गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा-----वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्


कितना सुन्दर होगा तुम्हारा साथ प्रियतम !हम बहुत दूर चले जायेंगे ।

कहीं भी,जहाँ हमारे प्रेम को किसी की नजर न लगे ।विवाह के एक दिन पूर्व मेहंदी से रंगी हथेलियों वाली उर्मि अपने मनभावन लड़के के साथ घर से भागने की योजना बना रही थी । घर वाले उसके पसंद के लड़के से विवाह के विरुद्ध थे ।यौवनावस्था और धनसम्पन्नता ,उस पर अप्रतिम सौन्दर्य !तीनों एक साथ ।बुद्धि का नाश  तो स्वाभाविक था । प्रेमी की योजना के अनुसार कुछ रुपये पैसे के साथ उसको चुपचाप निकलना था । विवाह के घर में व्यस्तताओं में उलझे ,उसका मोबाइल अचानक कहाँ गया ?किससे पूछे ?अब वह उसे कैसे सूचना देगी ? अरे !डायरी में भी लिखा है उसका मोबाइल नंबर कहीं।पहला पन्ना पलटा ,फिर दूसरा ,और फिर क्रम से.......कई.....।अरे ....मिल गया ..लेकिन.... ऊपर ... सबसे ऊपर..लिखा था.." वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्।....अक्षीणो वित्ततः,क्षीणो वृतस्तु हतो हतः ।

कक्षाओं में शिक्षकों ने यही तो कहा था,फिर क्यों ?उर्मि काँप उठी। मानो कोई दुस्वप्न देखा हो ।उस आदर्श वाक्य को बार-बार पढा़ और पढा़ ....फिर उसके मन से वह कुत्सित योजना ओझल होती गई सदा के लिए।एक आदर्श वाक्य की शक्ति थी यह ....कि एक चरित्र की रक्षा हुई।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की बाल कविता --- प्यासी चिड़िया


मरी पड़ी थी चिड़िया एक, 

देखके बोला बच्चा  एक.. 


किसने इसे मारा है  मम्मी, 

पता चले वो कौन है पापी? 


मम्मी बोलीं - हम भी तुम भी, 

इसको मारने के हैं  दोषी। 


कितनी पड़ी हुई है गर्मी, 

यह चिड़ाया बेहद प्यासी थी। 


तरस न इस पर किसी को आया, 

किसी ने पानी नहीं पिलाया। 


छतों मुंडेरों पर भी आई, 

पानी की इक बूंद न पाई। 


बच्चे की आंखें भर आईं, 

मम्मी भी उसकी पछताईं। 


झट पट रक्खा छत पर पानी, 

साथ में रक्खा कुछ दाना भी। 

✍️ ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद

پیاسی چڑیا.... 


مری پڑی تھی چڑیا ایک، 

دیکھکے بولا بچہ ایک. 


کس نے اسے مارا ہے ممّی، 

پتا چلے وہ کون ہے پاپی؟ 


ممّی بولیں - ہم بھی تُم بھی، 

اسکو مارنے کے ہیں دوشی. 


کتنی پڑی ہوئی ہے گرمی، 

یہ چڑیا بےحد پیاسی تھی. 


ترس نہ اس پر کسی کو آیا، 

کسی نے پانی نہیں پلایا. 


چھتوں مُنڈیروں تک بھی آئی، 

پانی کی اک بوند نہ پائے! 


بچّے کی آنکھیں بھر آئیِں، 

ممّی بھی اسکی پچھتائیں. 


جھٹ پٹ رکھّا چھت پر پانی، 

ساتھ میں رکھّا کچھ دانہ بھی. 

