शनिवार, 15 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य सदन की ओर से साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम की कृति 'भारत के इतिहास में मुरादाबाद का स्थान' का सार्वजनिक लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन

मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम की कृति 'भारत के इतिहास में मुरादाबाद का स्थान' का सार्वजनिक लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन शुक्रवार 14 जनवरी 2022 को किया गया। हिंदी साहित्य सदन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने पुस्तक की महत्ता और प्रामाणिकता पर साधुवाद देते हुए कहा कि मुरादाबाद के इतिहास में अब तक कोई ऐसी कोई पुस्तक सामने नहीं आई है। 

      कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि 18 वीं शताब्दी में ठाकुरद्वारा राज्य की स्थापना को उजागर करते हुए बीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन द्वारा देसी रजवाड़ों के योजनाबद्ध विनाश का महत्वपूर्ण विवरण इस ऐतिहासिक कृति में प्रस्तुत किया गया है। पर्यावरण मित्र समिति के महासचिव केके गुप्ता ने कहा कि मुरादाबाद के कालापानी कहे जाने वाले ठाकुरद्वारा नगर की भौगोलिक महत्ता इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है।

       कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि डॉ अजय अनुपम ने इस कृति के माध्यम से  मुरादाबाद क्षेत्र के अनेक अज्ञात साहित्यकारों का महत्वपूर्ण विवरण दिया है, जिन पर शोध करने की आवश्यकता है । 

ज्योतिर्विद विजय कुमार दिव्य ने कहा यह कृति मुरादाबाद की प्राचीन शिक्षा पद्धति और जनजीवन की भावना को जानने के लिए  उपयोगी सिद्ध होगी।  अवकाश प्राप्त एबीएसए घनश्याम सिंह ने कहा इस पुस्तक में क्षेत्र के प्राचीन रीति-रिवाजों और उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं के घरेलू तथा सामाजिक स्तर का बखूबी मूल्यांकन किया गया है।

       आयोजन में गोकुलदास हिंदू कन्या महाविद्यालय की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत डॉ कौशल कुमारी, इंजीनियर स्वाति सिंघल आदि उपस्थित थे। आभार अभिव्यक्ति सुगम अग्रवाल ने की।










बुधवार, 12 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र का ऐतिहासिक उपन्यास - शहीद मोती सिंह। यह कृति वर्ष 2001 में प्रतिमा प्रकाशन , दीनदयाल नगर ,मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। स्मृतिशेष मिश्र जी की यह कृति मुझे 30 अक्टूबर 2004 को दैनिक जागरण के तत्कालीन स्थानीय संपादक डॉ अनुपम मार्कण्डेय जी ने प्रदान की थी ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:e1d3f328-7137-4ab3-8bcc-e512516466d1

:::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत -----मद भरे लोचन सिहरती रात....। यह गीत लिया गया है वर्ष 1980 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 ::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत -----मस्तक पर हिम किरीट आवरण, ....। यह गीत लिया गया है वर्ष 1977 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 
:::::;:प्रस्तुति:::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत ----- दीप खंडहरों के, सौ सौ खंडहरों के ...। यह गीत लिया गया है वर्ष 1976 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 
::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रंजना हरित की रचना ----सब भाषा और भाषा की जान , हिंदी है तू बड़ी महान।


सब भाषा और भाषा की जान 

हिंदी  है   तू   बड़ी   महान।

 शब्द  शब्द  में   होता   दम,

 लिखना पढ़ना बन जाए सुगम।


 हमको  मिलता  हरदम  ज्ञान,

 हिंदी  है  तू  बड़ी  महान ।

मातृभाषा  सचमुच मां जैसी,

हरे  वृक्ष  की  छाया  जैसी ।


पलते  बढ़ते  जैसे  हम संतान,

 हिंदी  है  तू  बड़ी  महान।

 शब्दों  में  है  अमृतवाणी ,

भाषाओं  की है  हिंदी रानी।


  गीत संगीत की है तू जान,

 हिंदी  है  तू बड़ी  महान ।

पर्वत से ऊंची  गरिमा तेरी ,

कोई  नहीं  है  सीमा तेरी।

 सर्वज्ञानी बने सर्वत्र विद्वान,

 हिंदी है तू बड़ी  महान।


✍️ रंजना हरित 

बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे --- हिन्दी बांहें खोलकर, करती सबसे प्रीत ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना --हिन्दी अपनाओ ! बंद सारे झगड़े हों


 हिन्दी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,

चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।।

रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,

हिन्दी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।

विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,

भारत माता के  माथे, यूं सजती हिन्दी।।


✍️अशोक विद्रोही 

412 प्रकाश नगर,मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन 82 188 25 541


मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की रचना ---- उस हिन्दी को आज नमन


 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ---- वर्ण क्रम में वैज्ञानिकता, भाषा बहुत महान है हिन्दी।


