रविवार, 26 जुलाई 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह ''साहित्यिक मुरादाबाद" में 19 जुलाई 2020 रविवार को आयोजित 211वें वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, रवि प्रकाश, डॉ श्वेता पूठिया, अखिलेश कुमार वर्मा, मनोरमा शर्मा, संतोष कुमार शुक्ला, कंचनलता पांडेय, डॉ मीरा कश्यप, त्यागी अशोक कृष्णम, श्री कृष्ण शुक्ल, अनुराग रुहेला, सीमा वर्मा, दीपक गोस्वामी चिराग, विभांशु दुबे विदीप्त, राजीव प्रखर, मरगूब अमरोही, मुजाहिद चौधरी, अशोक विद्रोही, नृपेंद्र शर्मा सागर, प्रीति चौधरी, डॉ मनोज रस्तोगी, अमितोष शर्मा और डॉ प्रीति हुंकार की हस्तलिपि में रचनाएं -----
























शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ------मुखौटे


कुछ केसरिया,कुछ सफेद,कुछ हरे हैं
कुछ देशभक्ति से लबालब भरे हैं
कुछ वफादार,कुछ बेपेंदी के लौटे हैं
बाज़ार में तरह तरह के मुखौटे हैं
मुखौटे लगाना,किसी की विवशता है
किसी की आवश्यकता है
कोई बिरला ही होता है
जो बिना मुखौटे के दिखता है
किसी को सुंदरता का मुखौटा भाता है
कोई बुद्धिजीवी होने का
मुखौटा लगाता है
बात को आगे बढ़ाते हैं
कुछ खास मुखौटे दिखाते हैं
ये ईमानदारी का मुखौटा है
सबसे ज्यादा बिकता है
सरकारी कर्मचारियों में पॉपुलर है
लेकिन ज्यादा नहीं टिकता है
भ्रष्टाचार की तेज़ आंधी में
उड़ जाता है
आदमी का असली चेहरा
समाज को दिख जाता है
एक कर्मचारी के साथ
कमाल हो गया
इधर ईमानदारी का मुखौटा लगाया
उधर मालामाल हो गया
जिंदगी खुशियों का झुनझुना हो गई
रिश्वत पहले से दस गुना हो गई
वफादारी का मुखौटा
बेरोजगारों के लिए जरूरी है
इसको लगाते ही
नौकरी की गारंटी पूरी है
अपनेपन का मुखौटा
आधुनिकता का आविष्कार है
आकर्षक और शानदार है
इसको पहनकर आदमी
अपनापन दर्शाता है
मौका मिलते ही
सांप बनकर आस्तीन में घुस जाता है
देशभक्ति के मुखौटे का
आजकल बड़ा क्रेज है
इसकी परफार्मेंस सनसनीखेज है
जो इस मुखौटे को नहीं लगाता है
तथाकथित देशभक्तों की निगाह में
देश द्रोही माना जाता है
अब आपको सबसे खास
आइटम से मिलवाते है
ऑल इन वन मुखौटा दिखाते हैं
इससे हमदर्दी,सहानुभूति,पश्चाताप
सहयोग और विश्वास टपकता है
परिस्थितियों के हिसाब से
ये खुद बा खुद रंग बदलता है
बड़े बड़े करोड़पति भी
इसकी कीमत नहीं चुका पाते हैं
इसको केवल नेता ले जाते है
उनको भी बड़ा त्याग करना पड़ता है
अपनी आत्मा को
गिरवी रखना पड़ता है।
मुखौटा लगाकर बिना मुखौटा दिखना
एक बहुत बड़ी कला है
इस मुखौटे ने सदियों से
भोले भाले लोगो को छला है।
ये हमारी दिली इच्छा है
कुछ ऐसा चमत्कार हो जाए
मुखौटा बाज़ार
हमेशा के लिए बंद हो जाए
आदमी जैसा है,वैसा ही दिखे
अगर कुछ और बनना चाहता है
उसके लिए जी जान से जुटे
अंत में
मै पूरी ईमानदारी से स्वीकारता हूं
ना मै कवि हूं
ना कविता के बारे में कुछ जानता हूं
जब मूड होता है
कवि का मुखौटा लगाता हूं
और कुछ भी लिख डालता हूं
आपसे विनम्र निवेदन है
मेरी इस तुकबंदी को
शांति से सहन कर लेना
क्षमा का मुखौटा लगाना
और मुझे क्षमा कर देना।

डॉ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M -9837189600

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली( जनपद संभल निवासी) साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता---- यह साल कमाने का नहीं जान बचाने का है


निरंतर छह माह से
शवासन की मुद्रा में
खाट तोडते तोड़ते देखकर
निम्न मध्यमवर्गीय पत्नी ने
पति से कहा  झंझोडकर 
रसोई में खाली पड़े डिब्बे
अलमारी औऱ कनस्तर
गालियां दे रहे हैं तुम्हें
पेट मसोसकर
कुछ ध्यान भी है तुम्हें
किसी के सुख दुख दर्द दवाई का
बच्चों के फटे कपड़े चीनी दूध मलाई का
चौबीस घंटे पड़े रहते हो
हाथ पैरों को हिलाओ कुछ डुलाओ
नहाओ धोओ आदमी की शक्ल में आओ
खुद भी पियो खाओ
कुछ हमें भी खिलाओ पिलाओ
कुंभकर्णी निंद्रा त्यागते हुए
पति ने बड़े ही आध्यात्मिक लहजे में कहा
मानता हूं तुमने इन दिनों
बहुत कष्ट  भोगा, दुख सहा
देवी यह समय क्या लड़ने लड़ाने का है
तुमने सुना ही नहीं ध्यान से
यह साल कमाने का नहीं
जान बचाने का है
   
त्यागी अशोक कृष्णम्
कुरकावली संभल
 9719059703

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम की पहली काव्यकृति "इस कोलाहल में" का लोकार्पण । यह आयोजन हुआ था तेरह वर्ष पूर्व 31 जुलाई 2007 को । चित्र में हैं बाएं से डॉ मीना नकवी, स्मृतिशेष राजेंद्र मोहन शर्मा श्रृंग, स्मृतिशेष रामलाल अनजाना, योगेंद्र वर्मा व्योम और आनन्द कुमार गौरव ।


मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी जाकिर की रचना



🎤✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2,फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail-  atzakir@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की गजल


गुरुवार, 23 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ रामानन्द शर्मा से मनोज त्यागी की बातचीत .... यह साक्षात्कार लगभग चार साल पहले सितंबर 2016 में दैनिक जागरण के नोएडा संस्करण में प्रकाशित हुआ था ।


मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी के 81 वें जन्मदिन 22 जुलाई 2020 बुधवार को ऑनलाइन पावस गोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्यिक संस्थाओं "अक्षरा" और "हस्ताक्षर" के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस गोष्ठी में शामिल 23 साहित्यकारों माहेश्वर तिवारी, शचींद्र भटनागर , डॉ अजय अनुपम, डॉ मीना कौल, विशाखा तिवारी, डॉ मक्खन मुरादाबादी, डॉ प्रेमवती उपाध्याय , योगेंद्र वर्मा व्योम , डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल, सरिता लाल, डॉ रीता सिंह , डॉ मनोज रस्तोगी, जिया जमीर, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ला, मनोज वर्मा मनु, डॉ अर्चना गुप्ता, हेमा तिवारी भट्ट , मोनिका शर्मा मासूम, डॉ ममता सिंह , निवेदिता सक्सेना और राजीव प्रखर की रचनाएं ------


बादल मेरे साथ चले हैं परछांई जैसे
सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे

खुली हथेली पर बूंदें भी सागर लगती हैं
सतहों पर आकर ठहरी हो गहराई जैसे

वैसे पत्ता पत्ता चुप्पी पहने बैठा है
हिलता तो लगता है भीतर पुरवाई जैसे

राजा -रानी कथा कहानी में दुबके बैठे
शब्दों के घर आते भी तो पहुनाई जैसे ।

माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद
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देख रोग के संक्रमण की बढ़ती रफ़्तार
रही न पहले सी सुखद पावस ऋतु इस बार

पौध रोपकर धान की घर आ गया किसान
किंतु न है कल का उसे कोई भी अनुमान

पता न कल हो कौन सा महारोग का रंग
आशंकित मन में न है कोई शेष उमंग

मन में है इतना अधिक संशय, भय अवसाद
मेघ देखकर भी नही मिल पाता आह्लाद

पींगों की प्रतियोगिता से न सजेगी डाल
अमराई में भी नहीं गूंजेंगे सुर-  ताल

किंतु अनिश्चय और भय, आशंका है व्यर्थ
अनुशासन से आदमी बनता बहुत समर्थ

नियमों का जब भी किया है हमने अपमान
किया विधाता ने तभी ऐसा दंड विधान

अनुशासन में सब रहें,  होगा सुखद भविष्य
मौसम के अनुसार ही फिर होंगे परिदृश्य
 
शचीन्द्र भटनागर
मुरादाबाद
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टोकरी में घर उठाये
चली बनजारिन।
दिन अंधेरे , बिजलियों से
रात लगती दिन ।

बारिशों की बात झरनों से नहीं होतीं
सूखती मिट्टी,लता के पात हैं पीले
बाढ़ में आईं लहर की
चिट्ठियों जैसे
खेत,घर , में रुक गये हैं
रेत के टीले
पूछते हैं,किस तरह बीते
पुराने दिन।।१।।