(ضمیر درویش)

बुधवार, 4 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की बाल कथा -----पिंजरे में कैद हो गया बबलू

   


मेले से जिद करके बबलू एक तोता खरीद लाया था । छोटा - सा पिंजरा था और उसमें तोता थोड़ा - बहुत हिल-डुल रहा था । घर पर लाकर बबलू ने तोते को हरी मिर्च खिलाई । हरी मिर्च घर पर ही रखी थी। तोते ने प्रारंभ में तो मिर्च की तरफ ध्यान ही नहीं दिया लेकिन फिर बबलू के हाथ से एक मिर्च अपनी चोंच में पकड़ ली । यह देख कर बबलू की खुशी का ठिकाना न रहा । फिर तो घर पर खाने की जितनी भी चीजें थीं, बिस्कुट ,टॉफी ,काजू ,मठरी ,रोटी सभी कुछ लेकर बबलू तोते के पास जाने लगा । तोता इतना सामान कहाँ से खाता ! कुछ चोंच में पकड़ा ,कुछ खाया ,बाकी सब गिरा दिया। लेकिन बबलू को यह सब देख कर ही बहुत अच्छा लग रहा था । उसे तो यही बात आनंदित कर रही थी कि तोता असली में हमारे जैसे साँस लेता है, हिलता - डुलता है और अपनी चोंच को इधर-उधर करता रहता है । ...और हाँ तोता खाता भी है ,यह बात भी बबलू को असर कर रही थी । तोता अब उसकी साँसों में बस गया था । 

                    रात को सोया तो जैसे ही नींद आई ,नींद में ही तोते के पास चला गया । सपना देखने लगा ।  वह तोते को हरी मिर्च खिला रहा है और तोता अपनी चोंच से हरी मिर्च को पकड़ रहा है । लेकिन यह क्या ! सपना देखते देखते बबलू ने देखा कि तोते ने हरी मिर्च को खाते-खाते उसकी उंगली भी पकड़ ली । अब तो बबलू सपने में चीखने लगा । उसने उँगली छुड़ाने की बहुत कोशिश की  मगर तोते ने नहीं छोड़ी । तोता उसकी उँगली को अपने पिंजरे में खींचने लगा । धीरे- धीरे बबलू का पूरा हाथ पिंजरे के अंदर चला गया और फिर बबलू का शरीर पतला होते हुए धीरे-धीरे पूरा शरीर पिंजरे के अंदर आ गया । अब पिंजरे के अंदर बबलू भी कैद था और तोता भी कैद था। 

        बबलू को पिंजरे के अंदर घुटन महसूस होने लगी। उसने जोर से अपनी मम्मी को आवाज लगाई "मम्मी ! मुझे पिंजरे से निकालो । मेरा दम घुट रहा है । मैं आजाद होना चाहता हूँ।"

        बबलू की आवाज उसकी मम्मी ने नहीं सुनी तथा वह नहीं आईं। इस पर बबलू और भी परेशान होने लगा । उसने अपने हाथ पैरों को पटकना शुरू किया । उसे साँस लेने में मुश्किल आ रही थी । वह पिंजरे से बाहर निकल कर अपने कमरे में जाना चाहता था तथा पूरे घर में और घर के बाहर कॉलोनी में भी बच्चों के साथ खेलना चाहता था । उसने जोर से फिर मम्मी को आवाज लगाई "मुझे पिंजरे में क्यों कैद कर रखा है ? मुझे जल्दी से आजाद कराओ । मैं बच्चों के साथ खेलूँगा ।"

       इस बार बबलू ने देखा कि वह अपने हाथ - पैरों को छटपटा रहा है । उसकी आँख खुल गई और वह समझ गया कि मैं एक डरावना सपना देख रहा हूँ। दिन निकलने ही वाला था । बबलू दौड़कर पिंजरे के पास गया उसने फौरन पिंजरे का दरवाजा खोलाऔर  तोते को बाहर निकाल कर उससे कहा "उड़ जा तोते ! तू भी तो घुटन महसूस कर रहा होगा ।"

            तोता बबलू को कृतज्ञता के भाव से देखता हुआ आसमान में उड़ गया।  बबलू को लगा कि यह तोता नहीं बल्कि वह खुद किसी भयानक कैद से आजाद हुआ है।

✍️ रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अनिल शर्मा अनिल, विवेक आहूजा, अशोक विद्रोही, स्वदेश सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी,राम किशोर वर्मा, कमाल जैदी वफ़ा, डॉ शोभना कौशिक और शिव अवतार रस्तोगी सरस् की बाल कविताएं .......