भारत माँ की शान है हिन्दी

सनातनी पहचान है हिन्दी ।


पैंसठ प्रतिशत जन की भाषा,

पूरा हिन्दुस्तान है हिन्दी


भारत की थाती की वाहक,

संस्कृत की संतान है हिन्दी। 


भोजपुरी, अवधी, नेपाली,

 बृज की मात समान है हिन्दी।


वर्ण क्रम में वैज्ञानिकता,

भाषा बहुत महान है  हिन्दी।


ग्यारह स्वर इकतालीस व्यंजन,

वर्ण-चिह्नों की खान है हिन्दी।


ढाई लाख की शब्द सम्पदा,

छंद व रस प्रधान  है हिन्दी।


इसमें नहिं अपवाद कहीं भी,

सीखो तो आसान है हिन्दी।


तुलसी,सूर, जायसी,रहिमन,

घनानंद ,रसखान है हिन्दी।


मीरा के पग की रुनझुन है,

भूषण की भी बान है हिन्दी।


कबिरा की फक्कड़ता इसमें,

खुसरों का अभिमान है हिन्दी।


नीर भरी दुःख की बदली है,

दिनकर की भी आन है हिन्दी।


बच्चन की ये मधुशाला है,

नीरज का भी गान है हिन्दी।


यह किरीट सब भाषाओं की,

कवियों को वरदान है हिन्दी।


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

 बहजोई (सम्भल) उ.  प्र., भारत

मो. 9548812618

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना --अपनी प्यारी भाषा हिन्दी, अपना गौरव-गान है ----


करे पूर्ण व्यक्तित्व हमारा,

भारत की पहचान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी..... जय हिन्दी....।


अपनाती है बड़े प्रेम से,

अन्य सभी भाषाओं को।

पूरी भी करती है देखो,

कितनी ही आशाओं को।

ज़ात-पात से ऊपर उठकर,

एक सभी का मान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी...... जय हिन्दी......।


इसकी महिमा-गरिमा को अब, 

जग भर में पहुँचाना है।

राष्ट्रसंघ की सूची में भी,

लेकर इसको जाना है।

माँ वाणी से मित्रो हमको,

मिला महा वरदान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी...... जय हिन्दी......।

               

✍️ प्रीति चौधरी

गजरौला, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल --महाशक्ति करती अगवानी; हिंदी - गौरव - रथ आया है!



हिंदी विश्व दिवस आया है।

मनो बसंत विश्व छाया है!


देश-देश में बजी दुन्दुभी;

हिंदी - केतन लहराया है!


महाशक्ति करती अगवानी;

हिंदी - गौरव - रथ आया है!


नभ में इंद्रधनुष शोभित हैं;

तोरण द्वार क्षितिज लाया है!


चमके सूरज, चांद, सितारे;

सिंधु धरा पर लहराया है!


नदियां, झीलें, पर्वत गाते;

स्वर्ग उतर वसुधा आया है!


खिली हुई है मधुर चांदनी;

विश्व पटल अति हर्षाया है!


उपवन-कानन सुमन खिले हैं;

हिंदी की अद्भुत माया है!


✍️डा. महेश 'दिवाकर '

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की रचना ---लाएं निज व्यवहार में , हिंदी का उपयोग, संप्रेषण जिसका खरा, समझ सके सब लोग,,


हिंदी यदि पाती रहे,

                 जन मन में आकार,

 निज भाषा उत्थान के,

                   हों सपने साकार ,,


लाएं निज व्यवहार में ,

                        हिंदी का उपयोग,

 संप्रेषण जिसका खरा,

                      समझ सके सब लोग,,


 माँ जिस बोली में गढ़े ,

                        लोरी- प्यार -दुलार,

 भाषा वही स्वदेश की,

                          इसमें  कैसी  रार ,,


 विश्व पटल पर हम सभी,

                          हैं बस  हिंदी  ज़ात,

 इसीलिए सब कीजिए,

                          बस हिंदी की बात,,


 सीखी हर भाषा तभी ,

                       जब हिंदी थी ज्ञात,

 भूले से मत भूलना ,

                     हिंदी  की   सौगात,,


 नहीं जोड़ने  गांठने,

                   अंदाजे  के  बोल ,

हिंदी के  संदर्भ  में ,

                  यही कथन अनमोल,

✍️  मनोज 'मनु '

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना --हिन्दी पढ़ लो, हिन्दी जी लो, हिन्दी सबके गले का हार, ये है भाषा अजब निराली बरसाए सब पर रसधार ...


 

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद की साहित्यकार नीमा शर्मा हंसमुख की रचना ---ऐ हिन्दी तेरे वर्णो से सजा हुआ संसार

 


ऐ हिन्दी तेरे वर्णो से

सजा हुआ संसार ।

सुर लय ताल छन्द सारे

गाये मधुर मल्हार ।

ऐ हिन्दी - - - - - - -

स्वर और व्यंजन 

मिल दे सारे शब्दो को आधार |

क ख ग घ मिलकर सारे

चले बनाकर कतार ।

करके शब्द साधना प्राणी

ज्ञान मिले भरमार ।

ऐ हिन्दी तेरे - - - - - -

मातृ भाषा तुझको कहते

पढ़े सभी संसार ।

तुम बिन मै अज्ञानी बालक

तुम बिन है अंधियार ।

ऐ हिन्दी तेरे वर्णो से

सजा हुआ संसार ।

✍️ नीमा शर्मा 'हँसमुख '

नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की रचना ---मैं हिन्दी हूं ...


