कुछ चूहे
कुतर रहे हैं
देश का नक्शा
हम कर रहे हैं
गणपति वंदन
कुछ बंदर
उजाड़ रहे हैं
देश की बगिया
हम गा रहे हैं
हनुमान चालीसा
कुछ विषधर
उगल रहे हैं
लगातार जहर
हम डूबे हुए हैं
नाग पंचमी उत्सव में
बढ़ती ही जा रही है
कौरवों की संख्या
हम आंखें बंद करके
कर रहे हैं
कन्हैया की पूजा
आखिर कौन निभाएगा
कृष्ण का धर्म
कब रची जाएगी
नई गीता
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
................................................
अब तो डाक-व्यवस्था जैसा
अस्त-व्यस्त मन है
सुख साधारण डाक सरीखे
नहीं मिले अक्सर
मिले हमेशा बस तनाव ही
पंजीकृत होकर
फिर भी मुख पर खुशियों वाला
इक विज्ञापन है
गूगल युग में परम्पराएँ
गुम हो गईं कहीं
संस्कार भी पोस्टकार्ड-से
दिखते कहीं नहीं
बीते कल से रोज़ आज की
रहती अनबन है
नई सदी नित नई पौध को
रह-रह भरमाती
बूढ़े पेड़ों की सलाह भी
रास नहीं आती
ऐसे में कैसे सुलझे जो
भीतर उलझन है
✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
.......................................
हम वासी आज़ाद वतन के।
सोचें क्यों अन्जाम।।
नियम ताक पर रख कर सारे,
वाहन तेज भगाएं।
टकराने वाले हमसे फिर,
अपनी खैर मनायें ।
सही राह दिखलाने की हर,
कोशिश है नाकाम।
चोला ओढ़े सच्चाई का,
साथ झूठ का देते।
गुपचुप अपनी बंजर जेबें,
हरी-भरी कर लेते।
हर मुद्दे का कुछ ही पल में,
करते काम तमाम।
सुर्खी में ही लिपटे रहना,
हमको हरदम भाता।
भूल गए मेहनत से भी है,
अपना कोई नाता।
जिसकी लाठी भैंस उसी की,
जपते सुबहो-शाम।
✍️ प्रो ममता सिंह
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
......................................
एक देशद्रोही नेता को
जिंदा शेर के सामने डालने
की सज़ा सुनाई गई
नेता जी घबरा गए,
जोर जोर से चिल्लाए ।
बोले
माई बाप मुझे क्षमा करें
अब कोई गलत काम नहीं करूंगा,
जैसा आप चाहेंगे
वैसा ही काम करूंगा।
देश के प्रति वफादार रहूंगा।
परन्तु
उसकी एक न सुनी गई
नेता जी को शेर के पिंजरे
में डाल दिया गया,
शेर दहाड़ा,
नेता जी के पास दौड़ा।
उसी क्षण वापस लौट गया,
एक ओर बैठ गया।
नेता जी की जान में जान आई,
बोले
मुझे क्यों नहीं खाया भाई।
शेर बोला,
तेरे खून से मिलावटों ,
घोटालों तथा मासूमों की
हत्याओं की बू आ रही है।
तुझको
खाने में मुझे शर्म आ रही है।
अरे,
तेरे शरीर को तो गिद्ध भी
नहीं खायेंगे।
खायेंगे तो खुद ही मर जायेंगे।
मैं तो, फिर भी जंगल
का बादशाह हूँ,
तू ,न बादशाह है न वज़ीर
बस धरती पर बोझ है
अरे,
धिक्कार है तेरे जीवन को
तूने देश को खा लिया
मैं,
तुझे क्या खाऊंगा ।
और यदि खा भी लिया तो
कैसे पचा पाऊंगा ।।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
........................................
