गुरुवार, 18 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर के दो नवगीत .......


(एक) महँगाई

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महॅंगाई ने जबसे पहनी,

अच्छे दिन की अचकन।


ठंडा चूल्हा, चौके की बस,

करता रहा समीक्षा।

कंगाली में गीला आटा, 

लेता रहा परीक्षा।

जाग  रही है भूख अभी भी,

ऊँघ  रहे सब बरतन।


मीटर चालू बत्ती गुल तो,

ठलवे  हैं अँधियारे।

जिसकी आमद होय अठन्नी,

वो क्या रुपया वारे।

बिजली बिल को देख बढ़ी है,

 हर गरीब की धड़कन।


राशन की कीमत भी जबसे, 

बढ़कर ऊपर उछली।

अवसादों में घिरे बजट की, 

 टूटी  हड्डी-पसली।

सब जन मिलकर ढूँढ रहे हैं, 

अब विकास की कतरन।

(दो)  सर्वश्रेष्ठ अभिनय-

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सर्वश्रेष्ठ अभिनय जीवन का,

होता  केवल खुश दिखना।


सुख की मंज़िल पाने को  हर,

दुख की दुखती रग पकड़ी।

फिर भी उलझन के जालों को,

बुने गयी मन की मकड़ी।

कठिन प्रश्न से इस जीवन का,

मुश्किल है उत्तर लिखना।


ज़िम्मेदारी के काँटों पर,

कब फुर्सत की सेज सजी।

ख्वाहिश के हर व्यंजन वाली,

 मेज रह गयी सजी -धजी।

अमृत -मंथन करके भी ,पर,

 पड़ जाता विष ही चखना।


यदा कदा ही सही, कहीं पर,

जुगनू अब भी दिखते हैं।

घोर  अँधेरे के  सीने पर,

चमकीले क्षण लिखते हैं।

हमने भी जी को सिखलाया,

उम्मीदें पाले रखना।


  मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत



4 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों गीत मनोहर हैं। बधाई
    डॉ अजय अनुपम मुरादाबाद

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  2. लाजबाब ,अनुपम रचनाएँ ।हार्दिक शुभकामनाएँ मीनाक्षी जी

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