तर्पण करके पितरों का हम
आश्विन मास कनागत में ।
मनोयोग से लग जाते हैं
त्योहारों के स्वागत में ।।
इठला उठते हैं घर-द्वारे
जब पहनें साफ-सफाई ।
घर से विदा दलिद्दर होते
जी भर ले नेग विदाई ।।
फिर भी मन अनमना, सोचता
रही कमी कुछ लागत में ।
नवरात्र शुभम् पूजा-अर्चन
शुद्ध मनों को कर देते ।
अहंकार हो सभी पराजित
पुरुषोत्तम को बल देते ।।
यहीं राम की लीलाओं का
मिलता मर्म परागत में ।
जगमग होकर दीवाली में
मोती मन के बिखरें सब ।
घर-घर के कोने-कोने भी
उपवन जैसे निखरें जब ।।
गान उभर कर आ बैठे फिर
अपने आप अनाहत में ।
धूम-धाम से देवठान को
देव उठाये जाते हैं ।
गंग घाट पर नहा-नहा कर
आसन देव लगाते हैं ।।
कर्म हमारे तब हैं ,तोले
जाते दिव्य अदालत में ।
अपने-अपने कर्म-धर्म में
जब-जब दोष भरे देखे ।
शरण यज्ञ की हम पहुंचे हैं
ले, लेकर अपने लेखे ।।
तब कस्तूरी बस जाती है
आकर सोच तथागत में ।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद
मोबाइल:9319086769
वाह क्या बात है... बहुत बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंडॉ अशोक रस्तोगी अग्रवाल हाइट्स राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद
बहुत बहुत धन्यवाद ।
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