नटखट है वो श्याम सलोना,सबका प्यारा है मोहन।
कृष्णा की जब मुरली बाजे,नाचे सारा बृंदावन।।
ग्वाल संग वो धेनु चराए,चोरी कर माखन खाए।
देखो कैसी करे ठिठोली, ऊखल से बांधा जाए।
रास रचाकर खूब रिझाए,उसको है शत शत वंदन।।
जब जब अत्याचार बढ़े हैं,धरती पर अवतार लिया।
गीता का संदेश दिया,इस मानवता को तार दिया।
आओ मिलकर जतन करें हम,नेक बने सबका चिंतन।।
कर्म भूमि में ऐसे रहना,पोखर में ज्यों खिले कमल।
नैनों में हो छवि माधव की,बन जाए यह मन निर्मल।
ज़हर भरे इस वीराने में, ख़ुद ही बन जाना चंदन।।
कृष्णा की जब मुरली बाजे नाचे सारा वृंदावन।।
✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
......................................….
प्राण समर्पित कर दिए, राष्ट्र-धर्म के काज।
सीमा-रेखा की रखी, सेना ने ही लाज।।
धर्म और मजहब अलग, अलग हमारी जात।
राष्ट्र-धर्म के नाम पर, किंतु एक जज्बात।।
दिल में ऐसी भावना, भर देना करतार।
जननी जैसा ही रहे, जन्मभूमि से प्यार।।
भारत भू से प्यार के, किस्से कई हजार।
शत्रु वक्ष पर लिख गयी, राणा की तलवार।।
भारत भू का भाल है, केसरिया कश्मीर।
नजर हटा लो दुश्मनों, वरना देंगे चीर।।
बिस्मिल से बेटे मिले, भगत सिंह से लाल।
उन्नत जिनसे हो गया, भारत माँ का भाल।।
खूब बजाओ तालियां,देश हुआ आबाद।
साल पिछत्तर हो गये, हमें हुए आजाद।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
.......................................
हिंदोस्तां की आनबान शान तिरंगा
सारे जहां में देश की पहचान तिरंगा।
कट चाहे सर इसे झुकने नहीं देंगे,
भारत के हरेक लाल का अभिमान तिरंगा।
तिरंगा शान से यूं ही,
सदा सरहद पे लहराए ।
वतन के वास्ते जी लें,
वतन पर ही ये जां जाये।
मिटी झांसी की रानी ,
लक्ष्मीबाई आन की खातिर।
किया सर्वस्व न्योछावर,
न राणा ने झुकाया सर।।
काफिले उन शहीदों के,
हैं कितने काम में आये।।
तिरंगा शान से यूं ही,
सदा सरहद पे लहराये ।।
कि मन चित्तौड़ में अग्नि ,
अभी यूं ही धधकती है।
हजारों पद्मिनियों की चीख,
क्रंदन बन सुलगती हैं ।
सजग प्रहरी बनें हम सब,
न मां पर आंच फिर आये ।।
तिरंगा शान से यूं ही,
सदा सरहद पे लहराये ।।
हुए घर में ही परदेसी,
यहां वादी के वाशिंदे ।
था गूंगा बहरा शासन और,
थे सारे भ्रष्ट कारिंदे।।
मगर दृढ़ता पराक्रम ने,
सभी वे प्रश्न सुलझाये।
तिरंगा शान से यूं ही ,
सदा सरहद पे लहराए ।
नहीं कश्मीर और बंगाल में,
फिर खून खच्चर हो।
न हों बेशर्म आंखें और,
छुपे दामन में खंजर हों।।
न खा कर अन्न जल हम,
राष्ट्र का मक्कार हो जायें।।
तिरंगा शान से यूं ही ,
सदा सरहद पे लहराए।।
विविध धर्मों का,पंथों का,
ये प्यारा देश है भारत ।।
भले हों धर्म नाना पर ,
सभी को इसकी है चाहत।
नहीं गद्दार हरगिज अब,
कहीं कोई नज़र आये।
तिरंगा शान सेयूं ही ,
सदा सरहद पे लहराए ।
वतन के बास्ते जी लें,
वतन पर ही ये जां जाये।
✍️ अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
..................................
