समय का ख़जाना
वक्त का नजराना
एक साल का आना
और एक साल का जाना
सदियों की नुमाइश
जीवन जीने की ख़्वाहिश
मोहताज हम पलों के
और जीवन बीत जाना
लम्हों से हमने सीखा
और वक्त को चौंकाया
हर पल को जी लेने का
हमने भी मन बनाया
छिटका दिए सब ग़म हैं
जो बीता वो बिसराया
आने वाले समय में
भविष्य में और कल में
पाना नया क्षितिज है
सजने नए स्वप्न हैं
उगते हुए दिनकर ने
उम्मीदों को सहलाया
वो "था" था जो बीता है
अब "है" और जो भी "होगा"
चलना या रुकना जो हो
थकना संभलना जो हो
"नए साल" ने फिर से हमको
नई राह से मिलवाया ।।।।।
✍️ सीमा वर्मा ,फरीदाबाद
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