 


इतना सारा धुआं कहॉं से

सुबह सुबह ही आ जाता।
सूरज को भी ढक लेता है,
साफ नजर न कुछ आता।।
किसने घर के बाहर जमा,
कूड़े में आग लगायी है।
या खेतों में पड़ी पराली,
कृषकों ने सुलगायी है।।
इसके कारण दादीजी की
श्वांस फूलने लगती है।
बैठी रहती है खटिया पर
सोती है,न जगती है।।
दादाजी भी खूब खांसते,
हाय राम ये क्या संकट?
आंखों में भी जलन हो रही
आयी समस्या बड़ी विकट।।
मत जलाओ पराली कूड़ा,
धुंअॉ न इतना फैलाओ।
पर्यावरण शुद्ध रखना है,
नयी तकनीकी अपनाओ।।
खाद बनाकर इनकी भईया
देना भूमि को भोजन।
पर्यावरण शुद्ध बनेगा,
स्वस्थ रहेगा जनजीवन।।

✍️डॉ.अनिल शर्मा अनिल
धामपुर, उत्तर प्रदेश
--------------------------------------


अब काहे का रोना ,जब हो गया तुम्हें करोना ।
बाहर थे जब तुम जाते ,हम सब तुम को समझाते ।
हो गया जो था होना ,अब काहे का रोना ।।

गमछा गले में डाले , सबके तुम रखवाले ।
हो गई समाज की सेवा , मिल गया तुमको मेवा । 
अब अकेले ही तुम सब सहना , अब काहे का रोना ।।

समझाते थे तुमको सारे , मगर माने नहीं तुम प्यारे ।
अब तुमको ही सब सहना , पड़ेगा अस्पताल में रहना । मरीजों के संग तुम सोना , अब काहे का रोना ।।

जल्दी से घर को आना , बिल्कुल मत घबराना ।
कहती है तुम्हारी बहना ,हमारे लिए "तुम सब कुछ हो ना" 

✍️ विवेक आहूजा 
बिलारी, जिला मुरादाबाद 
मोबाइल फोन नम्बर 9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 
------------------------------------------------


एक बिल्ली का बच्चा एक दिन,
                 छोटा सा घर आया।
देख उसे मेरे गोलू का ,
                  नन्हा मन हर्षाया।।
उसका रंग काला सफेद था,
                लगा बड़ा ही सुंदर।
म्याऊं ,म्याऊं का शोर मचाया,
                उसने घर के अंदर।।
भूख प्यास से व्याकुल था वह,
                लगा खूब चिल्लाने।
एक कटोरी लिया दूध ,
               गोलू ने लगा पिलाने।।
दूध पिया सारा फिर भी,
         वह चक्कर काट रहा था।।
भूख अभी बाकी थी ,
        खाली बर्तन चाट रहा था।।
देख देख उसकी व्याकुलता ,
                   मन में दया समाई।
फेरा हाथ गोलू ने उस पर,
             खिचड़ी उसे खिलाई।।
खा पीकर वह मस्त हो गया,
                लगा शरारत करने।
देखी उसकी धमा चौकड़ी,
              लोग लगे सब हंसने।।
कभी उछलता इधर उधर,
          कभी गोदी में आ जाता।
घर वालोें का धीरे-धीरे,
           जुड़ गया उससे नाता।।
चंचलता के कारण आखिर,
            सबके मन वह भाया ।
बड़े प्यार से सबने उसका,
           "औगी''नाम धराया ।।
एक दिन फिर"औगी''की सूरत
              कहीं नजर न आई,।
ढूंढ ढूंढ कर हार गये सब ,
            पड़ा न कहीं दिखाई।।
कई दिनों के बाद हटी गाड़ी,
               तब देखा जाकर ।
औगी,मरा पड़ा बेचारा,
          वहां रैट किल खाकर।।
याद में रोयेअपना गोलू ,
              उसे भूल न पाता है।
प्रेम मिले तो मानव क्या,
       पशुभीअपना हो जाता है।।

अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
8218835 541
---------------------------------------



