावत'
घनी आबादी के बीच बना यह पार्क जैसे ऑक्सीजन का इकलौता साधन था मोहल्ले वालों को l
झूलों पर बच्चे झूल रहे थे l कई जोड़े तेज कदमों से चलकर शरीर पर जमी चर्बी को सुखाने का काम कर रहे थे और चर्बी मुस्करा रही थी कि काम धाम किसी को है नहीं ,खाने को घर की दाल रोटी काटने को दौड़ती है सड़क पर लगे ठेलों पर मख्खिओं की भांति शाम होते ही भिनभिनाने लगते हैं ,और मुझ बेचारी(हवा) को देखकर रोते हैं कि कहीं से भी निकल लेती हूँ.
जहां -तहाँ पडी बैंचों पर कई महिलायें आधुनिक वस्त्रों में लिपटी ,लिपी -पुती गर्दन मटका -,मटका कर चेहरे पर बनावटी मुस्कान लिए बतिया रहीं थीं l
मशगूल थीं सब चुगलखोरी करने में कोई सास की तो कोई बहु की ,कोई पति की ,कोई पड़ोसी की कोई कामवाली की l
बेचारी हवा को सब कुछ सुनना पड़ रहा था l सब कुछ बदल गया है मगर नारी का स्वभाव यथावत है हर क्षेत्र में बेहतरी मगर अपनी विरासत (चुगलखोरी )को भला कैसे छोड़ दें तन्हा ?
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---अम्मा का श्राद्ध
सुनो, कल अम्मा का श्राद्ध है, इस बार श्राद्ध कैसे मनेगा, पंडित जी से बात कर लो, और हाँ नहाने से पहले आज बाजार जाकर कुछ सामान भी ला दो, सुनीता ने थैला थमाते हुए गोपाल से कहा।
अरे, सामान तो मैं ला दूंगा लेकिन कोई पंडित जी या पंडिताइन आजकल जीमने नहीं आयेगी। मंदिर भी आजकल बंद हैं, गोपाल बोला।
हुम्म, तो क्या इस बार श्राद्ध नहीं होगा, सुनीता ने पूछा।
होगा क्यों नहीं, सोचने दो, कोई रास्ता निकलेगा।
गोपाल को अम्मा की याद आ गई । वह भी दादी दादा का श्राद्ध बड़ी श्रद्धा से मनाती थी उस समय गोपाल के लिये तो श्राद्ध केवल खीर पूड़ी, आदि पकवान बनने के त्योहार जैसा ही था। सुनीता भी उसी श्रद्धा से अम्मा का श्राद्ध करती थी।
आज तो आपसे कुछ पैसे मांगने आयी हूं। घर पर खाने के लाले पड़े हुए हैं। चार महीने हो गये कोई काम नहीं करवा रहा है, गिड़गिड़ाती हुई बाई बोली ।
अभी संगीता कुछ जबाब देती उससे पहले ही गोपाल ने उसे एक ओर बुलाया और कहा: लो तुम्हारी प्राब्लम साॅल्व हो गयी। अम्मा स्वयं तुम्हारे पास आ गयीं। इन्हें महीने भर के राशन के पैसे दे दो। अम्मा का इससे अच्छा श्राद्ध और कुछ नहीं होगा। स्वर्ग में बैठी अम्मा भी खुश हो जायेंगी।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG -69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर 9456641400
बुधवार, 30 सितंबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की कहानी ----चाबुक