है नरों के इन्द्र ने तुमको जगाया
अब भी न जागे तो फिर संताप होगा
कौन जाने किस घड़ी हो युद्ध भारी
सोते रहे तो धर्म से यह पाप होगा
अब उठो जागो लडो खुद अपने मन से
आस्तीनें जांच लो कोई सांप होगा
अब चलेगी धर्म की खड़ग जो शिथिल थी
अधर्मियों के शिविर भारी प्रलाप होगा
✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
........................................
कैसे आजादी मिली, कैसे हिन्दुस्तान
कितने वीरों ने दिये, इस पर तन मन प्राण,,
सोचें तो मन हूंकता, जब जब करें विचार
वीरों ने कैसे सहे, तन पर सतत् प्रहार,
खुद अपने ही खून से, कैसे सींचा बाग़ •
कैसे अपनी मृत्यु को, बना लिया सौभांग
गोली, फाँसी, सिसकियां, जेलें, कोडे, मात
क्या क्या मुश्किल की वरण, कितनी झेलीं घात,,
तोपें,चाबुक, हथकड़ी, तन मसला बारूद
डिगा सका ना लक्ष्य से, थामे रखा वजूद,
तनिक नहीं परवाह की, गये स्वयं को भूल
इस स्वतन्त्रता के लिये, सब कुछ किया कबूल,
भीषण संघर्षो सहित, जब पाया यह मान
इक चिंगारी फिर उठी, झुलसा हिन्दुस्तान,,
बोए बीज बबूल के सिखा गया तकरार
ज़ालिम एक परिवार मे, उठा गया दीवार,
बस मज़हब के नाम पर, फिर झेला संग्राम
वो भाई खुद भिड़ गये, हुआ बुरा परिणाम,,
जिस आज़ादी के लिये, सहे घोर संघर्ष
अपनी लाशों संग मिली, कैसे होता हर्ष,,
भाई को हिस्सा दिया, और दिया तिरपाल
रीते मन से दी दुआ, रहे सदा खुशहाल,,
और फिर सत्ता मिल गयी, खूब संभाला राज
आज़ादी के मोल का, इतना किया लिहाज,,
एक बरस में दे दिये, इस खातिर दिन चार
हम .बड़बोले बन गये, बदल लिया व्यवहार,,
आज़ादी के मायने बदल गये फिर आप
जब चाहे दिल खींच लो, टाँग किसी की आप,,
मुंह में जो आता रहे, पहले दीने बोल
आज़ादी है भाईयों, करनी कैसी तोल,,
राजनीति में फिर चला, ऐसा नंगा नाच
आज़ादी लज्जित हुई, कौन सके ये बाँच,
शब्द नहीं एक भाव है, आज़ादी की बात
स्वाभिमान की राष्ट्र को, मिलने दें सौगात,
नहीं न ऐसा कीजिये, गढ़िये नव प्रतिमान
विश्व गुरू फिर से बने, मेरा देश महान,
✍️मनोज वर्मा 'मनु'
6397093523
........................................
मातृभूमि पर बलि होने के, अनगिन सपने पलते हैं।
कोमल कण कोमलता तज कर, अंगारों में ढलते हैं।
तब नैनो का नीर सूख कर, रच देता है नव गाथा,
जब भारत के वीर-बाॅंकुरे, लिए तिरंगा चलते हैं।
-----
तम के बदले हृदय में, भरने को उल्लास।
दीपक में ढल जल उठे, माटी-तेल-कपास।।
चुपड़े अपने गात पर, खूब सियासी तेल।
दानव भ्रष्टाचार का, दण्ड रहा है पेल।।
प्यारे भारत को सदा, ऐसी मिले उमंग।
मन के भीतर भी खिलें, ध्वज के सारे रंग।।
बेबस भीखू को मिली, कैसी यह सौगात।
दीवारों से कर रहा, अपने मन की बात।।
बढ़ते पंछी को हुआ, जब पंखों का भान।
सम्बंधों के देखिये, बदल गए प्रतिमान।।
आये जब अवसान पर, श्वासों का यह साथ।
तब भी लेखनरत रहें, हे प्रभु मेरे हाथ।।
ऑंखें खोलीं रात ने, दिन को चढ़ी थकान।
दीपक रचने चल पड़ा, एक नया सोपान।।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
..........................