देखो- देखो सर्दी आई
टोपा, मौजों की बारी लाई

            सर्दी में जम जाते  हाथ
           किट किट कर बजते दांत

स्वेटर पहनना मुझे ना भाये
ना पहनू तो ठंड सताए

            सन सन कर चलती  हवा
           सूरज दादा छिप जाते कहाँ

मम्मी मुझे रोज न नहलाना
गरम -गरम  दूध पिलाना

          सर्दी मुझको रास ना आती
       खेलने पर भी पाबंदी लगाती

✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
--------------------------------------------



बिल्ली  बोली   चूहे   राजा,
क्यों  मौसी   से  डरते   हो,
निर्भय   होकर  घर-भर  में,
क्यों नहीं कुलांचें भरते  हो।
        -------------------
छोड़ा मांसाहार  कभी  का,
छोड़   दिया  अंडा   खाना,
अब तो मुझे बहुत भाता है,
दाल - भात   ठंडा    खाना,
मेरी  सच्ची बातों  पर क्यों,
नहीं   भरोसा    करते   हो।
बिल्ली बोली ----------------

मेरा  मन  करता है  मैं  भी,
साथ   तुम्हारे   नृत्य   करूं,
साज उठाकरखुदको भी मैं,
सरगम   में  अभ्यस्त  करूं,
फिरभी प्यारी मौसी से क्यों,
डर    के    मारे   मरते  हो।
बिल्ली बोली--------------

देखो   मेरी   कंठी  - माला,
देखो    राम    दुपट्टा    भी,
याद  नहीं  मैंने   मारा   हो,
तुम पर  कभी  झपट्टा  भी,
मेरे  सम्मुख   खीर  मलाई,
लाकर  क्यों  ना  धरते  हो।
बिल्ली बोली-------------

अब तो आँख मीच ली मैंने,
फिर   काहे   की   शंका  है,
धमा चौकड़ी  खूब मचाओ,
बजा   प्यार   का   डंका  है,
मेरी   गोदी   में    आने   से,
तुम  किसलिए  मुकरते  हो।
बिल्ली बोली---------------

सौ-सौ चूहे  खाकर  बिल्ली,
कितनी   भोली   बनती   है,
एक आँख  कर बंद, गौर से,
सबकी    बोली   सुनती   है,
सुनो,  शर्तिया  मर  जाओगे,
यदि तुम  आज बिखरते हो।
बिल्ली बोली---------------
          
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-    9719275453
--------------------------------------



कितने रंग बदलता बादल, समझ नहीं यह आता है ।
पूरब में नारंगी है तो, पश्चिम लाल दिखाता है ।।
उत्तर में नीला-भूरा सा, दक्षिण रंग जमाता है ।
बादल में क्या-क्या दिखता है, मानव समझ न पाता है ।। 1।।

आंँख-मिचौली खेलें तारें, शशि बादल से आता है ।
सुबह-सवेरे सूर्यदेव भी, बादल से उग आता है ।।
धरती को जब प्यास लगे तो, वर्षा तृप्त कराता है ।
उमड़-घुमड़ जब बादल आते, गड़गड़ ढ़ोल  बजाता है ।। 2।।

कितने ग्रह हैं इस बादल में, समझ नहीं यह आता है ।
बिजली भी चमकाता बादल, कितने रंग दिखाता है ।।
धुंँआ-धुंँआ कहते बादल को, मेरा सिर चकराता है ।
तेरी माया तू ही जाने, भगवन जो दिखलाता है ।। 3।।

✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर, उत्तर प्रदेश
-------------------------------


चमको चमको तारे बनकर,
जगमग  कर दो घर और बाहर।
बिखरो फूल सी खुशबू बनकर।
महक उठे हर एक का घर, दर।
बढ़ते जाओ बढ़ते जाओ,
मन मे न हो बिल्कुल भी डर।
दूर गगन में तुम हो आओ,
पंछी और परियों सा उड़कर।
हिम्मत कभी न डिगने देना,
घोर मुसीबत में भी घिरकर।
खूब बड़ा बनना है तुमको,
मेहनत से ही लिखकर पढ़कर।
सपने जो देखे थे तुमने,
समय हुआ उनको पूरा कर।
अवरोधों से न डर बिल्कुल,
मार दे सबको जोर की ठोकर।
काम जो दिल मे ठान लिया है,
उसको पूरा कर पूरा कर ।,                                                                    खुशियां सबके मुख पर ला दो,
खुद हंसकर और सबको हँसाकर।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल
बरखेड़ा (मुरादाबाद)
9456031926
-----------------------------------------