अजब सिंह को रिश्वत लेने के आरोप में एक साल की सजा हुई।उसके बच्चों की देखभाल उसके बडे़ भाई एवं भाभी की जिम्मेदारी बन गयी क्योंकि पत्नी की मृत्यु के बाद वह अपने बच्चों को विमाता का दुख नहीं देना चाहता था इसलिए स्वयं ही बच्चों का पालनपोषण कर रहा था।अपने वेतन से उसकी सारी जरूरत पूरी हो जाती थी।मगर साथी मित्र के लिए आया लिफाफा उसके कहने पर उसने बिना देखे रख लिया अगले पल ही एन्टी करप्शन टीम ने उसे पकड़ लिया।उसकी किसी ने एक न सुनीऔर सजा हो गयी।ताई ताऊ का व्यवहार थोडे़ दिन तो सही रहा मगर अब ताई से घर का काम न होता। सुबह से शाम तक मोनी को घर के काम करने पडते और मुन्ना के पैर बाहर भागते भागते थक जाते।रात को दोनो भाईबहन गले लगकर आसूँ बहाते।एक दिन पास की काकी कह रही थी ,"कितना सीधा दिखता था,अरे जब रिश्वत लेता था तो दे देता तो छूट न जाता।आजकल तो जज पैसा और लड़की देखकर डाकू को भी छोड़ देते हैंं"। ताई ने भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाई।रात को दोनोंं बच्चों ने आपस मे बात की।सुबह उठने पर दोनों को घर मे न पाकर गांव भर मे शोर हो गया।उधर मोनी और मून्नू दोनो जज साहब की कोठी पर पहुंचे।दरबान ने रोक लिया।बोला "साहब नहीं मिलते किसी से,भागो। बच्चों की रोनी सूरत देखकर बोला, "रुको पता करके बताता हूं"।
आज जज साहब का मूड अच्छा था, बोले ,"बच्चे, उनको क्या काम है? चलो बुला दो।"दोनों बच्चे अंदर आये।अपनी जेब से 50 रुपये-निकालकर हाथपर रखे और बोले,"आप ये ले लीजिए, हमारे पापा को छोड़ दीजिए।काकी कहती है कि आप पैसे लेकर डाकू को भी छोड़ देते हैंं। मेरी बहन बहुत सुन्दर है आप इसे भी रख लीजिए आपका काम कर देगी,ताई कहती है सुन्दर लडकी देखकर सब काम कर देते है।देखिए मेरी बहन सुन्दर है ना"।"बस हमारे पापा को छोड दीजिए।पापा बिना कुछ अच्छा नही लगता।ताई बहुत काम करवाती हैं, खाना कम देतीहै"।
बच्चों की बाते सुनकर जज साब को लगा किसी ने उनपर चाबुक बरसा दिये।अपनी पत्नी की ओर नजर न उठा सके।
✍️डा.श्वेता पूठिया,मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---- मेरा भारत महान
सारे गांव में एक अजीब सन्नाटा सा पसरा है।कोई किसी से बातें करना तो दूर किसी की ओर देखना तक गवारा नहीं कर रहा।
अपनी चौपाल में पंडत जी,अपनीचौपाल में चौहान साहब,घर के बाहर बनी अपनी छोटी सी बंगलिया में दीवान पर उदास बैठे माथुर साहब तथा पीपल के पेड़ के नींचे खरैरी चारपाई पर बैठे चौधरी साहब हुक्के में बेमन से दम लगाकर अपनी चिंता को नहीं रोक पाते हुए कहते हैं।है ईश्वर सबको सद्बुद्धि देना।
तभी एक लंबी -चौड़ी फॉर्च्यूनर गाड़ी आकर गाँव के शुक्ला जी के मकान के बाहर रुकी।उसमें से करीब छह फीट लंबे खद्दर का सफेद कुर्ता और पाजामा पहने एक नेता जी उतरे।उनके साथ उनके कई हाली-मुवाली चमचे भी हाथों में अलग-अलग तरह के असलहे लेकर उनकी सुरक्षा में उतरे।
नेता जी ने चारों ओर ही नज़रें दौड़ाईं तथा प्रधान जी,ओ प्रधान जी कहकर दो-तीन आवाज़ें भी लगाईं,परंतु किसी के कान में जूं तक न रेंगती देख नेता जी ने सोचा कि मेरे आने पर जिस गांव में एक शोर सा मच जाता था।हर कोई व्यक्ति मुझसे मिलने की तत्परता दिखाने में अग्रणी बनने की जुगत में रहता था।
कोई पानी तो कोई चाय-नाश्ता लेकर आने के साथ-साथ साफ सुथरी बैठक में बैठाने के लिए अपनी साफी से ही कुर्सी मेज साफ करता नजर आता था।परंतु आज तो जिसकी तरफ देखो नज़रें फेर लेने को ही प्राथमिकता देता दिखाई दे रहा है।