मैं भारत की प्यारी हिंदी।

जन-जन की उजियारी हिंदी।।


मैं तुलसी की सृष्टि बनी।

मैं सूरदास की दृष्टि बनी।।


मैं हूँ मीरा की  पथगामी।

मैं हूँ कबीर की सतगामी।।


मैं रत्नाकर के छंद बनी।

मैं खुसरो की हूँ बन्द बनी।।


मैं घनानंद की प्रवाहिका।

मैं निराला की अनामिका।।


मैं बसंत का गीत बनी।

फिल्मों का संगीत बनी।।


मैं मोक्षदायिनी गंग बनी।

 मैं सप्तरंग का रंग बनी।।


मैं ही जीवन का सत्य अटल।

मैं ही भारत का भाग्य पटल।।


मैं हूँ तुलसी का रामचरित।

सुरसरिता-सी महिमामंडित।।


 मैं जयशंकर की कामायनी।

मैं शस्य धरा की प्राणदायिनी।।


✍️ डॉ राकेश चक्र 

90 बी, शिवपुरी

मुरादाबाद 244001

उ.प्र .भारत

9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य --मामूली आदमी और आम चुनाव

 


 हमारे मित्र ने एक सज्जन की ओर इशारा करके हमें बताया-" जानते हो इनके ब्रीफकेस में कितने रुपए हैं ? "

     हमने कहा "हम क्या जानें ! आप ही बताइए ?"

      उन्होंने कहा "पूरे चालीस लाख रुपए हैं । अब बताओ, किस काम के लिए यह लिए-लिए घूम रहे हैं ?"

      हमने फौरन अपनी बुद्धि दौड़ाई और जवाब दिया "विधानसभा के चुनाव में खर्च की अधिकतम सीमा चालीस लाख रुपए है। अतः जरूर यह सज्जन चालीस लाख रुपए लेकर घूम रहे होंगे । ताकि टिकट-प्रदाताओं को यह संतुष्ट किया जा सके कि उनकी जेब में चालीस लाख रुपए रहते हैं ।"

                  हमारे मित्र हमारा उत्तर सुनकर व्यंग्यात्मक दृष्टि से हँस पड़े । बोले "आप अभी तक चुनाव का गणित नहीं समझ पाए ?"

       हमने कहा "आप ही समझा दीजिए ।"

वह बोले "यह चालीस लाख रुपए तो टिकट-प्रदाताओं को टिकट देने के लिए प्रसन्न करने हेतु हैं । इन चालीस लाख रुपयों से जब टिकट-प्रदाता प्रसन्न हो जाएंगे ,तब खर्चे का काम आगे बढ़ेगा।"

      हमने चौंक कर कहा "अगर टिकट मांगने में ही चालीस लाख रुपए खर्च हो जाएंगे तब तो विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अस्सी लाख रुपए चाहिए ? क्या कोई व्यक्ति इतना मूर्ख है कि अस्सी लाख रुपए खर्च करके चुनाव लड़ने का जुआ खेले ? अगर हार गया ,तब तो बर्बाद हो जाएगा ! क्या बैंक से लोन मिल जाता है ?"

          अब हमारे मित्र बुरी तरह हमारे ऊपर क्रुद्ध होने लगे । बोले "जब राजनीति की चर्चा चले ,तब 40 और 80 लाख जैसी छोटी रकम पर अटकना नहीं चाहिए। यह तो इसी प्रकार से तुच्छ धनराशि है ,जैसे कोई व्यक्ति गुटखा खाता है और थूक देता है। थोड़ी देर का आनंद है । अगर दाँव लग गया तो पाँच साल तक सितारा बुलंद रहेगा और अगर हार गए तो कोई खास नुकसान नहीं होता ।"

      हमने पुनः प्रश्न किया "आप अस्सी लाख रुपए को तुच्छ धनराशि कह रहे हैं ?"

