शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली( जनपद संभल निवासी) साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता---- यह साल कमाने का नहीं जान बचाने का है


निरंतर छह माह से
शवासन की मुद्रा में
खाट तोडते तोड़ते देखकर
निम्न मध्यमवर्गीय पत्नी ने
पति से कहा  झंझोडकर 
रसोई में खाली पड़े डिब्बे
अलमारी औऱ कनस्तर
गालियां दे रहे हैं तुम्हें
पेट मसोसकर
कुछ ध्यान भी है तुम्हें
किसी के सुख दुख दर्द दवाई का
बच्चों के फटे कपड़े चीनी दूध मलाई का
चौबीस घंटे पड़े रहते हो
हाथ पैरों को हिलाओ कुछ डुलाओ
नहाओ धोओ आदमी की शक्ल में आओ
खुद भी पियो खाओ
कुछ हमें भी खिलाओ पिलाओ
कुंभकर्णी निंद्रा त्यागते हुए
पति ने बड़े ही आध्यात्मिक लहजे में कहा
मानता हूं तुमने इन दिनों
बहुत कष्ट  भोगा, दुख सहा
देवी यह समय क्या लड़ने लड़ाने का है
तुमने सुना ही नहीं ध्यान से
यह साल कमाने का नहीं
जान बचाने का है
   
त्यागी अशोक कृष्णम्
कुरकावली संभल
 9719059703

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