लगभग सभी के पास जाकर नेता जी ने इस बेरुखी का कारण जानने का प्रयास किया परंतु कोई सफलता नहीं मिली।तभी गांव के एक जिम्मेदार बुजुर्ग ने सारे गांव की आंतरिक पीड़ा को कुछ इस तरह बयान किया,,,,,
'नेता जी' हमारा गांव कोई ऐसा-वैसा गांव नहीं आदर्श गांव है।यहाँ सारी कौमें एक परिवार के समान एक दूसरे की भावनाओं का आदर-सम्मान करते हुए गांव की प्रगति और खुशहाली कायम रखने को ही अपना सबसे बड़ा धर्म मानती हैं।
यहाँ हरेक त्योहार हम सभी का त्योहार होता है।हर किसी मंगल कार्य में एक दूसरे की उपस्थिति महायज्ञ में आहुति। डालने के समान ही आपसी प्यार और भाईचारे को बल प्रदान करती नज़र आती हैं।हम हिन्दू-मुस्लिम का फर्क अपने दिमाग में नहीं रखते।
नेता जी कुछ कहते इससे पहले ही सभी ने एक स्वर में नेता जी से कहा तुम्हें आपस में लड़ाकर वोट लेना ही आता है।सुना है हमारे देश से हमारे जिस्म के एक हिस्से से बेवजह ईर्ष्या को पनपने का मौका दिया जा रहा है।
अनेक समाचार माध्यमों एवं कुछ शरारती तत्वों ने हमारे गांव में ऐसी खबरें फैलाकर हम सभी की चिंता को बढ़ा दिया है।उसी का परिणाम आपको देखने मिल रहा है।क्या ऐसा ही है नेता जी?
नहीं -नहीं ऐसा कुछ नहीं है।आप लोग बिल्कुल भी चिंता न करें।हम एक थे,हम एक हैं,हम एक रहेंगे।यह कहते हुए नेता जी ने गांव के सम्मानित मुस्लिम परिवारों को आश्वस्त करते हुए गले से लगाया और सभी गांववालों के बीच बैठकर प्रेम पूर्वक जल पान करते हुए कहा में तो डर ही गया था।वैसे भी व्यर्थ आशंकाऐं दुख का कारण तो बनती ही हैं।हमारा संविधान भी हमें ऐसा करने की आज्ञा नहीं देता।
तभी तो सभी कहते हैं ।,,,,
मेरा भारत महान
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,
मोबाइल फ़ोन नम्बर 9719275453
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ---दूध हुआ पानी
बहू सीमा ने सासू माँ का हाथ पकड़ लिया और खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोली," माँ जी!आप गिलास में दूध किसके लिए डाल रही हैं? यह दूध तो मेरे शेरू( कुत्ते)के लिए आया है"
शान्ति बोली:-"बहू तेरे बाबू जी को डाॅक्टर ने दूध से दवा लेने को बोला है। बस आधा गिलास दूध ले रही थी।"
तभी पीछे से शान्ति का बेटा रोहन बोला , "मम्मी! क्या आप पागल हो गयी हो?पिताजी को इस उम्र में दूध की क्या जरुरत है? दूध पीने से उनका पेट खराब हो जाएगा, उनको पानी से दवा दीजिए। "
दरवाजे के पीछे खड़े जमुना दास जी की आँखों से गंगा-यमुना बह निकली। वो रोते हुये रोहन की माँ से बोले:-
"शान्ति! अगर हमने रोहन को अपने हिस्से का दूध न दिया होता, तो आज हमारे हिस्से का दूध शेरू को न मिल रहा होता।"
✍️रागिनी गर्ग, रामपुर (यूपी)
मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा --बिन बुलाई मुसीबत
रोहन जँगल में जोर-जोर से गिनता हुआ जा रहा था,
"एक....दो...तीन...,
आठ...नौ.. दस.."