बच्चे प्यारे प्यारे,
    होते राजदुलारे,
ये वो नन्हें फूल है,
    मत मुरझाने देना प्यारे,
अपने आप में रहते मस्त,
     हो कर एक दूसरे के बस,
भेद भाव का काम नहीं,
     इनके यहाँ आराम नहीं,

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

----------------------------------------------



 


                     

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की बाल कविता


 

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था " हिन्दी साहित्य संगम " के तत्वावधान में रविवार एक नवंबर 2020 को ऑन लाइन कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई , डॉ मीना नक़वी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, श्री कृष्ण शुक्ल, अटल मुरादाबादी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर,डॉ रीता सिंह,डॉ प्रीति हुंकार,अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, इंदु रानी,प्रशांत मिश्र, नकुल त्यागी, विकास मुरादाबादी और राशिद मुरादाबादी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं ......

 


वोट देने हेतु

आस्तीन से पसीना
पोंछता कतार में लगा
भारतीय नागरिक
अपने अधिकारों की लड़ाई
हर बार हारा है ।
वह कल भी
असहाय बेचारा था,
वह आज भी,
असहाय बेचारा है ।।
-------------
तीन चौके पन्द्रह
का हिसाब बैठा कर ,
गुणा भाग कर।
कच्चा- पक्का
हिसाब आ गया।
मेरी गली का गुंडा
सत्ता पा गया ।।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
-----------------------------------------


भावनाओं का तिरस्कार नहीं होना था।
क्रोध को प्रेम का आधार नहीं होना था।।

जब था विश्वास का सम्बंध तो हरगिज़ तुमको।
बेवफा़ई का तरफ़दार नहीं होना था।।

इक ज़रा बात पे मस्तक पे न बल डालने थे।
अपने लोगों से ये व्यवहार नहीं होना था।।

होली और ईद तो बस पर्व हैं सद्भावों के।
रक्त रंजित कोई त्यौहार नहीं होना था।।

ये विरह-वेदना दलदल की तरह लगती है।
दुख के सागर को यूँ मंझधार नहीं होना था।।

तुझ को करनी थी जो समझौते की बातें मुझ से।
तेरे वचनों में  अहंकार नहीं होना था।।

मन के घावों पे मेरे, दृष्टि तेरी पड़नी थी।
तेरे अधरों को यूँ तलवार नहीं होना था।।

कैसा अनुरोध?  कि मन रिक्त था इच्छाओं से।
दान में प्रेम भी स्वीकार नही होना था।।

बंदिशें भावों पे और शब्दों पे पहरे 'मीना'।
लेखनी पर ये मेरी भार नहीं होना था।।

✍️ मीना नक़वी
-------------------------------


कदम-कदम पर  स्वर्ग-नर्क  है,
स्वयं   धरा   पर    बसा   हुआ,
नेकी   करो   नेकियां   पा   लो,
दंड   बदी   से    कसा    हुआ।
         
ऊपर कुछ  भी नहीं  कहीं   पर,
नहीं      धाम     वैकुंठ      वहाँ,
धर्मों   के   दलदल    में   मानव,
डूबा    है      आकंठ        यहाँ,
ज्ञानी   भी   खुद  अंधकार   के,
लगता   दुख   में   धसा    हुआ।
कदम-कदम पर---------------

धर्मराज   को     किसने    देखा,
मिले    नहीं     यमराज     कहीं,
वेदों    की    रचना   करते   भी,
दिखे    नहीं    गजराज     कहीं,
अपने   बुने   जाल    में   मानव,
बुरी   तरह    से    फसा    हुआ।
कदम-कदम पर---------------