     वह कहने लगे " अस्सी लाख रुपए तो कुछ भी नहीं , एक-दो करोड़ रुपये कहिए। चुनाव में हमारे और आपके जैसे मामूली आदमी थोड़े ही खड़े होते हैं । न ही उनको पार्टियाँ टिकट देती है । यह तो धनपतियों का खेल है । हमें और आपको तो केवल वोट डालना है । जो अच्छा लगे ,उसे वोट डाल देना । "

     हमने कहा "यह भी आप सही कह रहे हैं। यह चुनाव भी बड़ी ऊँची चीज है । कहलाता आम चुनाव है ,लेकिन आम आदमी की पहुँच से बाहर है ।"

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद मंडल के हसनपुर (जनपद अमरोहा) निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल ---विश्वास था तो जग जीत लिया, अब जग है पर विश्वास नहीं


मंजिल की और तलाश नहीं ।

मंजिल भी शायद पास नहीं ।।     

मैं थक के राह में बैठ गया    । 

मुझे दर्द का कुछ एहसास नहीं ।

नहीं पाने की कोई चाहत अब ।   

अब कुछ खोने की आस नहीं ।।   

मुझे कौन मिला किसने छोड़ा ।   

ये सब किस्मत के किस्से हैं ।।      

हां जिनके लिए सबको छोड़ा ।     

अब उनको मेरा पास नहीं ।। 

विश्वास था तो जग जीत लिया । 

अब जग है पर विश्वास नहीं ।। 

क्यों अपना मुजाहिद को समझूं ।

जब मैं ही खुद के पास नहीं ।।                  


✍️मुजाहिद चौधरी 

हसनपुर , अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की व्यंग्य कविता ---कहाँ जाऊँगा--?-

अरे

तुम फिर आ गये

गये नहीं अभी तक

मैं,

कहाँ जाऊँगा मालिक ?

मैं यहीं जन्मा हूँ

यहीं पला हूँ

यहीं आपकी छत्रछाया में

बड़ा हुआ हूँ।

तभी से यहीं खड़ा हुआ हूँ।।

मैं तो,

नीचे से, उपर से

दायें से, बायें से

हर दिशाओं से

हर परिस्थितियों में

उपस्थित रहता हूँ मालिक

आपके आशीष से

समय पर काम करता हूँ

मैं कहाँ जाऊँगा ?

यहीं जन्मा

यहीं मर जाऊँगा,

फिर

मेरी औलाद काम करेगी।

जन्मों जन्मों तक 

आपकी सेवा करेगी।।

मैं तो

आपके आस - पास

ही रहता हूँ।

सत्य को भी

झूठ में बदलता हूँ।।

आप चाहें या न चाहें

मैं,

हर पल सेवा करुंगा।

जब पुकारोगे

हाज़िर रहूँगा।

मैं,

हर आदेश का पालन 

करता हूँ।

यही तो मेरा श्रेष्ठ शिष्टाचार है ।

मेरा नाम भ्रष्टाचार है ।।


✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में सम्भल निवासी ) साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की व्यंग्य कविता ---गधों ने गधों से कहा

 


सड़क पर खड़े

गधों को गधों ने

देखा...

सभी के कंधे

जिम्मेदारी के

बोझ से दबे थे

फिर भी सड़क पर

सीधे और तने थे। 

इस बीच कितने

गधे वहाँ से गुजरे

वही नाज़  नखरे

कोई गधा मानने

को तैयार नहीं था

हम गधे है।

गधे हैं तो फिर

क्यों गधे हैं। 

गधे गणेश जी के पास पहुंचे..

गधे: क्या हम गधे हैं?

गणेश: पूरे गधे हो

गधे: आधे कब थे

गणेश: पता चल जाएगा

 गधों ने वही सवाल 

कवि से किया.

.क्या हम गधे हैं..?

कवि: तुम तो फिर भी ठीक हो, मगर वो...

गधे: वो कौन...? 

कवि: अरे वही, जो मेरी रचना पढ़ गया।

गधे सोच में/ रचना..?

हम गधों की क्या रचना?

खर-खर-खर: खराक्षरी?

बात बुद्धि की थी

गधे हार गए...!

 तभी सामने से..

धवल वेषधारी नेताजी

का पदार्पण हुआ...

आकाश से 

पुष्प वर्षा होने लगी...

कानों में 

अपने आप शंख

बजने लगे....?????

लंबे-लंबे कान गधों

के हिलने लगे...? 

सड़क पर सधे/तने

गधे हटने लगे...! 

मुद्दा जस का तस रहा

हम क्यों गधे हैं..!!


✍️ सूर्यकांत द्विवेदी

शुक्रवार, 7 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत- उठो जवानों जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं मयंक शर्मा

 क्लिक कीजिए और सुनिए

👇👇👇👇👇👇👇👇👇



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत -एक चन्दन वदन, रश्मि प्रभाकर के स्वर में

 क्लिक कीजिए और सुनिए

👇👇👇👇👇👇👇👇👇



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत - मैं पद्यप हूं, मेरा है मृगछौने जैसा मन, डॉ प्रेमवती उपाध्याय के स्वर में

 क्लिक कीजिए

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत - मेरा मन है मगन देखिए, मीनाक्षी ठाकुर के स्वर में

 क्लिक कीजिए

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇



सोमवार, 3 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 2 जनवरी 2022 को गूगल मीट पर नववर्ष को समर्पित काव्य-गोष्ठी का आयोजन


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 2 जनवरी 2022 को गूगल मीट पर नववर्ष को समर्पित   काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह 'ओंकार' ने अपनी ग़ज़ल की तान कुछ इस प्रकार छेड़ी - 