जैसे ही उसके मुंह से निकला "दस"
अचानक एक भयंकर काला नाग उसके सामने प्रकट हो गया।
उसे देखकर रोहन के तो जैसे प्राण ही गले में आ गए, फिर भी वह हिम्मत करके हाथ जोड़ते हुए बोला, "जय हो नाग देवता की, किन्तु आप अचानक कैसे प्रकट हो गए?
आप देव हैं मैं एक नन्हा बालक, आप कृपा करके मेरा मार्ग छोड़ दीजिए।
"अभी तुमने ही तो मुझे बुलाया है डसने के लिए, और अब जाने को कहते हो।
अब तो मैं तुम्हे डसकर ही जाऊँगा", नाग हँसते हुए मनुष्य की आवाज में बोला।
"मैं.... मैंने कब बुलाया आपको नागराज?" रोहन की घिग्गी बन्ध गयी।
"अच्छा अभी तुमने कहा नहीं कि डस", नाग उसे याद दिलाते हए बोला।
"अर्रे वह तो मैं गिनती...", रोहन याद करते हुए बोला।
"हाँ तो जब भी कोई यहाँ आकर 'डस' बोलता है मैं आकर उसे डस लेता हूँ", नाग ने कहा।
"लेकिन आप हो कौन?", रोहन ने पूछा।
"मैं एक प्यासी रूह हूँ, मुझे बहुत भूख लगती है लेकिन मैं एक वचन में बंधा हुआ हूँ कि जबतक की मुझे खुद डसने को ना कहे मैं किसी को नहीं डस सकता। आज बहुत दिन बाद तुमने यहां आकर 'डस' कहा है । नाग उसपर झपट्टा मारते हुए बोला।
"रुको!! तनिक ठहरो। मैंने 'डस' नहीं 'दस' कहा था तुम मुझे नहीं दस सकते", रोहन जोर से बोला।
"डस ही बोला था तुमने अन्यथा मैं यहां आता ही नहीं", नाग फुफकारते हुए बोला।
अब रोहन बहुत घबरा गया, वह बचने की कोई युक्ति सोच रहा था तभी उसके दिमाग ने कुछ संकेत किया।
"लेकिन मैंने तो 'नहीं डस' बोला था तुमने पूरी बात सुनी ही नहीं", रोहन बोला।
"लेकिन तुमने 'नहीं' कब कहा था तुमने तो नो...दस.. कहा था", नाग एकदम से कह गया।
"वही तो मैने तो दस कहा था तुमने डस कैसे सुन लिया", रोहन मुस्कुरा कर बोला।
नाग खुद की बातों में फंस चुका था अतः चुपचाप झाड़ी में सरक गया और रोहन भी चुपचाप आगे बढ़ गया।
उसकी धड़कने अभी भी शोर मचा रही थीं।
✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----आइना
आज बहुत दिन बाद रागिनी आइने के सामने बैठी ......उसने धीरे से काजल उठाया ,इधर उधर देखा ,फिर उसको अपनी आँखो तक ले गयी पर झट से उसने उसे फिर वही रख दिया ।लोग क्या कहेंगे ......
उसके हाथ काँप रहे थे .................
प्रखर बुद्धि रागिनी प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती थी पर आज वह विधवा थी ,पति को उसने ठीक से देखा तक नही बस फेरे लिए थे अगले ही दिन ऐक्सिडेंट हो गया ...........और वह...........