स्वागत   होता   हो   फूलों    से,
महके     राह      दुआओं     से,
जीवन का क्षण-क्षण महका  हो,
शीतल     शुद्ध     हवाओं     से,
यही   स्वर्ग    है   इसमें   लगता,
जीवन  का   सुख   बसा   हुआ।
कदम-कदम पर----------------

अहित    चाहने    वाला    प्राणी,
दानव       दुष्ट      कहाता      है,
सरे  राह   वह   इसी    धरा   पर,
रोज़      जूतियां      खाता      है,
यही   नर्क   है, जब  अपना   ही,
लगता    खुद    से   कटा   हुआ।
कफम-कदम पर-----------------

स्वर्ग  -  नर्क   सब    बेमानी    हैं,
इसको     विसरा     कर      देखो,
जैसी     करनी      वैसी     भरनी,
का     सच     अपनाकर     देखो,
पेच  बुद्धि  का   ढीला   कर   लो,
जो    स्वार्थ    में    कसा    हुआ।
कदम-कदम पर-----------------
            
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-   9719275453
------------------------------------------


कुंडलिया

गृहणी करवा चौथ पर, रखती हैं उपवास।
पतियों की दीर्घायु की, लिए ह्रदय में आस।।
लिए ह्रदय में आस, कठिन व्रत धारण करतीं।
रहे अखंड सुहाग, कामना ये ही रखतीं।।
हों भूमिजा प्रसन्न, रहें चिर मंगलकरणी।
यही कृष्ण की आस, रहे चिरजीवी गृहिणी।।

गज़ल
---------

पत्थरों सा जो हो गया होता।
आज मैं भी खुदा हुआ होता।

फूल ये इस तरह न मुरझाता।
प्यार से आपने  छुआ होता।।

हम अँधेरों से पार पा लेते।
एक भी दीप यदि जला होता।

आपने यदि हवा न दी होती।
जख्म फिर से न ये हरा होता।

कंटकों से न घर सजाते तो।
आज दामन न ये फटा होता।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
-------------------------------------------


जिंदगी तो एक दरिया खूब न्हाना चाहिए,
और उसकी धार में गोते लगाना चाहिए।

जिंदगी गफलत नहीं है जिंदगी जीवंत है,
जिंदगी में हर खुशी को अब मनाना चाहिए।

खार औ कांटें मिलें तो गम कभी करना नहीं,
सीखकर लघु कंटकों से मार्ग पाना चाहिए।

जिंदगी बंजर नहीं है जिंदगी उपजाऊ' है,
हसरतों के फूल दिल में भी उगाना चाहिए।

नफरतों को छोडकर सब गीत अब गायें नया,
प्यार से मिलकर रहें हम वो जमाना चाहिए।

भीड़ जिसपर भी पड़े तो हम मदद उसकी करें,
कर्म कुछ सदभाव के कर  प्रीति पाना चाहिए।

हों अगर माॅयूसियाॅ तो त्याग दें उनको तनिक,
और रसमय भाव से नवगीत गाना चाहिए।

जब कभी हो गमजदा तो मुस्कुरा कर देखिए,
खुद हॅसो अरु दूसरों को भी हॅसाना चाहिए।

✍️ अटल मुरादाबादी
-----------------------------------------


बिताकर वर्ष आया                                                                    
      दीपावली   का  त्योहार
बढ़े सुख समृद्धि आपकी
      और आपस में बढ़े प्यार
दीप  जलें  खुशियों  के
      दुखों का हो दूर अंधकार.                 
आनंदित हो  पर्व   मनाएं                                    
      शुभकामना करें स्वीकार

✍️  डॉ मनोज रस्तोगी
8 जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
Sahityikmoradabad.blogspot.com
------------------------------------------

न जाने किस भँवर में ज़िन्दगी है

ठहाके मौन हैं ग़ायब हँसी है

नहीं परछाईयाँ तक साथ देतीं
इसी का नाम शायद बेबसी है

भटकती है दिशा से वो यक़ीनन
नदी जब भी किनारे तोड़ती है

चलीं तूफ़ान बनकर आँधियाँ जब
परिन्दों ने नई परवाज़ की है

हुई है मौत जिसकी तिश्नगी में
उसी की आँख में अब तक नमी है

मिलेगी कोशिशों से ही सफलता
यही हमको बड़ों ने सीख दी है

कहेगा सच हमेशा तल्ख़ियों से
तभी तो आँख की वह किरकिरी है

दुआएँ अब असर करती नहीं क्यों
हमारी ही कहीं कोई कमी है

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम',मुरादाबाद
------------------------------------------


