मंजिल की और तलाश नहीं ।
मंजिल भी शायद पास नहीं ।।
मैं थक के राह में बैठ गया ।
मुझे दर्द का कुछ एहसास नहीं ।
नहीं पाने की कोई चाहत अब ।
अब कुछ खोने की आस नहीं ।।
मुझे कौन मिला किसने छोड़ा ।
ये सब किस्मत के किस्से हैं ।।
हां जिनके लिए सबको छोड़ा ।
अब उनको मेरा पास नहीं ।।
विश्वास था तो जग जीत लिया ।
अब जग है पर विश्वास नहीं ।।
क्यों अपना मुजाहिद को समझूं ।
जब मैं ही खुद के पास नहीं ।।
✍️मुजाहिद चौधरी
हसनपुर , अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
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