आज उसने फिर अपना चेहरा आइने में देखा ,आइना उसे पहले की तरह देखना चाहता था,इसबार उसने काजल उठाया और अपनी आँखो को गहरे काजल से सजा लिया।
काजल लगते ही आँखों मे सोये सपने फिर से जागृत हो उठे--------।।
✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -----चेहरा
"अब देखना है कि कितने लोग मुझे फ़्रेन्ड रिक्वेस्ट भेजते हैं", तेजाबी हमले में झुलस चुके अपने चेहरे को शीशे में निहारते हुए वह बुदबुदाई और मुस्कुराते हुए अपनी ताज़ी फोटो अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर लगा दी।
-✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
मो० 8941912642
मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---तेजाब
"मुझे रसायन शास्त्र हमेशा से पसंद रहा,लेकिन जब से उस लड़की का चेहरा देखा है,उस हादसे ने मुझे अंदर तक हिला दिया। बस,तब से रसायन शास्त्र से घृणा हो गई है.... उफ! वो अधजले काग़ज़ सी हो गई थी.....।"
✍️प्रवीण राही, मुरादाबाद
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----तारीफ
दीदी इतनी जिम्मेदारियों के बीच नौकरी और घर की व्यवस्था में सामन्जस्य कैसे बैठा लेती हो ?"नीति ने अपनी बहन अवनि की तारीफ करते हुए कहा"मैं तो घर पे रहती हूँ ,फिर भी बहुत ज्यादा अच्छे से घर को व्यवस्थित नहीं कर पाती । हर समय पत्नी की ओर उँगली उठाने वाले गौरव को अपनी पत्नी की यह तारीफ हजम नहीं हो सकी ,तो वह तेज नींद का बहाना करके दोनो बहनों की बातें देर तक सुनता रहा।
✍️डॉ प्रीति हुँकार , मुरादाबाद
मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों दीपक गोस्वामी चिराग, डॉ श्वेता पूठिया,राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, डॉ पुनीत कुमार और प्रीति चौधरी की बाल कविताएं
बच्चो!! राष्ट्रीय पशु मैं बाघ।
मुझे देख जाते सब भाग।
नजर अगर मुझसे मिल जाए।
सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाए।
है कोई मुझसे तेज जो दौड़े।
चाहे हिरन हों, चाहे घोड़े।
पीले रंग पर खिंची हैं धारी।
मां गौरी की बना सवारी।
देखो! मैंने शेर हराया।
फिर इस गौरव को है पाया।
✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाग
बहजोई (सम्भल)244410
मो. 9548812618
ईमेल:deepakchirag.goswami@gmail.com
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मेरी छोटीसी गुड़िया रानी
कापी लेकर दौड़ रही।
अम्मा मै पढ़ने जाउंगी
कहके वो चहक रही।
पढ़कर क्या होगा मेरी रानी
पूछा ये बस मैंने यूहीं।
वह इठलाकर बोली
अम्मा पढ़कर जज बन जाउंगी।
रोज न्यायालय जाऊंगी
सुनकर सबकी सारी बातें
अपना फैसला सुनाउंगी
जीत सदा होगी सच की
हार के झूठ अपना मुँह छिपायेगा
ऐसी जज बनकर मै
तेरा मान बढ़ाऊंगी
अम्मा मै पढलिखकर
जज बन जाउंगी
✍️डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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एडीसन ने बचपन से ही,
कड़ा जतन यह कर दिखलाया।
दुनिया बोली पागल उसको,
फिर भी उसने बल्ब बनाया।
जो बस किस्मत को रोते हैं,
वे ही अवसर को खोते हैं ।
बिना परिश्रम प्यारे बच्चो,
सपने सत्य नहीं होते हैं।
सोना तप कर बनता कुंदन,
इसमें जीवन सार समाया।
एडीसन ने बचपन से ही,
कड़ा जतन यह कर दिखलाया।
दुनिया बोली पागल उसको,
फिर भी उसने बल्ब बनाया।