खुशियां हज़ार लाएगा अबके नया बरस । 

यूं जगमगाता आएगा अबके नया बरस। 

इक प्यार बनके छाएगा अबके नया बरस।

सब नफ़रतें मिटाएगा अबके नया बरस।। 

 मुख्य अतिथि डॉ. मनोज रस्तोगी ने नववर्ष का स्वागत इन शब्दों से किया - 

मंगलमय हो, आनन्दमय हो

 नूतन वर्ष का शुभागमन। 

हो समृद्धि आपकी और

 हो सुखों का आगमन। 

 विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध नवगीतकार  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने सर्दी का जीवंत चित्र खींचते हुए कहा - 

ठिठुरन भी धरने लगी, रोज़ भयंकर रूप।

रिश्तों में अपनत्व-सी, कहीं खो गई धूप ।। 

कुहरे ने जब धूप पर, पाई फिर से जीत । 

सर्दी भी लिखने लगी, ठिठुरन वाले गीत ।।

विशिष्ट अतिथि कवयित्री डॉ. संगीता महेश ने नववर्ष का अभिनंदन करते हुए कहा -

आओ नववर्ष, तुम्हारा अभिनंदन। 

शुभ हो तुम्हारा जीवन में आगमन। 

स्वागत में हम गीत तुम्हारे गाते हैं। 

नव आशा का दीप जलाते हैं। 

 संचालन करते हुए संस्था के महासचिव जितेन्द्र 'जौली' की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

बेटी अब बेटा बनी, चला रही परिवार।

बेटी को भी दीजिए, बेटों जैसा प्यार।। 

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' ने देशभक्ति की अलख जगाते हुए कहा -

 मैं जाऊं जब भी दुनिया से यही बस आरजू मेरी। 

तिरंगा हो कफन मेरा भी मैं उस में लिपट जाऊं।।

युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने अपने भावों को दोहों में अभिव्यक्त करते हुए कहा - 

है तुमसे यह प्रार्थना, हे गिरधर गोपाल। 

हर संकट से मुक्त हों, आने वाले साल।। 

फुटपाथों पर बन रहा, किस-किस की तक़दीर।

बूढ़े एक लिहाफ़ का, बेदम पड़ा शरीर।। 

कवयित्री इंदु रानी की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

धीरे धीरे उंगलियाँ छुड़ा रहा यह वर्ष।

अंग्रेजी नव वर्ष का,मना रहे हम हर्ष।।

लोकप्रिय कवयित्री  मोनिका शर्मा 'मासूम' का अंदाज़ इस प्रकार रहा - 

इन आंखों में तेरा चेहरा, तेरा ही नाम होठों पर। 

नहीं उतरे नशा जिसका रखा वो जाम होठों पर। 

तेरी सांसों से महके ये मेरी सांसों की स्वर लहरी, 

बनाकर बांसुरी रख ले मुझे तू श्याम होठों पर। 

डॉ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

पल पल खुशियाँ रास रचाएँ।

जन सारे उल्लास मनायें।

दीप नेह का कर ज्योतिर्मय,

कलुष जगत का दूर भगायें।

संस्था के कार्यकारी महासचिव राजीव 'प्रखर' द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।


शनिवार, 1 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का कहना है ---बदल गया है आज कलैंडर पर पंचांग नहीं बदला । कैसे कहूं नव वर्ष इसे , अपना अंदाज नहीं बदला।।



बदल गया है आज कलैंडर

पर  पंचांग नहीं बदला ।

कैसे कहूं नव वर्ष इसे ,

अपना अंदाज नहीं बदला।।


ठंड जकड़ती पल-पल सबको

क्रियाशीलता शिथिल  हुई । 

अंग्रेजी  नवबर्ष आ गया,

आजादी गुम कहां हुई ।। 


शीत लहर चल रही ठिठुरती

और सिकुड़ती नियती नटी।

निविण निशा की बढ़ी कालिमा

दिनकर की रश्मियां घटीं।।


कांप रही है धरा ठंड से

कोहरे की चादर ओढे,।

धूल जमी पत्ती पत्ती पर।

कैसे ऑक्सीजन  छोड़ें।।


नहीं परिंदों का कलरव है ,

गुमसुम सारे वृक्ष खड़े ।

न इसमें कुछ भी नवीन है,

बस दावे हैं बड़े बड़े।।


नव बर्ष नयापन कुछ तो  हो,

कुछ दिन थोड़ा बस धैर्य धरो।

अब नकल छोड़ औअक्ल लगा,

प्रतीक्षा बस उस दिन की करो।


जब प्रकृति के आंगन में 

हर रंग उभर कर आएगा,

दिन बहुत सुहाने आएंगे,

कोहरा सब गुम हो जाएगा


धरती पर होगा नव बसंत,

हर भंवरा गीत सुनाएगा ।

जब चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष

नव वर्ष  हमारा आयेगा।


है आर्यवर्त का यह गौरव,

युक्ति संगत प्रमाण सिद्ध।

सबसे उत्तम गणना युगाब्ध,

नव वर्ष हमारा है प्रसिद्ध।।


फागुन के रंग बिखरने दो!