दूर हटाने के लिये, अन्तस से अँधियार।
करे अमावस हर बरस, दीपों से शृंगार।।
******
निद्रांचल को छोड़ कर, दिनकर ने दी डाल।
प्राची-पट पर प्रेम से, पुनः चुनरिया लाल।।
******
मानुष-मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत गया संग्राम।।
******
दीपक रूपी सत्य को, करके अंगीकार।
चलो मनायें साथियो, अब झिलमिल त्योहार।।
******
अपने मीठे-मीठे गीत सुनाती रहना।
सबके मन को इसी तरह हर्षाती रहना।
माना यह उपवन भी तुमने पीछे छोड़ा,
प्यारी चिड़िया चीं-चीं करने आती रहना।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
----------------------------------------------


आओ चलें वनों की ओर
जहाँ सुरीली होती भोर
खग समूह मिल सुर लगाते
खोल पंख उमंग दिखाते
नाचे मस्ती में है मोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।

प्रथम पहर में रवि किरण ने
नरम धूप की पकड़ी डोर
पात चमक उठे ज्यों झालर
उछल रहे पेड़ पर वानर
एक छोर से दूजे छोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।।

दिन दहाड़े गज चिंघाड़े
भालू बजा रहे नगाड़े
मृग नाचते ता ता थैया
मनहु सब हैं भैया भैया
चारों ओर खुशी का शोर
आओ चलें वनों की ओर ।

घूम रहे सिंह गरजते
सब जीव दल जान बचाते
कहीं शिकार कहीं शिकारी
सोच एक से एक भारी
लगी जीतने की है होर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।

✍️ डॉ रीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
एन के बी एम जी कॉलेज ,
चन्दौसी (सम्भल)
----------------------------------------


बिखरे मोती तुमने गूँथे ,दी मजबूती माल को ।
मिलकर आओ नमन करें हम ,उस भारत के लाल को ।
लौह पुरूष जिनकी है उपमा ,
अथाह देश से प्यार था ।
सही अर्थ में मेरे देश में ,एक यही सरदार था ।
समग्र राष्ट्र को तुमने जोड़ा ,पौरुष जहाँ अपार था ।
एक देश का सबल राष्ट्र का ,किया स्वप्न साकार था ।
यश की कान्ति सतत चूमती भारत माँ के भाल को ।
मिलकर आओ*********
हे क्रांति वीर बिस्मार्क देश के ,
तुमने हमको समझाया है ।
एक रहेगें खूब फलेंगे हमको
यह  पाठ पढाया है ।
देश से ऊपर धर्म न कोई ,जनजन ने अब गाया है ।
नमन ह्रदय से करें आज फिर
नहीं तुमको कभी भुलाया है ।
सदा आपकी रही जरूरत ,मेरे देश विशाल को ।
मिलकर आओ*****

✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद
-----------------------------------------


बहाया था दरिया वफ़ाओं का हमने।
कि तोड़ा गुमाँ भी घटाओं का हमने।।

मयस्सर हुआ जो भी उसमें  रहे खुश।
न माँगा ज़खीरा दुआओं का हमने।।

हुआ जब से मशगूल अपनी दिशा में।
न देखा है जलवा अदाओं का हमने।।

गुलों से ये बुलबुल भी कहती है हँसकर।
सजाया है दामन फ़ज़ाओं का हमने।।

हमेशा ही "आनंद" दुश्मन को अपने।
दिया प्यार फिर फिर दुआओं का हमने।।

✍️अरविन्द कुमार शर्मा "आनंद", मुरादाबाद
------------------------------------------


राम राज आया है यही क्या,हम तुम जो बीमार हुए?
तन से तो बीमार थे पहले अब मन भी बीमार हुए।