-✍️राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद (उ० प्र०)
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मां मुझको बंदूक दिला दो,
मैं भी लड़ने जाऊंगा ।
पाक चीन शत्रु जो अपने,
उनको मजा चखाऊंगा ।।
छोटे-मोटे खेल खिलौने ,
मुझको अब नहीं भाते हैं ।
पापा के लड़ने के जौहर,
याद मुझे बस आतें हैं ।।
पापा जैसा बनुं सिपाही,
देश पे जान लुटाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
मातृभूमि की करूं अर्चना,
उसका ही गुणगान करूं ।
वीरों की मैं करूं आरती ,
उनको नमन प्रणाम करूं ।।
सीमाओं पर गाड़ तिरंगा,
देश का मान बढ़ाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
नस नस में मेरे पापा का
लहू हिलोरें मार रहा ।
पापा का बदला लेने को,
अंतर्मन हुंकार रहा ।।
नींद नहीं आती है मुझको ,
तभी चैन मैं पाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
दादी का सपना पापा ने,
सैनिक बन साकार किया ।
तोड़ मोह के सारे बंधन ,
भारत मां से प्यार किया ।।
मेरे वंश की परंपरा को ,
मैं कैसे न निभाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह,
जैसे अनगिन दीप बुझे ।
बलिदानी भारत वीरों की,
गाथाएं सब याद मुझे ।।
अभिनंदन सा शेर बनूं और ,
फाइटर जेट उड़ाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो ,
मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
पाक चीन जो शत्रु अपने,
उनको मजा दिखाऊंगा ।।
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541
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हाथ करें सब अच्छा अच्छा पांव चुने पथ अच्छा अच्छा
कान सुनें सब अच्छा अच्छा
आंखे देखें अच्छा अच्छा
खाना खाएं अच्छा अच्छा
गाना गाएं अच्छा अच्छा
मुख से बोलें अच्छा अच्छा
मन में सोचें अच्छा अच्छा
हो जाए सब अच्छा अच्छा
करे प्रार्थना बच्चा बच्चा
डाॅ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M - 9837189600
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घंटी
बजती नही
अब विद्यालय की
अखरती हैं
छुट्टी
प्रार्थना
मौन हुई
विद्यालय भूल गये
सुबह को
चहकना
कोरोना
क़हर से
आंगन हो गया
विद्यालय का
सूना
रौनक़
लौट आये
देख सकें मुस्कान
बच्चों की
मोहक
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ---क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया हमने,
सोच रहे हैं आज।
ऊपर वाले की लाठी में,
होती नहीं आवाज।
चले जा रहे थे दौड़े हम,
खींची गयी लगाम।
कोरोना आया ऐसा,
सब जपें राम का नाम।
सड़कों ने राहत की साँसें,
ली थी मुद्दत बाद।
नदियों और झीलों ने देखी,
अपनी सूरत साफ।
घर में सारे परिजन अपने,
कितने अच्छे हैं।
सप्तपदी के जो भूले थे,
वादे सच्चे हैं।
लॉकडाउन ने हमें दिखाया,
अपनों का नवरंग।
भूले बैठे थे हम जिनको
मोबाइल के संग।
पाकशास्त्री एक हमारे
भीतर बैठा था।
एक दयालु मन भी,
नित सेवा पर निकला था।
लेकिन हुई क्षति भी अपनी,
भरी न जा सकती।
खोये अपने और पराए,
इस जग की थाती।
भारत गाँवों में बसता है,
फिर से सिद्ध हुआ।
हरिया लौटा घर दिल्ली से,
पल जब गिद्ध हुआ।
मतभेदों में,मनभेदों में,
भी उलझे थे हम।
और अर्थ की रीढ़ मुड़ी तो,
हुए सभी बेदम।
धीरे-धीरे फिर पटरी पर,
लौट रही है रेल।
कुछ खोया कुछ पाया हमने,
देखी धक्का-पेल।
✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001