भीग कर बरसात में
सन्ध्या किशोरी भी,लाज से भर,
पांव से सर तक
हुई है लाल
बादलों की छांव यों छत पर टिकी आकर
धूप ने फैला दिये जैसे
सुखाने बाल
कीच में मां रख रही है, पांव को गिन गिन।।२।।

डॉ अजय अनुपम
 मुरादाबाद
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बरखा रुत तन में अंगार भरने लगी...
सावनी दिन जलाने लगे
पुष्प उपवन में खिल खिल के मन में मेरे...
शूल बिरहा के बोने लगे

अंक से फ़ूल के भौरे सिमटे हुये।
फ़ूल डाली की बाँहो से लिपटे हुये।
मद भरी धूप की नर्म बौछार से...
अपना तन मन भिगोने लगे।।
सावनी दिन जलाने लगे।।

अब पिया है ,न कुछ उसका सन्देस है।
और मौसम बदलने लगा भेस है।
जागते जागते , स्वप्न सब प्रेम के....
थक के आँखो में सोने लगे।
सावनी दिन जलाने लगे।।
           
डॉ.मीना नक़वी
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मेघ-पल
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सावनी बौछारों के साथ
जब मैं मिली
पहली बार
भींग गई भीतर तक
लगा
नीम की हरी डाल
फूलों से भर गई है
महसूस की मैंने
संबंधों की अंतरंगता
जैसे
बैसाख-जेठ में
तपी धरती
महसूस करती है
पहली बौछारों के साथ
मेघों से
अपने रिश्तो की
चिरन्तरता
मन में उगा
एक गहरी तृप्ति का बोध
फिर खिले
सौंधी गंधों वाले
हज़ार-हज़ार फूल।

- विशाखा तिवारी
मुरादाबाद
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जल्दी में थे बादल ज्यादा
आए थे, पर चले गए।

विगत साल तो भरे पड़े थे
चारों ओर बड़े पानी।
अब आए थे तो भर जाते
घर , दो - चार घड़े पानी।।
अबकी तो अनजाने में ही
बिना बात के छले गए।

ढोते - ढोते पानी शायद
थक कर चूर हुए काफी।
 बाढ़ पीड़ितों से या वे फिर
गए मांगने हों माफी।।
अनदेखी से इनकी ही तो
सपने जिनके दले गए।

मुई हवा ने था ललचाया
इनको बहला - फुसलाकर।
उसके पीछे भाग लिए ये
मरुथल के घर दहलाकर।।
छोड़ सिसकता,मार मार फिर
सब सूखे में डले गए।

    डॉ.मक्खन मुरादाबादी
    झ - 28 , नवीन नगर
    कांठ रोड , मुरादाबाद
मोबाइल: 9319086769
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मन मोर मचावे शोर,
घिरी है श्याम घटा घनघोर
कि सावन आओ री,
मेरे मन भायो री.... ।

शीतल झोकों भरी फुहारें
 गावें सखियाँ गीत मल्हारें,
हो गई चंदनी भोर,
जिया में उठती एक हिलोर
कि सावन आयो री,
मेरे मन भायो री... ।

लता-विटप हरियावन लागे
तृषित धरा के अधर परागे,
नाचते उपवन मोर विभोर,
पवन भी करता अतिशय शोर,
कि सावन आयो री,
मेरे मन भायो री.....।

घुमड़-घुमड़ बरसत हैं बदरा,
दमके दामिनी लरजत जियरा
बदरवा बरसत है पुरजोर,
मिलें हैं गगन धरा के छोर
कि सावन आयो री
मेघ इठलायो री..मेरे मन भायो री...

डॉ. प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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मेघों को धमका रहा, सूरज तानाशाह ।
काग़ज़ वाली नाव की, किसे कहाँ परवाह ।।

पावस पर हावी हुआ, सूरज का बर्ताव ।
प्यासी धरती ला रही, अविश्वास प्रस्ताव ।।

रोज़ाना ही हर सुबह, तलब उठे सौ बार ।
पढ़ा कई दिन से नहीं, मेघों का अख़बार ।।

कहीं धरा सूखी रहे, कहीं पड़े बौछार ।
राजनीति करने लगा, बूंदों का व्यवहार ।।

पत्तों पर मन से लिखे, बूँदों ने जब गीत ।
दर्ज़ हुई इतिहास में, हरी दूब की जीत ।।

तन-मन दोनों के मिटे, सभी ताप-संताप ।
धरती ने जबसे सुना, बूँदों का आलाप ।।

रिमझिम बूँदों ने सुबह, गाया मेघ-मल्हार ।
पूर्ण हुए ज्यों धान के, स्वप्न सभी साकार ।।

पल भर बारिश से मिली, शहरों को सौगात ।
चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात ।।

भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन ।
अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन ।।

बरसो, पर करना नहीं, लेशमात्र भी क्रोध ।
रात झोंपड़ी ने किया, बादल से अनुरोध ।।

पिछला सब कुछ भूलकर, कष्ट और अवसाद ।
पत्ता-पत्ता कर रहा, बूँदों का अनुवाद ।।

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
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सावन  की मत बात करो, इस कोरोना काल में
सावन भी सूखा जाएगा, इस कोरोना काल में।

सूने हैं  सुख के आँगन ,दुख की चादर है मैली
जीवन ह॔स है तड़प रहा  ,फँसा हुआ है जाल में।1

घेवर फैनी मेंहदी चूड़ी , कैसे झूले गीत मल्हार
देवालय भी हैं बंद पड़े , इस अभागे साल में।2

धरती का आँचल रीता ,अम्बर का दामन खाली
नहीं दिखती वो सौगातें ,जो सज जाएं  थाल में।3

सखी सहेली रिश्ते नाते ,सिमट गए दरवाज़ों तक
आस लगी बस कदमों की ,जाने हैं किस हाल में। 4

गरजते बादल बरसती बूंदे ,सावन का संगीत हैं
मन के मीना गीत हैं बिखरे, न सुर में न ताल में।5

जीवन की उम्मीद है टिकी,जग के पालनहार पे
समेट ले ये उलझन सारी,गति भर दे चाल में।6

डाॅ  मीना कौल
मुरादाबाद
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कभी गरजते कभी बरसते  रँग दिखाते हैं बादल
संग पवन के उड़ जाते हैं खूब छकाते हैं बादल

दूर गगन से करें इशारे, पर्वत पर आराम करें
लुका छिपी का खेल खेलकर सावन को बदनाम करें
विरह डगर में अगन हृदय कि और बढ़ाते हैं बादल

नैनों से जब जब बरसे हैं देख भिगोते यादों को
चमका कर ये चपल दामिनी याद दिलाते वादों को
रिमझिम बूंदों कि सरगम पर गीत सुनाते हैं बादल

कहीं कृषक कि आस बने तो कहीं मिलन विश्वास बने
चातक कि भी प्यास बुझाते कभी सकल आकाश बने
सदियों से इस तृषित धरा का द्वार सजाते हैं बादल

संग पवन के उड़ जाते हैं खूब छकाते हैं बादल
       
 डॉ पूनम बंसल
 मुरादाबाद
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बिन्दिया‌ लगाओ सखि मेंहदी रचाओ
शंकर ने गौरा संग‌ ब्याह‌ रचाया...
पिया की बांसुरिया ने मन भरमाया
पावस ऋतु ने कैसे सबको लुभाया....

क्यों ये पपीहे तूने‌ पिउ पिउ गाया
निंदिया न आयी मुझे रात‌भर जगाया
रिमझिम‌ फुहार पड़ी‌ मन गुदगुदाया
इन्द्रधनुष देख सखि,फुहारों में भीग सखि
पावस ऋतु ने कैसे.....

क्या करूं बहिना‌ मेरी मां ने बुलाया
आओ जीजी संग झूलें भाभी का‌ खत आया
मुझे न बुलाओ मैय्या ,मुझे‌ न बुलाओ भाभी
पिया संग रहने को‌मन अकुलाया
पावस ऋतु ने कैसे सबको‌ लुभाया.....
 शंकर ने गौरा संग ब्याह‌ रचाया

- सरिता लाल
मुरादाबाद
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मतवाले से बादल आये , लेकर शीतल नीर
धरती माँ की प्यास बुझायी , हर ली सारी पीर ।
पाती सर सर गीत सुनाती , बूँदे देतीं ताल
तरुवर झूम - झूम सब नाचें , हुए मस्त हैं हाल ।

नदियाँ कल - कल सुर में बहतीं , सींच रही हैं खेत
सड़कें धुलकर हुईं नवेली , बची न सूखी रेत ।
तपते घर भी सुखी हो गये , आया है अब चैन
गरमी से बड़ी राहत मिली , तपते थे दिन - रैन ।

डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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कंक्रीट के जंगल में
 गुम हो गई हरियाली है
 आसमान में भी अब
 नहीं छाती बदरी काली है
पवन भी नहीं करती शोर
वन में नहीं नाचता है मोर
 नहीं गूंजते हैं घरों में
अब सावन के गीत
खत्म हो गई है अब
 झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत 
     नहीं होता अब हास परिहास
दिखता नहीं कहीं
सावन का उल्लास
सजनी भी भूल गई
करना सोलह श्रृंगार
औपचारिकता बनकर
 रह गए सारे त्यौहार
आइये थोड़ा सोचिए
और थोड़ा विचारिये
हम क्या थे और
अब क्या हो गए हैं
जिंदगी की भाग दौड़ में
इतना व्यस्त हो गए हैं
गीत -मल्हारों के राग भूल
 डीजे के शोर में मस्त हो गए हैं
यह एक कड़वा सच है
 परंपराओं से दूर हम
 होते जा रहे हैं
आधुनिकता की भीड़ में
 बस खोते जा रहे हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822
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भारी   बारिश  बरसाने  का  मन  है
बादल  जैसा  हो  जाने  का  मन  है

सूखी  धरती   राह   तका  करती  है
चटख़  गयी  मायूस   रहा  करती  है
कई दिनों तक इसका आलिंगन कर
इसके  तन  को  सहलाने  का मन है
बादल  जैसा  हो   जाने  का  मन  है

केवल   पगडंडी   जैसी   बहती  हैं
अपना दुख भी ये किससे कहती हैं
इन नदियों से क़र्ज़ लिया था जो भी
इनको  जल्दी   लौटाने  का  मन  है
बादल  जैसा  हो  जाने  का  मन  है

अपने-अपने  घर  इक  दिन जाएंगी
थोड़ा  सुख  थोड़ा  सा दुख  पाएंगी
गीत  सुनाती  लापरवा  सखियों को
दिन  भर झूला  झुलवाने  का मन है
बादल  जैसा  हो  जाने  का  मन  है

आग   लगाती   तन्हाई   जारी    है
ऐसे  में   ख़ुश   रहना  फनकारी  है
यौवन  में  तपते  तन्हा  जिस्मों  को
भिगो भिगो कर तड़पाने का मन है
बादल  जैसा  हो  जाने  का मन  है

ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद
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पुरवाई   के  साथ  में ,  आई   जब  बरसात।
फसलें  मुस्कानें  लगीं , हँसे  पेड़  के  पात।।

मेंढक   टर- टर  बोलते , भरे   तलैया- कूप।
सबके मन को भा रहा,पावस का यह रूप।।

खेतों  में  जल  देखकर , छोटे-बड़े  किसान।
चर्चा  यह  करने  लगे , चलो  लगाएँ  धान।।

फिर इतराएँ क्यों नहीं , पोखर-नदिया-ताल।
जब सावन ने कर दिया,इनको माला माल।।

अच्छे   लगते   हैं  तभी , गीत  और  संगीत।
जब सावन में साथ हों , अपने मन के मीत।।

जब  से  है  आकाश  में,घिरी घटा  घनघोर।
निर्धन  देखे  एकटक , टूटी छत  की  ओर।।

कभी कभी वर्षा धरे , रूप बहुत  विकराल।
कोप दिखाकर बाढ़ का ,जीना करे मुहाल।।

ओंकार सिंह विवेक
  रामपुर
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वर्षा के इंतजार में:

काले काले बदरा कब से, आसमान पर छाते हो।
उमड़ घुमड़ कर आते हो लेकिन केवल तरसाते हो।
उमस भरी गर्मी में तन मन, पस्त हुआ सा जाता है।
एक बार तो खुलकर बरसो, क्यों इतना  तरसाते हो।।

वर्षा होने पर:

रिमझिम लेकर आ गया, पावन सावन मास।
शुष्क दिलों में भी जगा, पुनः नया उल्लास।
जल से सब भरपूर हैं, नदियाँ पोखर ताल।
प्रियतम बिन कैसे बुझे, अंतर्मन की प्यास।

वर्षा के बाद के हालात पर:

घुसा हैं घरों में भी अब तो ये बरसात का पानी।
छतों से टपकता है अपने ही हालात का पानी।
कुँए सबके अलग थे गाँव में दलितों सवर्णों के।
पता कैसे लगाएं अब है ये किस जात का पानी।

श्रीकृष्ण शुक्ल
 मुरादाबाद
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रिमझिम बरखा आई,
झूम  रे  मन  मतवाले ,

काले काले    बदरा
घिर-घिर के आते हैं,
अंजुरी में भर-भर के
बूंद -  बूंद   लाते   है,
            बूंद -बूंद  भर  देती
            खाली मन के प्याले,
            रिमझिम बरखा....

क स्तू री   गंध    बूंद
जिसका मृग मन प्यासा,
एक  बूंद  छूने   को
व्याकुल ये तन प्यासा,
                  बूंद बूंद तृप्ति को
                 प्यासे यह जग वाले
                  रिमझिम बरखा...

तड़की है  मेघ  बीच
एक रेख बिजली की,
अंगड़ाई   लेती  ज्यों
मदमाती  पगली  सी ,
                विह्वल रति मति तेरे
                बस  में  हैं  तड़पाले,,
                रिमझिम बरखा...

धान मान खो देता
पुनः लह लहाने को,
पौध कुल -मुलाती है
धरती पर  छाने  को,
               हरिया हौंसे मन में
               खेत देख हरियाले,,
              रिमझिम बरखा ...

प्यास बुझी धरती की
हरियाला पन  बिखरा,
पत्तों  का...   बूटों का
एक नया रंग  निखरा,
             झम झम इस बारिश ने
             पोखर  सब  भर  डाले,,
             रिम झिम  बरखा आई
             झूम  रे  मन.. मतवाले,,

 मनोज वर्मा मनु
639709 3523
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रहा न वो लाखों का सावन
नहीं सुकोमल पहले सा मन
बदल गईं हैं रीत पुरानी
सूना है बाबुल का आँगन

वो पेड़ों पर झूले पड़ना
कजरी गाना पेंगे भरना
सखियों के सँग हँसी ठिठोली
सब कुछ था कितना  मनभावन
रहा न वो लाखों का सावन

भैया सँग मैके आते थे
बाबुल कितना दुलराते थे
मम्मी के आंचल में छिपकर
जी लेते थे फिर से बचपन
रहा न वो लाखों का सावन

होती थी साजन से दूरी
भाती थी पर वो मजबूरी
आती थी जब उनकी पाती
भीग प्रेम से जाता था मन
रहा न वो लाखों का सावन

आज जमाना बदल गया है
शुरू हुआ अब चलन नया है
हक बहनों ने तो है पाया
मगर खो गया वो अपनापन
रहा न वो लाखों का सावन

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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पावस आया झूमकर,सड़क बनी है ताल।
छटपटाता मीन पथिक,फँसा ताल के जाल।1।

दूर तलक ईँटे दिखीं,ओढ़ सलेटी खाल।
सावन के अंधे हुए,फिर भी कस्बे लाल।2।

"पावस डिश है कौन सी,बतलाओ ना मॉम।"
"या पबजी सा गेम ये,"पूछे शहरी टॉम।3।

आफ़त ये बरखा हुई,जित देखें तित नीर।
झोपड़ियों की आँख से,उस पर बरसी पीर।4।

कहाँ कागजी कश्तियाँ,कहाँ राग मल्हार।
मोबाइल के आसरे,सावन का त्योहार।5।

हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
-----------------------------

जब नाम लिखा तुमने अपना अहसास के सूखे पत्तों पर
सावन ने अमृत बरसाया मधुमास के सूखे पत्तों पर

तेरे आने की आहट से कोमल किसलय जयघोष हुआ
नव आस खिली, टूटे निर्जन विश्वास के सूखे पत्तों पर

तेरी श्वासों से श्वासित हो हर श्वास सुगंधित है ऐसे
मकरंद मिलाया हो जैसे मम प्यास के सूखे पत्तों पर

आलिंगन में पाकर तेरा मन का अंगनारा झूम रहा
यों रास रचाया है तुमने बनवास के सूखे पत्तों पर

अब साथ तेरे इस जीवन का दुख भी उत्सव हो जाता है
"मासूम"सुखद आभास मिले संत्रास के सूखे पत्तों पर

मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद
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मोरे जियरा में आग लगाय गयी रे, सावन की बदरिया।
मोहिं सजना की याद दिलाय गयी रे, सावन की बदरिया।।

जब जब मौसम ले अंगडाई और चले बैरिनि पुरवाई।
मोरी धानी चुनरिया उड़ाय गयी रे सावन की बदरिया।।
मोहिं सजना -------

दादुर मोर पपीहा बोले, पिय की याद जिया में घोलै।
मोरे जियरा में हूक उठाय गयी रे, सावन की बदरिया।।
मोहिं सजना ---------

साज सिंगार मोहिं नहिं भावै, फिरि फिरि कारी घटा डरावै।
मोरी निंदिया पै बिजुरी गिराय गयी रे, सावन की बदरिया।।
मोहिं सजना -------

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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घिरेबादल विवशता के,
 अंधेरों की अधिकता के ,
बरसते मेघ हैं फिर भी
तरसते नैन है फिर भी
न जाने क्यों ये पहले जैसा
 मनभावन नहीं लगता
कहीं कुछ तो है सावन
इस दफा सावन नहीं लगता

ना जत्थे हैं कांवरियों के
 न ही सड़कों पर भंडारे
न घंटो की ध्वनि गूंजे
 न बम भोले के जय कारे
 शिवालय शांत है एकदम
न ही हर हर न ही बम बम
हे कैलाशी हे सर्वेश्वर
 तेरे  पावस के उत्सव में
 भला क्रंदन नहीं लगता
कहीं कुछ तो है सावन
इस दफा सावन नहीं लगता ।।

नहीं है संग सखियों का
नहीं डालो पे हैं झूले
उमंगे  अनमनी बैठी
 चढ़ा कर पींग  नभ छूले
 है धीमी कुहूंक कोयल की
 कहानी चुप है हलचल की
 सभी इच्छाओं के द्वारे
 पडी  हैं  बंद  सांकल  सी
 घरों में कैद इस  जीवन में
अब जीवन नहीं लगता
कहीं कुछ तो है सावन
इस दफा सावन नहीं लगता