अंबर के सूने आँगन में
जड़ती रजनी चाँद सितारे
सजते हीरे मोती जैसे
लगते कितने प्यारे प्यारे ।
अंबर के सूने आँगन में....
सूर्य कोप से तपता दिनभर
सहता सारी पीढ़ा हँसकर
धीर वीर उस नीलांबर पर
संध्या अपना यौवन वारे ।
अंबर के सूने आँगन में ....
कहता कभी न दर्द हृदय का
स्वामी अडिग शांत भाव का
अनंत असीम आश्रयदाता
देख यामिनी रूप सँवारे ।
अंबर के सूने आँगन में .....।
✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
..............................
सर्वश्रेष्ठ अभिनय जीवन का,
होता केवल खुश दिखना।
सुख की मंज़िल पाने को हर,
दुख की दुखती रग पकड़ी।
फिर भी उलझन के जालों को,
बुने गयी मन की मकड़ी।
कठिन प्रश्न से इस जीवन का,
मुश्किल है उत्तर लिखना।
ज़िम्मेदारी के काँटों पर,
कब फुर्सत की सेज सजी।
ख्वाहिश के हर व्यंजन वाली,
मेज रह गयी सजी -धजी।
अमृत -मंथन करके भी ,पर,
पड़ जाता विष ही चखना।
यदा कदा ही सही, कहीं पर,
जुगनू अब भी दिखते हैं।
घोर अँधेरे के सीने पर,
चमकीले क्षण लिखते हैं।
हमने भी जी को सिखलाया,
उम्मीदें पाले रखना।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
...............................
श्री हरि आज लिए अवतार,
खुशियाँ मना रहा संसार।
कृष्ण रूप में आये ईश्वर,
करने दुष्टों का संहार,
खुशियाँ मना रहा संसार।।
रात अंधेरी ऋतु वर्षा की,
तिथि अष्टमी भाद्रपद की।
कंस का कारागार,
जिसमें लिए हरी अवतार,
खुशियाँ मना रहा संसार।।
खुली बेड़ियाँ खुल गए फाटक,
सो गए पहरेदार,
वसुदेव नंद बाबा को,
दे आये कृष्ण मुरार।
खुशियाँ मना रहा संसार।
करी बाल लीला प्रभु गोकुल,
सारी यमुना पार।
जान गया कंस भी एक दिन,
लिया काल अवतार।
खुशियाँ मना रहा संसार।।
भेज बुलावा कंस बुलाया,
मथुरा नंद कुमार।
मल्ल युद्ध हुआ अति भारी,
प्राण कंस गया हार।
खुशियाँ मना रहा संसार।।
आज अष्ठमी आयी भादों की,
दिवस कृष्ण अवतार।
मची धूम हर घर मन्दिर में,
सजे हुए दरबार।
खुशियाँ मना रहा संसार।।
✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
उत्तर प्रदेश, भारत
.................................
कवि बन कविता लिखने चलता हूँ
मैं कभी-कभी...
चिड़िया बन शब्द चुनने चलता हूँ ,
मैं कभी-कभी...
पेड़ो के पत्तो का वो घूमना
शाखों का खुली हवा में झूमना
जल का धरती को
धरती का अम्बर को चूमना
शिशु बन पकड़ने चलता हूँ
मैं कभी-कभी....
कवि बन कविता लिखने चलता हूँ ..
मैं कभी-कभी ....
✍️ प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें