रोहन जँगल में जोर-जोर से गिनता हुआ जा रहा था,
"एक....दो...तीन...,
आठ...नौ.. दस.."
जैसे ही उसके मुंह से निकला "दस"
अचानक एक भयंकर काला नाग उसके सामने प्रकट हो गया।
उसे देखकर रोहन के तो जैसे प्राण ही गले में आ गए, फिर भी वह हिम्मत करके हाथ जोड़ते हुए बोला, "जय हो नाग देवता की, किन्तु आप अचानक कैसे प्रकट हो गए?
आप देव हैं मैं एक नन्हा बालक, आप कृपा करके मेरा मार्ग छोड़ दीजिए।
"अभी तुमने ही तो मुझे बुलाया है डसने के लिए, और अब जाने को कहते हो।
अब तो मैं तुम्हे डसकर ही जाऊँगा", नाग हँसते हुए मनुष्य की आवाज में बोला।
"मैं.... मैंने कब बुलाया आपको नागराज?" रोहन की घिग्गी बन्ध गयी।
"अच्छा अभी तुमने कहा नहीं कि डस", नाग उसे याद दिलाते हए बोला।
"अर्रे वह तो मैं गिनती...", रोहन याद करते हुए बोला।
"हाँ तो जब भी कोई यहाँ आकर 'डस' बोलता है मैं आकर उसे डस लेता हूँ", नाग ने कहा।
"लेकिन आप हो कौन?", रोहन ने पूछा।
"मैं एक प्यासी रूह हूँ, मुझे बहुत भूख लगती है लेकिन मैं एक वचन में बंधा हुआ हूँ कि जबतक की मुझे खुद डसने को ना कहे मैं किसी को नहीं डस सकता। आज बहुत दिन बाद तुमने यहां आकर 'डस' कहा है । नाग उसपर झपट्टा मारते हुए बोला।
"रुको!! तनिक ठहरो। मैंने 'डस' नहीं 'दस' कहा था तुम मुझे नहीं दस सकते", रोहन जोर से बोला।
"डस ही बोला था तुमने अन्यथा मैं यहां आता ही नहीं", नाग फुफकारते हुए बोला।
अब रोहन बहुत घबरा गया, वह बचने की कोई युक्ति सोच रहा था तभी उसके दिमाग ने कुछ संकेत किया।
"लेकिन मैंने तो 'नहीं डस' बोला था तुमने पूरी बात सुनी ही नहीं", रोहन बोला।
"लेकिन तुमने 'नहीं' कब कहा था तुमने तो नो...दस.. कहा था", नाग एकदम से कह गया।
"वही तो मैने तो दस कहा था तुमने डस कैसे सुन लिया", रोहन मुस्कुरा कर बोला।
नाग खुद की बातों में फंस चुका था अतः चुपचाप झाड़ी में सरक गया और रोहन भी चुपचाप आगे बढ़ गया।
उसकी धड़कने अभी भी शोर मचा रही थीं।
✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
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