अरे
तुम फिर आ गये
गये नहीं अभी तक
मैं,
कहाँ जाऊँगा मालिक ?
मैं यहीं जन्मा हूँ
यहीं पला हूँ
यहीं आपकी छत्रछाया में
बड़ा हुआ हूँ।
तभी से यहीं खड़ा हुआ हूँ।।
मैं तो,
नीचे से, उपर से
दायें से, बायें से
हर दिशाओं से
हर परिस्थितियों में
उपस्थित रहता हूँ मालिक
आपके आशीष से
समय पर काम करता हूँ
मैं कहाँ जाऊँगा ?
यहीं जन्मा
यहीं मर जाऊँगा,
फिर
मेरी औलाद काम करेगी।
जन्मों जन्मों तक
आपकी सेवा करेगी।।
मैं तो
आपके आस - पास
ही रहता हूँ।
सत्य को भी
झूठ में बदलता हूँ।।
आप चाहें या न चाहें
मैं,
हर पल सेवा करुंगा।
जब पुकारोगे
हाज़िर रहूँगा।
मैं,
हर आदेश का पालन
करता हूँ।
यही तो मेरा श्रेष्ठ शिष्टाचार है ।
मेरा नाम भ्रष्टाचार है ।।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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