जिया में एक उलझन सी
 पिया की याद बचपन सी
न  पावों  की  कोई आहट
तलब आंखों को साजन की
चले आओ  सुकुं  मन के
  मेरी आंखों के उजियारे
मेरे  श्रृंगार की पुलकन
 मेरे जीवन के ध्रुव तारे
तुम्हारे बिन कहीं दुनिया में
अपनापन नहीं लगता
कहीं  जीवन नहीं लगता
कहीं भी मन नहीं लगता।
   कहीं कुछ तो है सावन
 इस दफा सावन नहीं लगता

निवेदिता सक्सेना
मुरादाबाद
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रूठ न जाना जान कर, ओ मेरे मनमीत।
आज गगन पर भी लिखा, मैंने अपना गीत।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

झूले पर अठखेलियाँ, होठों पर मृदु गान।
इन दोनों के मेल से, है सावन में जान।।

दुबका बैठा इन दिनों, दहशत से उल्लास।
कैसे झूला डाल दूँ, अबके सावन मास।।

प्यासी धरती रह गयी, लेकर अपनी पीर।
मेघा करके चल दिए, फिर झूठी तक़रीर।।

प्यारी कजरी-भोजली, मधुरस गीत-बहार।
करना कभी न भूलना, सावन का श्रृंगार।।

राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघु कथा--------घाटे का सौदा


रामप्रकाश जी ने किसी को,तीन साल पहले अस्सी हज़ार रुपए,व्यापार के सिलसिले में दिए थे।किसी कारण वो डील कैंसिल हो गई लेकिन अब वो व्यक्ति उनके रुपए नहीं लौटा रहा था । रामप्रकाश जी अपनी ओर से हर संभव प्रयास करके थक चुके
थे।एक दिन अचानक उनको याद आया । उनके साथ हाईस्कूल में दिनेश सिंह नामका लड़का पदा करता था।आजकल वो सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक है।उन्होंने जानकारी प्राप्त कर फोन पर उससे बात की,और अपनी समस्या के बारे में उसे बताया।वो रामप्रकाश जी को एकदम पहचान गया और उसने आश्वस्त किया कि कल तक आपके रुपए आपको मिल जाएंगे।
    अगले ही दिन किसी ने उनका दरवाज़ा
खटखटाया।कोई नौजवान खड़ा था।बोला । 'मुझे विधायक जी ने भेजा है।आपके रुपए
मिल गए है।' रामप्रकाश जी को इतनी जल्दी कार्यवाही की उम्मीद नहीं थी।वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।इसी बीच उस नौजवान ने अपनी जेब से एक कागज निकाल कर रामप्रकाशजी की ओर बढ़ाया "आजकल पार्टी के लिए फंड इकट्ठा हो रहा है,विधायक जी ने आपकी एक लाख रुपए की रसीद कटवा दी है। अस्सी हज़ार आपके आ चुके है
अब केवल बीस हज़ार आपको देने हैं " रामप्रकाश जी अवाक से खड़े थे।मानो सोच रहे हो, मै किस घाटे के सौदे में फंस गया।

डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

बुधवार, 22 जुलाई 2020

यादगार आयोजन :मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में शनिवार 22 जुलाई 2017 को नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में ‘सम्मान समारोह एवं पावस-राग’ का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में शनिवार 22 जुलाई 2017 को नवीन नगर स्थित ‘हरसिंगार’ भवन में नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में ‘सम्मान समारोह एवं पावस-राग’ के रूप में मनाया गया जिसमें देहरादून से पधारे सुविख्यात साहित्यकार एवं चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘कविकुम्भ’ के यशस्वी संपादक श्री जयप्रकाश त्रिपाठी एवं कवयित्री श्रीमति रंजीता सिंह के मुख्य आतिथ्य में लखनऊ से पधारे वरिष्ठ नवगीतकार मधुकर अष्ठाना को प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, अंगवस्त्र, सम्मान राशि व श्रीफल नारियल भेंटकर ‘‘माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन-सम्मान’’ से सम्मानित किया गया।

     कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी द्वारा लिखित एवं संगीतवद्ध सरस्वती वंदना- ‘शारदे माँ शारदे माँ, ज्ञान का वरदान दे माँ/ज्योति की सरिता बहा दे, नवसृजन का दान दे माँ’ की सुमधुर संगीतमय प्रस्तुति से हुआ। तत्पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित स्थानीय एवं अतिथि साहित्यकारों ने माहेश्वर तिवारी के रचनाकर्म की 6 दशक लम्बी स्वर्णिम यात्रा पूर्ण होने पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से चर्चा करते हुए बधाई दी। साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के संयोजक  योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने कार्यक्रम के संदर्भ में अपने वक्तव्य में कहा कि-‘मुरादाबाद के साहित्यिक पर्याय श्रद्धेय दादा तिवारी जी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होना एक बड़ी उपलब्धि है, इसी परिप्रेक्ष्य में गतवर्ष भी वरिष्ठ रचनाकार डॉ0 राजेन्द्र गौतम(नई दिल्ली), श्री यश मालवीय (इलाहाबाद), जयकृष्ण राय तुषार(इलाहाबाद), हरिपाल त्यागी(नई दिल्ली) एवं  ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’(मुरादाबाद) को सम्मानित किया गया था। इस वर्ष लखनऊ निवासी नवगीत के बड़े हस्ताक्षर मधुकर अष्ठाना को उनके दीर्घ एवं उल्लेखनीय सृजन के लिए सम्मानित किया जा रहा है।’

इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि साहित्यकारों एवं स्थानीय साहित्यकारों द्वारा चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘कविकुंभ’ के जुलाई, 2017 अंक का भव्य लोकार्पण किया गया। पत्रिका की संपादक रंजीता सिंह ने इस अवसर पर पत्रिका के संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि ‘कविकुंभ पत्रिका अपनी तरह की अलग साहित्यिक पत्रिका है जिसमें समसामयिक साहित्यिक संदर्भों पर प्रतिष्ठित साहित्यकारों से गंभीर विमर्श भी है और स्थापित व नवोदित रचनाकारों की महत्वपूर्ण कविताएं भी हैं। कविकुंभ पत्रिका आज के समय में एक आवश्यक साहित्यिक पत्रिका है।’

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र-‘पावस-राग’ में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी द्वारा अपनी संगीत की छात्राओं-  संस्कृति, कशिश, साक्षी, उर्वशी, प्रीति, राशि, यश, लकी एवं तबला वादक श्री राधेश्याम की संगत में कीर्तिशेष शास्त्रीय गायिका किशोरी अमोनकर के वर्षागीत ‘ओ ! बदरा’ की प्रभावशाली प्रस्तुति के साथ-साथ माहेश्वर तिवारी जी के नवगीतों को भी संगीतवद्ध कर प्रस्तुत किया गया-

‘डबडबाई है नदी की आँख

बादल आ गए

मन हुआ जाता अँधेरा पाँख

बादल आ गए’

..........

‘बादल मेरे साथ चले हैं

परछाई जैसे

सारा का सारा जग लगता

अँगनाई जैसे’

इसके पश्चात कार्यक्रम के तृतीय सत्र में वर्षा ऋतु पर केन्द्रित काव्य-पाठ का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित कवियों ने समसामयिक संदर्भों के साथ-साथ वर्षा ऋतु के विभिन्न पहलुओं के चित्र भी अपनी-अपनी कविताओं में उकेरे। इस अवसर पर काव्य-पाठ करते हुए अतिथि रचनाकार लखनऊ से पधारे नवगीतकार श्री मधुकर अष्ठाना ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

‘जल रहे हम यहाँ वर्तिका की तरह

चाहतें हो गईं द्वारिका की तरह

धार में आँसुओं की बही बाँसुरी

हम तड़पते रहे राधिका की तरह’

देहरादून (उत्तराखण्ड) से पधारे  जयप्रकाश त्रिपाठी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘आज सारे लोग जाने क्यों पराए लग रहे हैं

एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए लग रहे हैं

बेबसी में क्या किसी से रोशनी की भीख माँगें

सब यहाँ बदनाम रात के साए लग रहे हैं’

देहरादून (उत्तराखण्ड) से ही पधारीं कवयित्री रंजीता सिंह ने अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की-

‘ज़िन्दगानी की कड़ी धूप में चलकर देखो

हाँ, ग़ज़ल और निखर जाएगी जलकर देखो

सख़्त हालात में तप जाओगे कुंदन की तरह

वक़्त की आँच पे कुछ और पिघलकर देखो’

काशीपुर (उत्तराखंड) से पधारी कवयित्री डॉ. ऋचा पाठक ने काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए कहा-

‘ईश्वर मुझसे हार गया

मैंने अपनी ज़िम्मेदारी

इतनी उम्र निभायी सारी

अब जब उसकी बारी आई

फौरन पलटी मार गया’

सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने नवगीत प्रस्तुत किया-

‘खिड़की, शायद तुमने

रात खुली रहने दी

चुपके से सिरहाने तक

बादल आ गए’

सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘सूरज पहले खुद तपता है

फिर धरती खूब तपाता है

तब जाकर के कोई बादल

ठंडक-सी लेकर आता है’