धरती को जरा संवरने दो!

हरियाली फैले चहूं ओर,

पुष्पों को जरा महकने दो!


खुश हाली घर घर आएगी,

सब गीत खुशी के गाएंगे ।

अनमोल विरासत है अपनी,

मिलजुल नव वर्ष मनाएंगें।


  अब चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,

  हर दिल उल्लास  जगाना  है

  और छोड़ अंग्रेजी नया साल

  हिंदी नववर्ष मनाना है ।।


✍️ अशोक विद्रोही 

412, प्रकाशनगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम की रचना ---हैं यही नववर्ष की शुभकामनायें


सब सुखी हों स्वस्थ हों

उत्कर्ष पायें

हैं यही नववर्ष की

शुभकामनायें


अब न भूखा एक भी जन

देश में हो

अब न कोई मन कहीं भी

क्लेश में हो

अब न जीवन को हरे

बेरोज़गारी

अब न कोई फै़सला

आवेश में हो

हम नयी कोशिश

चलो कुछ कर दिखायें

हैं यही नववर्ष की

शुभकामनायें


धर्म के उन्माद का

ना हो अंधेरा

दूर ले जाये कहीं

हिंसा बसेरा

हो तनिक न जातिगत

विद्वेष का विष

फिर उगे विश्वास का

नूतन सबेरा

हों सुगंधित प्यार से

सारी दिशायें

हैं यही नववर्ष की

शुभकामनायें


✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल-9412805981

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता कहती हैं ---नया साल फिर आ गया, मन में जागी आस ...


 

मुरादाबाद मडल के बहजोई (जनपद सम्भल )के साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा का कहना है ---सब प्यार में ही खो जाएं इस नए साल में


 कुछ बात ऐसी हो जाएं इस नए साल में 

सब मैल मन के धो जाएं इस नये साल में 


न फासले कोई रहें ना हो कोई तकरार ही

सब प्यार में ही खो जाएं इस नए साल में 


बागों में खिलते रहे फूल अपनी उम्र तक 

कुछ ऐसे बीज बो जाएं इस नए साल में 


महकी हो दूर तक फिजा जहां तक रसाई हो 

सब रंगो बू में सो जाएं इस नए साल में


✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

जनपद सम्भल, उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही का कहना है ---ऐसा था ये वर्ष पुराना, थम गया जिसमें पूरा संसार ....


 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की रचना --वर्ष पुराना गुजर रहा है





तारीखों के जीने से
चुपके से वो धीरे धीरे
देखो कोई उतर रहा है
उम्र की माला से 
आज़ फिर एक मोती
 टूट देखो गिर रहा है।
 कुछ अपने सपने से होकर
 कुछ बेगाने अपने होकर
 बिगड़ा पल फिर संवर रहा है।
 कुछ बिछुड़े हैं अनहोनी से
 बंधे हुए थे नेह डोरी से।
 वक्त लगा कर पंख सहसा
  चुपके चुपके गुजर रहा है।
  अरमानों के आसमान पर,
  आशाओं की फिर धूप खिली है। 
  गुजरे लम्हों पर झीना सा,
  एक परदा गिर रहा है।
  भोर सुहानी फिर से होगी
  तन मन सुन्दर और स्वस्थ हों
  न हो कोई भी अब रोगी।
  नवल वर्ष में जन जन में 
  यह विश्वास पल रहा है।
  नवल रश्मियां भानू शशि की
  आएंगी फिर से धरती पर,
  देखो बादल सा बनकर
  वर्ष पुराना गुजर रहा है।
  आओ बैठो फिर से पास
  घोलो अंतर्मन में उल्लास।
  रेखा जज्बातों का दरिया
  धीरे धीरे उमड़ रहा है।*
  
 ✍️ रेखा रानी
विजय नगर गजरौला ,
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की ग़ज़ल ---देखिए जी देखिए फिर नया साल आ गया ...


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में फरीदाबाद निवासी ) सीमा वर्मा का कहना है --"नए साल" ने फिर से हमको , नई राह से मिलवाया


 समय का ख़जाना

              वक्त का नजराना 

   एक साल का आना

              और एक साल का जाना

   सदियों की नुमाइश 

               जीवन जीने की ख़्वाहिश 

   मोहताज हम पलों के 

               और जीवन बीत जाना

   लम्हों से हमने सीखा

                और वक्त को चौंकाया 

   हर पल को जी लेने का

                हमने भी मन बनाया 

   छिटका दिए सब ग़म हैं 

               जो बीता वो बिसराया

   आने वाले समय में 

               भविष्य में और कल में 

   पाना नया क्षितिज है

                सजने नए स्वप्न हैं 

   उगते हुए दिनकर ने 

                उम्मीदों को सहलाया

   वो "था" था जो बीता है 

           अब "है" और जो  भी  "होगा"

