बुधवार, 30 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ---क्या खोया क्या पाया

क्या खोया क्या पाया हमने,

सोच रहे हैं आज।

ऊपर वाले की लाठी में,

होती नहीं आवाज।

चले जा रहे थे दौड़े हम,

खींची गयी लगाम।

कोरोना आया ऐसा,

सब जपें राम का नाम।

सड़कों ने राहत की साँसें,

ली थी मुद्दत बाद।

नदियों और झीलों ने देखी,

अपनी सूरत साफ।

घर में सारे परिजन अपने,

कितने अच्छे हैं।

सप्तपदी के जो भूले थे,

वादे सच्चे हैं।

लॉकडाउन ने हमें दिखाया,

अपनों का नवरंग।

भूले बैठे थे हम जिनको 

मोबाइल के संग।

पाकशास्त्री एक हमारे 

भीतर बैठा था।

एक दयालु मन भी,

नित सेवा पर निकला था।

लेकिन हुई क्षति भी अपनी,

भरी न जा सकती।

खोये अपने और पराए,

इस जग की थाती।

भारत गाँवों में बसता है,

फिर से सिद्ध हुआ।

हरिया लौटा घर दिल्ली से,

पल जब गिद्ध हुआ।

मतभेदों में,मनभेदों में,

भी उलझे थे हम।

और अर्थ की रीढ़ मुड़ी तो,

हुए सभी बेदम।

धीरे-धीरे फिर पटरी पर,

लौट रही है रेल।

कुछ खोया कुछ पाया हमने,

देखी धक्का-पेल।

✍️हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

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