वरिष्ठ शायर डॉ. कृष्ण कुमार ‘नाज़’ ने ग़ज़ल पेश करते हुए कहा-

‘न मैं तुमको समझ पाया, न तुम मुझको समझ पाए

अधूरे ख़्वाब लेकर हम बहुत आगे निकल आए

जिसे सीने पे रखकर लोग सबकुछ भूल जाते हैं

वो पत्थर कौन-सा है, कोई हमको भी ये बतलाए

वरिष्ठ कवयित्री विशाखा तिवारी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘मेघ पल

सावनी बौछारों के साथ

जब मैं मिली पहली बार

भींग गई भीतर तक’

वरिष्ठ साहित्यकार राजीव सक्सेना ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘टूटी हैं पतवारें

दूर हैं किनारे’

अब किस पर भरोसा करें

नदी पर या नाव पर

ज़िन्दगी है दाँव पर’

नवगीतकार  योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने गीत प्रस्तुत किया-

‘बारिश के परदे पर पल-पल

दृश्य बदलते हैं

कभी फिसलना, कभी संभलना

और कभी गिरना

पर कुछ को अच्छा लगता है

बन जाना हिरना

बूँदें छूने को बच्चे भी

खूब मचलते हैं’

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय ‘अनुपम’ ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

‘जो सुखद है वह सदा सुखकर नहीं होता

कर्म हरपल भाग्य का सहचर नहीं होता

प्रश्न सबका है, नहीं उत्तर किसी पर भी

चाहते हैं जो वही अक्सर नहीं होता’

वरिष्ठ शायर डॉ. स्वदेश भटनागर ने ग़ज़ल पेश की-

‘ख़ुद से ख़ुद पूछ तू पता अपना,

दूर तक ख़ुद में लापता हो जा

हो गया जिस्म तर्जुमा गुल का,

ख़ुशबुओं का तू तर्जुमा हो जा’

कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘न जिसमें प्यार हो माँ का उसे आँचल नहीं कहते

नहीं जो याद में बहता उसे काजल नहीं कहते

गरजते हैं बिना बरसे मगर जो लौट जाते हैं

जिया की प्यास भड़काए उसे बादल नहीं कहते’

वरिष्ठ साहित्यकार  वीरेन्द्र सिंह ‘ब्रजवासी’ ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘गैया को मैया कहने से

कुछ सम्मान नहीं होगा

जब तक उसके खान-पान पर

सबका ध्यान नहीं होगा’

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

भारतवासी की अपनी इक पहचान है

अपनी सेना पर हमें अभिमान है

मत छेड़ो उड़ जाओगे

हर धड़कन तूफान है’

साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘फिर कहीं गोली चली, फिर कहीं लगी आग

सैकड़ों घरों के आज बुझने लगे चिराग

शासन से जवाब माँगती पीड़ित जनता

खोलो अपनी बंद आँखें, मत गाओ राग’

वरिष्ठ गीतकार आनंद कुमार ‘गौरव ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘काश ऐसी कोई पहल कर दे

गीत कर दे मुझे ग़ज़ल कर दे

ज़िन्दगी से लगाव कुछ तो बने

नफ़रतें प्यार में बदल कर दे’

इसके साथ ही सर्वश्री धीरेन्द्र प्रताप सिंह, समीर तिवारी, डॉ. मीना कौल, माधुरी सिंह आदि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय ‘अनुपम’ ने की तथा संचालन संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने किया। आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।



यादगार आयोजन : मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा की ओर से साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी के जन्मदिवस 22 जुलाई 2016 को सम्मान समारोह और काव्य गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा की ओर से साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी के जन्मदिवस को विशेष आयोजन के रूप में शुक्रवार 22 जुलाई 2016 को उनके निवास पर मनाया गया।  रचनाकारों की षष्ठिपूर्ति को उत्सव के रूप में मनाए जाने की परंपरा तो रही है लेकिन रचनाकर्म की षष्ठिपूर्ति को उत्सव के रूप में मनाए जाने का संभवतः यह प्रथम प्रयास था। इस अवसर पर दिल्ली से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र गौतम व हरिपाल त्यागी, इलाहाबाद से पधारे  यश मालवीय व  जयकृष्ण राय तुषार तथा मुरादाबाद से वरिष्ठ गीतकार ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' को "माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान" से सम्मानित किया जाना अभूतपूर्व रहा। इस अवसर पर युवा शायर भाई ज़िया ज़मीर ने विशेष रूप से दादा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित एक नज़्म पेश की तथा दादा को प्रेम कराकर भेंट की। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा  बालसुंदरी तिवारी द्वारा दादा के चार गीत संगीतवद्ध कर प्रस्तुत किये गए। सम्मान व वक्तव्य सत्र, संगीत सत्र, पावस राग काव्य गोष्ठी सत्र के रूप में तीन सत्रों में लगभग चार घंटे तक चले आयोजन की अध्यक्षता श्री डी.पी.सिंह ने की तथा संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' व डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' ने किया।

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -----मृगतृष्णा


​वो कभी खिलखिलाना तो छोड़िये , कभी मंद-मंद मुस्कराया भी तो नहीं . जब छोटा था तब बड़ा आदमी बनाने के लिए दिन रात पढ़ाई में जुटा रहता था। उसने अपने पिताजी को परिवार चलाने के लिए हाड तोड़ ममेहनत करते हुए जो देखा था लेकिन उस सकूं को कभी वह समझ ही नहीं पाया और न ही महसूस। उसके माता पिता थोड़े में गुजारा अवश्य करते थे मगर जिंदगी को कभी छोटी छोटी खुशियों से और सुखद क्षणों का आनंद लेने से कभी खुद को दूर नहीं किया .
​    उसके कमरे में किताबों का ढेर और उन पर स्याही से लिखे अक्षर जिनमें दुनियां भर की जानकारी थी सिवाय प्रेम और सकूं के ,उनके साथ रहने का आदी हो गया था वह. हंसना और खिलखिलाना तो वह जैसे भूल ही गया .सबसे दूरी और धीरे धीरे खुद से भी दूर हो गया . खुद को भूलकर ही मुकाम हासिल किया जाता है ,उसने ऐसा सुना था और इसके लिए उसने कभी आत्मसाक्षात्कार  ही नहीं किया . उसने कभी फूलों से बात नहीं की और न ही आकाश में मस्त परिंदों की परवाज को निहारा . न कभी लहरों की अठखेलियों पर नजर दौड़ाई और न ही कभी रात में शीतलता लुटाते चाँद की चाँदनी को देखा . वह किताबों के ढेर में खुद एक मशीन का ढ़ेरनुमा बन गया .
​उसको तरक्की मिली, दौलत शोहरत सब कुछ मिली जिसकी उसको तमन्ना थी .पहले किताबों के पेज पलटता रहता और अब नोटों को गिनने में मशगूल हो गया .धीरे धीरे अपने परिवार की मात्र जरूरत बनकर रह गया ।
​आज बहुत दिनों बाद यानी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर उसके मन को कुछ अजीब सी सूझी ,बैठ गया बीते कल का हिसाब किताब करने . नोटों और खुद के सिवाय कुछ भी नहीं था जी जन्दगी का वास्तविक पलड़ा नितांत अकेला और सूखा सा था पेड़ से टूटी शाख की तरह .

​राशि सिंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश



मुरादाबाद मंडल के धामपुर जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल की लघुकथा-----मास्क



"मां मैं तुम्हारे लिए मास्क ले आया। लगा रखो मुंह पर, देखो टीवी में बताया था न।" बेटे ने मां को मास्क देते हुए कहा ।
" ठीक किया बेटा। सुरक्षा व बचाव जरूरी है। कोरोना से बचने के लिए।" मां ने खुशी जाहिर करते हुए कहा।
" वाह जी, आपने तो कमाल कर दिया। मुंह पर मास्क होगा तो, मां जी ज्यादा टोका टाकी नहीं करेगी।" बहू भी प्रसन्न नजर आई।
 लॉकडाउन के दौरान बेटे ने घर में रहते हुए मां और बहू के बीच हुई टोका टाकी को कई बार सुनकर भी अनसुना कर दिया था।
                       
  डॉ अनिल शर्मा अनिल
धामपुर-246761,
जिला -बिजनौर, उत्तर प्रदेश
संपर्क-9719064630

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---- भूत


   .... चलते चलते पांव तक गये थे परंतु जंगल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था उबड़ खाबड़ जिम कॉर्बेट पार्क का पहाड़ी रास्ता हमारे दोनों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे ....रात के 11:00 बज चुके थे दूर-दूर तक फैले जंगल में हम टॉर्च की रोशनी में तीन लोग चलते चले जा रहे थे ...प्यास से गला सूख रहा था... पानी का नामोनिशान नहीं... दूर-दूर तक ऊंचे ऊंचे साल के वृक्ष ...कुछ दूर चलने पर पेड़ों के नीचे पड़े पत्तों में आग लगी हुई नजर आई ....हे  भगवान ! अब क्या होगा !!  कहां जाएं !!! 
       जैसे-तैसे  रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े रात का स्याह अंधेरा और भी गहरा हो गया था दिलीप ,जगदीश और मैं..
       हम पांडेगांव से सीताबनी के लिए सुबह 10:00 बजे निकले थे ....सीताबनी !! वही स्थान जहां सीता जी धरती में समा गई थीं ...परंतु लगातार चलने के बाद भी दूर-दूर तक सीताबनी का कहीं पता नहीं था जबकि हमें बताया गया था कि हम शाम 5:00 बजे तक सीताबनी पहुंच जाएंगे.. हम रास्ता भटक गए थे .!!...साथ में खाने पीने का सामान  था।  टॉर्च   !! और चाय व खिचड़ी बनाने का सामान..... लगातार जलाने से टॉर्च भी धीमी पड़ने लगी थी ....हर प्रकार की आशा निराशा में बदलने लगी थी ...धीरे-धीरे जानवरों की आवाजें आने लगी और घने जंगल में पेड़ भी ऐसे नहीं थे जिन पर चढ़ा जा सके सीधे खड़े रहने वाले साल के वृक्ष .... कुछ आगे बढ़े तो पत्थर आने लगे तभी अचानक जगदीश की चीख निकल गई ...ओ..!!!!!!...ओह...!!....  जगदीश आगे चल रहा था हमें लगा शायद सांप ने डस लिया !!
 मैंने पूछा क्या हुआ??... जगदीश ने चीखते हुए कहा... पानी.. !पानी..!!
    ... हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था मानो.. कोलंबस को धरती मिल गई हो !!
               आगे और भी बड़े-बड़े पत्थर आ गए जिनके  बीच से स्वच्छ मीठे जल की नदी बह रही थी.. हम लोग थक तो चुके ही थे और प्यासे भी थे... जी भर के हम तीनों ने पानी पिया और निश्चय किया कि आज रात यहीं रुकेंगे सुबह होने पर रास्ते की खोज करेंगे ।
      विशाल पत्थरों पर हमने अपने अपने बैग अलग-अलग रखें मानो यही हमारी सैया हों .. लकड़ियां बीन कर आग जलाई..
चाय बनाई और चुस्कियां लेने लगे.. पानी बहुत ठंडा था... पैर पानी में रखे तो ।।थकान मिट गई ...इकट्ठा की गई लकड़ियां खत्म हो गई तो और लकड़ी इकट्ठे करने चले पर !! ये क्या जगह-जगह वहां मानव खोपड़ियां .. कंकाल हड्डियां बिखरी पड़ीं थीं .... डर भी लग रहा था... तभी एक लालटेन इसीओर आती दिखाई पड़ी .. परंतु ये क्या ? जैसे ही हमने कहां सुनो भाई ! लालटेन वाला व्यक्ति बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ पहाड़ी पर भागता हुआ चला गया ....
    लगातार आग जलाते हुए और जागते हुए हमने वह रात गुज़ारी तरह-तरह के जानवरों की आवाजें आ रही थीं कई जानवर हिरनों के झुंड और हाथी ! पानी पीने आते और पानी पीकर लौट जाते रात्रि के अंतिम पहर में पंछियों की आवाजें भी आने लगीं ! सब कुछ बड़ा विचित्र था अद्भुत!!!
  .........जंगल बहुत रहस्यमय दिखाई पड़ रहा था
      सुबह होते ही एक व्यक्ति नदी में पानी भरने आया परंतु जैसे ही हमने कहा "सुनो भाई !"वह घड़ा फेंक कर भागने को हुआ ... दिलीप ने कड़क आवाज में कहा" खबरदार! भागना मत! "वह  बोला "कौन हो आप लोग "? यहां क्या कर रहे हो"?
      हमने कहा "हमें सीताबनी का रास्ता पूछना है"! तब उस व्यक्ति ने बताया "सीताबनी यहां से 10 किलोमीटर दूर है" हम सन्न रह गए!!!
        अब हमने मेन सड़क पर आकर बस पकड़ी और सीताबनी देवी के दर्शन कर घर वापस लौट गए बस में लोग ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहे थे "रात पाठ कोट के गधेरे पर
श्मशान में तीन-तीन भूत थे" मंगल ने स्वयं अपनी आंखों से देखा !"
             वास्तव में वह जगह जहां हमने रात गुजारी शमशान घाट था... पाठ कोट के गधेरे का शमशान !!
      लोगों की बात सुनकर हम तीनों ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे... लोग हमें मूर्ख बता रहे थे !!..."इन लोगों को सच्ची घटना पर भी विश्वास नहीं!!! मूर्ख हैं जिस दिन भूतों से पाला पड़ेगा तब जानेंगे ! ".....
   ‌                 
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की कहानी ----- पानी बचाओ


    गर्मी का मौसम चल रहा है । मैं सुबह पांच बजे उठा और ताजी हवा लेने के लिए टहलने निकल पड़ा । थोड़ी दूर ही चला था । मैं देखता हूं कि एक महिला अपने घर में लगे नल से पानी निकाल कर पूरे आंँगन को धोती हुई दरवाजे तक आ पहुंँची है ।
      जब और थोड़ा आगे पहुंँचा तो देखा कि एक महिला के घर के पास सड़क पर लगी सरकारी पानी की टंकी से पानी बाल्टी में लेकर अपने घर के दरवाजे के सामने सड़क पर खूब धुलाई कर रही है । पानी मुफ्त का है न ।
      आगे और सड़क पर मैं पहुंँचा ही था, मैं देखता हूंँ कि एक दुकानदार; जिसने दुकान अपने घर में खोल रखी है; वह नाली की सफाई पानी बहा-बहा कर कर रहा है ।
          मैं सोच रहा था कि आज मुझे सब पानी बहाने वाले ही क्यों नज़र आ रहे हैं ! सरकार समाचार -पत्रों और पोस्टरों  के माध्यम से जनता को कितना जागरूक कर रही है कि "जल है तो कल है" और "पानी की एक-एक बूंँद कीमती है, इसे व्यर्थ न बहाओ।" टी० वी० और रेडियो के माध्यम से भी समझाया जा रहा है कि विश्व में पीने के पानी की बहुत कमी हो रही है।
     मगर लोग हैं कि सोचते हैं कि मेरे अकेले के करने से क्या पानी की बचत हो जायेगी!
       मैं अपने मन-मस्तिष्क में यह सब उधेड़बुन करता हुआ आगे पहुंँचा तो देखता हूंँ कि एक युवक अपनी बाइक को पानी का पाइप लगाकर मसल-मसल कर नहला रहा है।
       मैं सोच रहा था कि क्या यह सब जीवन में जरूरी नहीं है ? हां, जरूरी तो है फिर पानी की बचत कैसै हो? यह सब प्रतिदिन न करके सप्ताह में एक बार करने पर दोनों काम बन सकते हैं । सफाई भी हो जायेगी और रोज़-रोज़ पानी भी खर्च नहीं होगा ।
     यह सब देखता-सोचता मैं चौराहे पर पहुंँच गया । जहांँ पर नगरपालिका का लगा हुआ बहुत सुंदर फब्बार सुबह को बंद मिला । मगर शाम को तो यह भी चलकर रंग-बिरंगी रोशनी में नहाता हुआ सड़क पर लोगों को आकर्षित करता है। भले ही इस सड़क पर नगरपालिका ने पीने के पानी की कोई व्यवस्था न की है ।
     मैं जब टहलने जाता हूं तो दूध लाने के लिए छोटी बाल्टी साथ ले जाता हूं । दूध की डेयरी का दूध शुद्ध लगता है क्योंकि वह हमारे सामने दूहा हुआ होता है । और उतना ही शुद्ध होता है जिसे हम हज़म कर पायें ‌। विशुद्ध चीजों को हज़म करने की आदत तो पेट को भी नहीं रही ।
     हां, घर पर देने आने वाले दूधिये से तो अच्छा ही है । उसका तो यह भी पता नहीं रहता कि दूध मिलावटी पानी वाला है या कृत्रिम दूध है?
       हां तो मैं जब डेयरी पर दूध लेने पहुंँचा तो देखा कि मालिक अभी भैंस को पानी का पाइप लगाकर स्नान करा रहे हैं । भैंसें बांँधने की जगह तो बिल्कुल चकाचक पानी से धुली हुई लग रही है ।
       मेरे दिमाग में एकदम कौंधा कि अब पोखड़-तालाब तो हैं नहीं कहीं जो गाय-भैंस जाकर वहांं नहा-धो लें । इनकी भी मजबूरी है । अगर रोजाना साफ-सफाई नहीं रखेंगे तो पशु बीमार हो सकते हैं।
      मैंने दूध लिया और घर को लौट पड़ा । मैं सोच रहा था कि पानी जीवन में कितना जरूरी है । कहांँ बचायें ?
      पिछले दिनों की बात याद आयी । अखबार में पढ़ा था कि कहीं की सड़क बिल्कुल उधड़ गयी थी । जिस पर परिवहन चलने के कारण इतनी धूल उड़ती थी कि आसपास की फसलें धूल से अट गयीं और पास के गांँव के लोगों का जीना दूभर हो गया । तब वहां पर सरकार ने रोजाना पानी के टैंकरों से छिड़काव करवा कर धूल को न उड़ने का इंतजाम तब तक किया जब तक वह सड़क नहीं बन गयी । बैठे-बिठाए पानी का अनावश्यक खर्च बढ़ा ।पानी की बचत होने से रही ।
    अब कोरोना ने पानी का खर्च और बढ़ा दिया है । पानी से हाथ धोते रहो । बाहर जाओ तो आकर नहाओ । चलो कोई बात नहीं मौसम गर्मी का है । पर घरवाली कपड़े बदलवाती है । यह अब धुलेंगे । पानी का खर्च तो बढ़ा ही साथ में बाशिंग पाउडर का खर्च भी बढ़ गया और धोने का परिश्रम अलग । अरे! साहब वाशिंग मशीन को चलाने में भी तो बिजली का खर्च बढ़ा या नहीं बढ़ा ?
   यह सब सोचते हुए मेरे पैर स्वत: अपने दरवाजे तक पहुंच गये । मेरा आज का टहलना तो जैसे पानी की भेंट चढ़ गया ।
        _
राम किशोर वर्मा
रामपुर