   चलना या रुकना जो हो

            थकना संभलना जो हो

   "नए साल" ने फिर से हमको 

              नई राह से मिलवाया  ।।।।। 

  ✍️ सीमा वर्मा ,फरीदाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) कहती हैं --- नववर्ष नव उल्लास लाये हम सबके जीवन में ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का कहना है- ---नया वर्ष लाए खुशियों के, अनगिन भरे पिटारे, शुभ संदेश मिलें रोजाना, चमकें भाग्य सितारे


नया वर्ष  लाए खुशियों के,

अनगिन     भरे      पिटारे,

शुभ संदेश  मिलें  रोजाना,

चमकें     भाग्य     सितारे।


रूठी खुशियां वापस लौटें,

लौटें        सभी      सहारे,

बीती बातें भूल  दिलों  के,

खोलें       नूतन        द्वारे।


हरपल हीआशीष बड़ों का,

आकर      तुम्हें       दुलारे,

रिद्धि,सिद्धि,समृद्धि सर्वदा,

होवे         साथ      तुम्हारे।

 

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद, उ.प्र.

मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                   ----------

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक --- एक नया साल फिर ...


 

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की काव्य कृति - मुरादाबाद और अमरोहा के स्वतंत्रता - सेनानी। यह कृति वर्ष 2003 में प्रतिमा प्रकाशन , दीनदयाल नगर ,मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। स्मृतिशेष मिश्र जी ने अपनी यह कृति मुझे तीन जून 2004 को प्रदान की थी ।



 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:4ddceab9-df59-47fc-8d56-dacba222d90f

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

बुधवार, 29 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की रचना --यहां भग्न मूर्ति का भाग हूं । यह रचना उन्होंने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान लिखी थी । हमें यह रचना उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने ।


मैं शिकारियों से घिरा हुआ, 

मैं थके हिरन सा डरा हुआ,

किसी राजधानी में खो गया,

मुझे क्या हुआ, मुझे क्या हुआ।


वहां लिख रहा था कहानियां,

वहां खोजता था निशानियां,

वहां कर रहा था खुदाइयां,

जहां ज्ञान-धन था दबा हुआ।


हैं पुरावशेष रखे जहां,

मृण्पात्र-शेष रखे जहां,

मुझे उस मकां का पता तो दो,

है बुतों से ही, जो सजा हुआ।


यह नया शहर भी अजीब है,

यहां हर शरीफ़ ग़रीब है,

यहां हर निगाह है अजनबी,

है सभी में ज़हर घुला हुआ।


वहां शब्द-शब्द का अर्थ था,

वहां शब्द-शब्द समर्थ था,

यहां आके सब ही भुला चुका,

वहां पुस्तकों का पढ़ा हुआ।


वहां मूर्ति थी किसी यक्ष की,

वहां यक्षिणी मेरे वक्ष थी,

यहां भग्न मूर्ति का भाग हूं,

ना जुड़ा हुआ, ना ढला हुआ।


वहां तितलियों को सुगंध दी,

वहां ज़िंदगी मेरी छंद थी,

यहां डाल-टूटा गुलाब हूं,

ना झरा हुआ, ना खिला हुआ।


वहां आंचलों ने सजा दिया,

यहां आंधियों ने हिला दिया,

मैं वो बदनसीब चिराग हूं,

ना धरा हुआ, ना जला हुआ।


✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र

::::प्रस्तुति::::::

अतुल मिश्र

सुपुत्र स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र

चन्दौसी, जिला सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत


मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की व्यंग्य कविता ---हम्माम में नँगा -


मैं,

देख रहा हूँ

उसका कद बड़ा होते हुए

मैं,

देख रहा हूँ-चुपचाप

दूसरों की मज़ाक बनाते हुए

मैं,

देख रहा हूँ

अपने को बड़ा साबित

करते हुए

मैं,

देख रहा हूँ

विनम्रता के साथ

कुटिलता की चौसर

खेलते हुए,

मैं,

देख रहा हूँ

चमचागिरी से उपर उठते हुए

मैं,

देख रहा हूँ

मठाधीशों की चरण रज

माथे पर लगाते हुए,

हाँ मैं, 

देख रहा हूँ

गुटबाजी में सबसे आगे

जबकि,

मैनें, देखा था उसे

आयोजनों में मुरझाये

चेहरे के साथ

पीछे की पंक्ति में बैठे हुए

मैनें,देखा था

उसका वजूद जो

उस समय न के समान था

मैनें, देखा है

अपने हितों के लिए

धोखा देते हुए

आज

वो विद्वान है ।

जी हजूरी में महान है ।

वह

बड़ी चालाकी से

मीठे शब्दों की

बहाता है गंगा।

जबकि मैनें देखा है

उसको हम्माम में नँगा।।


 ✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश ,भारत

सोमवार, 27 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की प्रथम काव्य कृति -- मधुगान । इस कृति में उनके 37 गीत हैं । इस कृति का प्रकाशन श्री योगेन्द्र मोहन मिश्र, काव्य कुटीर चन्दौसी द्वारा वर्ष 1951 में हुआ । हमें यह दुर्लभ कृति उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र श्री अतुल मिश्र जी ने ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:05d1cb3b-7e31-4758-882d-d1c0ed426b4b

::::::::::प्रस्तुति:::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

रविवार, 26 दिसंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार सुभाष चंद्र शर्मा का गीत ----है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में


 मां वाणी को प्रणाम करें, वे निवास करें सबके सुर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।

अलंकार से हो अलंकृत, हिंदी भाषा का अंग-अंग।

हम हिंदी के हिंदी हमारे, रहे सदा ही संग-संग।।

कभी अलग न होवे हमसे, सदा बसे अन्तःपुर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।

हिंदी के प्रकाश में दुनियां, नियमित आगे बढ़ें सदा।

हिंदी भाषी ही फिल्मों में, कलाकार की दिखे अदा।।

हिंदी के शब्दों का संगम, संगीत बजे फिर नूपुर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।

सूर कबीर तुलसी का परिश्रम, केशव का प्रयास अथक।

रसखान जायसी हिंदी सुत हैं, है इसमें न कोई शक।।

कविता की रसधार दीखती, भूषण और रत्नाकर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।

एक अटूट विश्वास हो, हिंदी हो सब भाषाओं की नायक।

रोजगार से जोड़ सभी को, बन जाएगी अर्थ सहायक।।

प्रदान करे ये विद्वानों को, धन दौलत मात्रा प्रचुर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।

आश्वस्त हैं हिंदी भाषी, एक दिन ऐसा भी ठहरेगा।

हिंदी भाषा का यह परचम, अखिल विश्व पर भी फहरेगा।।

बने आस्था जन-जन की, हिंदी गौ-गंगा-भूसुर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।

छोटी सी कविता लिखकर मैं, डूब रहा हूं अहंकार में।

ज्ञान शून्य अल्पज्ञ सर्वदा, रस छंद और अलंकार में।।

अंतिम इच्छा हिंदी सेवा, बाद बसें फिर सुरपुर में।

है मेरी अभिलाषा अविरल, हो हिंदी सबके उर में।।


✍️ सुभाष चंद्र शर्मा 

मोहल्ला-बरेली सराय, प्रेमशंकर वाटिका गेट 2, सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नंबर-9761451031

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---- हरफनमौला


वह पढ़ने लिखने में

बहुत अटकता था

सबकी आंखों में खटकता था

शर्मिंदगी से बचने को

घर के काम में

हाथ बंटाने लगा

धीरे धीरे

पूरे घर का खाना बनाने लगा

कुछ दिन बाद उसके मामा ने

एक साबुन कंपनी में लगा दिया

उसने घर घर जाकर

साबुन बेचने का काम किया

इसी बीच देश में

भ्रष्टाचार का विकास हो गया

और वह कम पढ़कर भी

हाई स्कूल,इंटर, बी ए, बी टी सी

पास हो गया

आज वह

सफल प्राइमरी टीचर है

और उसकी घुसपैठ

सभी बड़े 

शिक्षा अधिकारियों के भीतर है

उसका निरंतर

गुणगान किया जाता है

हर बात में

उसका उदहारण दिया जाता है

मिड डे मील वाला ना हो

तो खुद खाना बना लेता है

प्रधान से लेकर बच्चों तक

सबको खिला देता है


किसके घर में कितने बच्चे है

स्कूल जाते है या नही

जब सरकार ने यह सर्वे करवाया

उसने अपने

मार्केटिंग अनुभव का लाभ उठाया

अगले ही दिन

पूरी लिस्ट बना लाया

जनगणना हो, बी एल ओ दायित्व हो

या हो पोलियो अभियान

यूनिफॉर्म से लेकर

विटामिन की गोलियां तक

बंटबाने में उसका

रहता है महत्वपूर्ण योगदान

बस पढ़ाई के मामले में

उसका हाथ तंग दिखता है

वैसे भी आजकल

पढ़ाई किसकी प्राथमिकता है

और ये भी

एक कड़वी वास्तविकता है

जो पढ़े लिखे टीचर हैं

उनको भी पढ़ाने का

वक्त कहां मिलता है


उसका हरफनमौला व्यक्तित्व

बाकी सब पर भारी है

इस साल उसको

राष्टीय पुरस्कार देने की तैयारी है।


✍️ डॉ.पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की दुर्लभ गीति काव्य कृति -- कल्पना कामिनी । इस कृति में उनके वर्ष 1951-52 में लिखे 51 गीत हैं । इस कृति का प्रकाशन काव्य कुटीर चन्दौसी द्वारा वर्ष 1955 में हुआ । हमें यह कृति उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र श्री अतुल मिश्र जी ने ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:fcaa2113-5029-407d-aa67-9455ca2ef29c

::::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822