           

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविन्द कुमार शर्मा आनन्द की लघुकथा- साहित्य के चौर्य


आज सुबह जब आँख खुली, तो मौसम का मिज़ाज़ देख कर दिल खुश हो गया। बड़ा सुहाना मौसम था, साथ में ताज़गी से सराबोर कर देने वाली ठंडी हवा।
एक अनदेखी सी खुशी महसूस हो रही थी। अब एक शायर होते हुए ऐसे खुशनुमा मौसम की खूबसूरती को पन्नों पर न लिखूँ, ऐसा हो ही नही सकता।
मैंने कुछ लिखने को जैसे ही कलम हाथ में ली तो ख्याल आया कि पहले क्यों न अखबार के मेरे पसन्दीदा पृष्ठ 'साहित्यिक समाचार' को चाय की चुस्कियाँ लेते हुए पढ़ लिया जाये। उसके बाद ही कुछ लिखता हूँ।
जैसे ही उस पृष्ठ पर मेरी नज़र पड़ी तो!
"अरे यह क्या?" मैं उस ग़ज़ल को देखकर अवाक रह गया।
इतनी मशहूर ग़ज़ल के लेखक का नाम!!!???
"आखिर यह कैसे?" मेरे अंदर सवालों का एक समुद्र हिलोरें मारने लगा था,  "क्या आज तक मैंने जो ज्ञान प्राप्त किया था, या मुझे जो जानकारी थी, वह गलत थी? या जो मैं देख रहा हूँ वो गलत है?", मैंने खोजबीन शुरू की तो जिस नतीजे पर पहुँचा वह चौंकाने वाला था, "आखिर कोई व्यक्ति, जो कि अपने आपको साहित्य की महान पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ कहता है। वह इतनी नीच हरकत कैसे कर सकता है? आखिर इतनी ओछी मानसिकता कैसे रख सकता है?  जिनके दम से साहित्य जगत को एक नयी बुलंदी और पहचान मिली हो वह उन जैसी महान हस्ती का अपमान करने की कैसे सोच सकता है?"
मुझे यह सब देखकर बड़ा दुख हुआ। मैंने उस अखबार और उसमें छपी ग़ज़ल के बनावटी शायर की निंदा की।
मुझे अंदर से एक बात की संतुष्टि थी कि "मैं अपनी शायरी के हर शब्द को स्वयं लिखता हूँ। कुछ लोगों की तरह चोरी-डकैती या दूसरे शायरों की ग़ज़ल अपने नाम से पेश नही करता। आज एक नई सीख मिली थी कि मुझे अपनी ग़ज़लों को बचा कर रखना होगा। अन्यथा यहाँ चोरों की कमी नही है।"

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
8979216691

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----जय माँ गंगे

    
  ‘’माँ देखो न आज गंगा कितनी स्वच्छ और निर्मल है। लॉकडाउन से पहले गंगा में कितनी गन्दगी दिखाई देती थी, पर आज गंगा को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है काश हर समय गंगा इतनी ही साफ और स्वच्छ रहे। माँ, गंगा को भी हम माँ समझते हैं न। इन दिनों गंगा माँ अपने को इतनी साफ सुथरी देख कर बहुत खुश होगी। ’’चुनमुन ने चहकते हुए अपनी माँ दीपा से कहा।" चुनमुन आज लोकडाउन खुलने के बाद अपनी नानी से मिलने मेरठ जा रही थी। अक्सर वह इस रास्ते से गुज़रते थे। बरेली से मेरठ आते जाते ब्रजघाट आते ही गंगा के दर्शन हो जाते थे। गंगा को इतना साफ़ चुनमुन ने कभी नही देखा था, इसलिए वह बहुत खुश थी।’ माँ क्यों करते है लोग अपनी माँ समान गंगा को गंदा। चुनमुन ने अपनी माँ दीपा से पूछा।’’ अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण बेटा। वैसे और भी बहुत से कारण है जैसे नगरों और फैक्ट्रियों के गंदे पानी को नालों द्वारा गंगा में बहा दिया जाता है।पता नही कैसे लोग है बेटे, जो अपनी माँ समान गंगा को गंदा करते है। इसे दूषित करते रहते है ।’’दीपा ने गहरी साँस लेते हुए कहा। जैसे ही गंगा के बिलकुल पास से गाड़ी गुज़री दीपा ने एक दम एक रुपए का सिक्का पर्स से गंगा में डालने के लिए निकाला ।चुनमुन हर बार अपनी माँ को यह करते देखती थी और ख़ुद ही सिक्का डालने की जिद्द करती थी परंतु आज उसने हाथ जोड़कर कहा कि- माफ़ कर दो माँ गंगे,माफ़ कर दो।दीपा सकपका गयी वह अपनी ग़लती समझ गयी थी  ।उसने सिक्का पर्स में रख लिया और हाथ जोड़कर कहा -जय माँ गंगे ,जय माँ गंगे।
         
  प्रीति चौधरी(शिक्षिका)
  राजकीय बालिका इण्टर कालेज हसनपुर
  ज़िला अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा ----- रिश्ता


"विवाह की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी हैं, बस कुछ गहने और कपड़े 'रुचि' के लिए लेने बाकी हैं", शम्भू नाथ जी मुस्कुरा कर अपनी पत्नी से बोले।
"बहुत अच्छा 'रिश्ता' मिला है हमारी रुचि के लिए, बहुत ही भले लोग हैं। इतने उच्च विचार और अच्छे संस्कारों वाले परिवार में हमारी रुचि बहुत खुश रहेगी", उनकी पत्नी दुर्गा देवी ने खुश होकर कहा।
अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे तभी रुचि के होने वाले ससुराल से फ़ोन आया।
"नमस्कार भाई साहब, कैसे हैं आप और आपके परिवार में सब?" शम्भू जी ने फ़ोन उठाकर स्पीकर पर डालते हुए औपचारिता निभाई।
"अजी हमारे हाल छोड़िये औऱ ये बताइये कि क्या आपकी बड़ी बेटी ने प्रेम विवाह किया है? और वह भी अंतरजातीय? माफ करिए शम्भू नाथ जी हमारे यहाँ आपका 'रिश्ता' नहीं जुड़ सकता", उधर से तीखी आवाज आई और इससे पहले कि ये कुछ बोलते फ़ोन कट गया।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------ लाभ


      रात की तेज बारिश और तूफान के बाद अधिकतर  किसान डूबी फसलो को देखकर मातम मना रहे थे।दूसरी ओर किसना निर्विकार भाव से बैठा बीडी फूंक रहा था।सरकारी आदेश से जब जमीन मिली तो सब बहुत खुश थे।पट्टे के कागज जब बी डी ओ ने उनको दिये तो उनके पाँव जमीन पर न पडते थे।।जब लेखपाल ने आकर चक नपवाकर उसकी जमीन बतायी तो किसना के पैरो के नीचे से जमीन निकल गयी क्योकि उसके हिस्से मे बंजर पत्थर भरा टुकडा आया था।वह भारी मन से घर आया।कुछ दिन बाद बीडीओ साब ने आकर बताया कि जिन को जमीन मिली है उनको सरकार फ्री मे खाद बीज देगी ।पट्टे के कागज दिखाकर रजिस्टर मे नाम लिखवा कर ले जाना।किसना हर साल खाद  बीज लाता।बाजार मे बेचकर अपना जुगाड़ करता था।अपनी फसल की लाभहानि चर्चा करते समय वे उसका उपहास उडाते।वह केवल अपने लाभ को देखता क्योंकि न उसे खेत मे मेहनत करनी पडती न नुकसान की चिंता।वह बंजर जमीन उसके लिए केवल लाभ ही थी।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- अंतर्द्वंद्व


      महेश अनपढ़ होते हुए भी अपनी इंसानियतऔर काम के प्रति सजग और ईमानदार था। शायद इसी वजह से पढ़े लिखे लोग भी उसे आदर से नमस्ते करते थे। वह ऑटो चला कर भी अच्छी कमाई कर रहा था।
बिटिया  का विवाह करने के लिए महेश को चार लाख रुपए चाहिए थे। किन्तु उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे होगी इसकी व्यवस्था?
आज ही काम पर जाने से पहले पेपर में महेश ने पढ़ा - "भागता फिरता इसी शहर गाजियाबाद में छुपा प्रख्यात गुंडा 'आकाश दुबे' जिसकी खबर देने वाले को 4 लाख रुपए का इनाम  मिलेगा...।"
देर रात किसी ने महेश की ऑटो को सुनसान रास्ते पर आवाज़ देकर रोका और किसी जगह तक ले जाने को कहा।
महेश ने कहा, "साहब वहां तक 100 रुपए लगेंगे...काफी सुनसान रास्ता है।"
उस आदमी ने कहा - "200 रुपए ले ले, पर जल्दी चल...।"
रास्ते में थोड़ी रोशनी में उस आदमी की शक्ल पर जैसे ही महेश की नज़र पड़ी  उसकी शक्ल सुबह के अखबार वाले उस गुंडे आकाश दुबे से मिलती हुई लगी...अब महेश के मन में चार लाख घूमने लगा-
"पुलिस को बता दूंगा, इसके उतरते ही। भगवान ने मेरी समस्या सरल कर दी" वह सोच रहा था तभी उसकी नज़र ऑटो में उसके  3 साल के बेटे द्वारा लगाए स्टीकर पर गई जिसपर लिखा था..."हर ग्राहक भगवान का रूप है"
बस जरूरत और आत्मा के अंतर्द्वंद्व में आत्मा फिर से महेश पर हावी हो गई...और उसने इस गुंडे को भी अपना भगवान का एक रूप समझा
लेकिन अगले ही पल उसके विवेक ने आवाज दी, "ईनाम के लिए ना सही लेकिन मानवता के लिए समाज के इस दुश्मन को कानून के हवाले करना भी उसका फ़र्ज़ है। समाज के दुश्मनों का सफाया भी तो भगवान का ही काम है।"
और वह जेब से मोबाइल निकाल कर नम्बर
मिलाने लगा..।


प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --कथनी-करनी


      नेता जी सभा को सम्बोधित करते हुए कह रहे थे, ''हमें बहुत कुछ करना है---------अब समय आ गया है कि हम सब एक जुट होकर देश की सेवा में लगें और राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को सदैव बनाये रखें । हमें गरीबी हटानी है, गरीब नहीं --------।''
         भाषण समाप्त होते ही नेता जी की  जीप तेजी से आई और गली के मोड़ पर बैठे दो गरीबों को रौंदती  हुई चली गई । उधर वातावरण में अब भी किसी के बोलने की आवाज़ गूंज रही थी ,'' हमें गरीबी हटानी भाइयों,---------देश को आगे बढ़ाना है ! गरीबों को उनका हक दिलाना है---------।।---------।।

अशोक विश्नोई
  मुरादाबाद
 मो० 9411809222

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की लघुकथा -----पेमेंट


शादी निपट चुकी थी और टैंट वाले , कैटरिंग वाले , मिठाई वाले सभी अपनी - अपनी पेमैंट के लिए वर्मा जी को घेरे हुए थे । वर्मा जी यथा शक्ति सभी को संतुष्ट कर भुगतान (पेमेंट) करते जा रहे थे ।
        अंदर जनाने से बार - बार बुलावा आ रहा था कि बिदाई की कुछ रस्मों के लिए श्रीमती जी को उनकी जरूरत थी और बिटिया भी एक बार उनसे अच्छे से मिल लेना चाहती थी । उनका हृदय भी अपनी प्यारी बेटी से होने वाले वियोग को स्मरण करके व्यथित हो रहा था पर वो फिर भी मुस्कुराहट का आवरण सजाए सभी कार्य निपटा रहे थे ।
       लगभग सभी की पेमेंट  चुकता कर वो घर के अंदर जाने के लिए जैसे ही मुड़े कि अचानक जनवासे में से समधीजी निकल के
सामने आ गए और पूरी बत्तीसी फैला कर बोले  "हुजूर हमारी पेमेंट  कब तक करेंगे  ? "   " हमारी पेमेंट  भी निपटा दें ताकि  बिदाई निर्विध्न संपन्न हो ।"   
           नई-नई रिश्तेदारी की बेशर्मी को नज़रअंदाज कर वर्मा जी ने फौरन घर के भीतर से एक बड़ा बैग लाकर समधीजी के हाथ में पकड़ाया और हाथ जोड़कर कहा  " पूरे पचास लाख हैं ।" समधीजी हँस कर बोले  "अरे हमें पता है हुजूर  , हिसाब - किताब के आप बहुत पक्के हैं ।"   
 "हमें भरोसा है ।"    "आप बस अब बिदा की तैयारी करें ।"  और वर्मा जी इस आखिरी पेमेंट  को निपटा निश्चिंत हो बेटी से मिलने घर के अंदर चल पड़े ।

सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद । 

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ नीयत

                                                                                      नावेद मियां जबसे जलसे में से आये थे। अपने माँ- बाप के प्रति उनमें खास बदलाव दिखाई देने लगा था। अपनी बीवी आसिया से वह कह रहे थे -"देखो आसिया, मेरे पीछे भी मेरे माँ- बाप को किसी तरह की परेशानी नही होनी चाहिये। उनकी हर बात का ख्याल रखना क्योंकि, वालिदैन (माँ -बाप) की खिदमत  से ही हमें जन्नत मिलेगी। मौलाना साहब जलसे में कह रहे थे कि -"अगर किसी ने माँ- बाप का दिल दुखाया तो वह जन्नत की खुशबू भी नही सूंघ सकता "।
नावेद मियां यूं तो पहले से ही माँ- बाप के फरमाबरदार थे लेकिन जलसे से आने के बाद  माँ- बाप काऔर अधिक ख्याल रखने लगे थे । जुमेरात की शाम नावेद मियां के यहां जलसे वाले मौलाना साहब की दावत थी।दावत के बाद मौलाना साहब कमरे में आराम फरमा रहे थे। नावेद मियां भी उनके सामने बैठे हुए थे।  गुफ्तगू शुरू हुई तो फिर वालिदैन के हक़ तक जा पहुँची नावेद मियां बड़े फख्र से मौलाना साहब को बताने लगे कि वह किस तरह अपने माँ- बाप का ख्याल रखते है उन्होंने मौलाना साहब से पूछा कि-" क्या वह अपने माँ बाप का हक़ अदा कर रहे है?"मौलाना ने जवाब दिया -"आप अपने वालिदैन की खिदमत कर अच्छा काम कर रहे है ,खुदा आपको इसका सिला (बदला)देगा लेकिन जहाँ तक हक़ अदा करने की बात है आप उनका हक अदा नही कर सकते"। 
"क्यों?"नावेद मियां ने हैरत से पूछा।मौलाना साहब फिर बोले-"नावेद मियां, अच्छाई- बुराई, अज़ाब- सवाब(  पाप -पुण्य) सब नियत पर होता है। खुदा बन्दे की नियत से ही उसके अमल (कृत्य)का बदला देता है। आप यह सोचकर अपने माँ- बाप की खिदमत कर रहे हैं कि आपको जन्नत में जाना है। लेकिन जब आप नन्हें से बच्चें थे तब आपके माँ- बाप ने आपकी खिदमत जन्नत (स्वर्ग)के लालच या दोज़ख (नरक)के ख़ौफ से नही की थी  बल्कि वह आपको बड़ा होता परवान चढ़ता हुआ देखकर खुश होते थे उनकी नीयत में कोई लोभ, लालच नही था। जबकि लोग अपने बूढ़े माँ- बाप की खिदमत जन्नत के लालच या दोजख में जाने के ख़ौफ से यह सोचकर करते है कि यह चंद सालों   के  ही तो मेहमान है।" बताईये," माँ- बाप का हक़ कौन?कैसे, अदा कर सकता है। माँ- बाप  की नीयत और औलाद की नीयत  में कितना फर्क है। " मौलाना का जवाब सुनकर नावेद मियां ने निदामत से सर झुका लिया और उनकी आंखें गीली हो गईं सोचने लगे, 'वाक़ई हम लोग माँ - बाप का हक़ अदा नही कर सकते।'  लेकिन  अगले ही पल यह सोचकर उनके चेहरे पर संतोष के भाव आ गये की हम वालिदैन की खिदमत तो कर ही सकते हैं।'

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ---- झूठा प्यार


आखिर पांच साल के लंबे प्रेम  के बाद  आज राहुल शादी कल्पना से हो गई ।कल्पना स्टेज पर खुश नजर नहीं आ रही थी.... क्योंकि उसका प्यार केवल एक दिखावा था । वह राहुल से प्यार नहीं करती थी बल्कि टाइम पास करती थी। परंतु अपने पिता के दबाव में आकर शादी के लिए हां करनी पड़ी । राहुल कल्पना से सच्चा प्यार करता था ...और उसे हर कीमत पर पाना चाहता है । बहुत  ही मुश्किल से  कल्पना राहुल से शादी करने के लिए तैयार हुई  । कल्पना किसी बंधन में बंधकर अपनी जिंदगी को नहीं बिताना चाहती थी। शादी के बाद दोनों कुछ ही दिन खुश रहे होंगे ....कि दोनों में झगड़े होना शुरू हो गए ....कल्पना एक बहुत ही महत्वाकांक्षी लड़की थी ...उसे जीवन में भरपूर ऐशो-आराम  व ठाठ -बाट चाहिए  था। राहुल यह सब करने में असमर्थ था... जिसके कारण दोनों में तनाव रहने लगा। धीरे- धीरे  तनाव  इतना बढ़ गया कि राहुल के लिए असहनीय हो गया । उसने अपने जीवन को खत्म करने की सोची..... परंतु अपने  बूढे माँ -बाप के बारे में सोच कर वह ऐसा  नहीं  कर पाता था।  कल्पना  का आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था ,जब पानी सर से ऊपर गुजर गया तब राहुल ने कल्पना को स्वतंत्र करने की सोची और कमरे में फांसी का फंद बनाकर लटक गया ।.... क्योंकि वह उसे इतना प्यार करता था ....कि उसके बिना वह रह नहीं सकता था और कल्पना उसके साथ रहने को तैयार नहीं थी ।

स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष गौहर उस्मानी की दो ग़ज़लें ---- ये ग़ज़लें ली गईं हैं बीस साल पहले प्रकाशित गजल इंटरनेशनल 2000 से । इसका संपादन मंसूर उस्मानी और हसीब सोज ने किया था ।



:::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ऋषि कांत शर्मा का गीत -----यह गीत उन्होंने मेरी डायरी में 37 साल पहले 27 अप्रैल 1983 को लिखा था । उनका यह गीत लगभग 53 साल पहले वर्ष प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' में भी प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने



::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
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