भ्रात बन्धु के सारे रिश्ते पल मे तारम तार हुए,
देख जगत की हालत ऐसी राम  शर्मसार हुए।

जात धर्म के नशे मे केवल आपस मे तकरार हुए,
आज अखण्ड भारत के टुकड़े होने को तैयार हुए।

राम नाम बस कंठों तक ही हाथों मे तलवार हुए,
आज संकट मे हर बेटी, हर घर और संसार हुए।

नोच रहे हैं जालिम बोटी, गिद्धों से बेकार हुए
युवा पीढ़ी पतन को निश्चित कुछ ऐसे आसार हुए।

क्या तरक्की मुल्क की ऐसे, अनसुनी दरकार हुए
कैसे आका अफसर कैसे , फरियादी लाचार हुए।

भेद वर्गों के मिट जाते पर इन पर ही व्यापार हुए,
एक अबला असहाय पर कितने व्यभिचार हुए।

इश्क का जो दम भरते थे, भँडुए सब दिलदार हुए
जिसके नही बहन कोई बेटी ऐसी तो सरकार हुए।

सच को जो पर्दे मे रखते ऐसे तो पत्रकार हुए,
गृह क्लेश ये निबटे कैसे लड़ने सब बेकरार हुए।

बैरभाव जहां मिट जाए तो आपस मे फिर प्यार हुए,
प्रेमी बन कर रहने वाले जन सभी लाचार हुए।

✍️ इंदु ,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
--------------------------------------------


आओ ! चले उस बाग में
जहाँ फूलों की कलियाँ खिली हुई हो
पंछी मंद-मंद मुस्कुरा रहे हों
कोमल पवनें लहरा रही हों

भौंरों की आँखें कुम्भला रहीं हैं
कोयल मधुर संगीत गा रहीं हो

आओ ! चलें उस बाग में
जहाँ चेहरों पर खुशियाँ खिली हुई हो

✍️प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार ,मुरादाबाद
---------------------------------------


एक दिन नव दंपति में हो गई लड़ाई!
पत्नी ने मार दी फेंक कर
चूल्हे पर रखी तेल से भरी कढ़ाई
पति भी बहुत बड़बड़ाया,
पत्नी भी बहुत बड़बड़ाई
दोनों ने निश्चय किया
चलो डूबकर मरेंगे,
आखिर एक दूसरे को तंग तो नहीं करेंगे
  कुएं पर पहुंचकर पतिव्रता पत्नी ने
  पति का हाथ पकड़ा,
  पति बोला लेडीज फर्स्ट!
  प्रिय आप ही कीजिए कष्ट !
  मैं बाद में मौका देख  कूदूंगा l
✍️नकुल त्यागी, मुरादाबाद
-------------------------------------

लोकतंत्र के पर्व में ,डूबा आज बिहार !

इसी पर्व में जीत है, इसी पर्व मे हार !
न्यायाधीश जनता बनी,नेता बेवस आज ;
जिस पर जनता हो फिदा,उसकी ही सरकार !

है समाज संजीवनी,लोकतंत्र का तन्त्र !
निजता को दे सबलता,लोकतंत्र का मन्त्र !
सुख-शान्ति-समृद्धता-मंगलमय हों लोग ;
सदा सदा कायम रहे,भारत में गणतंत्र!

अज्ञान और मूर्खता की जिद को छोड़कर !
जाति अरु मजहब की दीवारों को तोड़ कर !
आओ हम सब एक बने,देर न करें
आओ सबका साथ दे, हर  एक मोड़ पर।

✍️ विकास मुरादाबादी
-----------------------------------------


कभी ठुकराये कभी दुलार करे है,
उँगली उठाये बातें हज़ार करे है,

ये दुनिया है अजीब यहाँ हर कोई,
एक दूसरे से बेवजह की रार करे है,

तुम हुस्न हो इश्क़ चाहेगा ही तुम्हें ,
कि भंवरा फूल पे जां निसार करे है,

आँधियाँ उजाड़ देती हैं इक पल में,
जो फ़सल काश्तकार तैयार करे है,

ख़ुद दे रहे दावत मौत को हम लोगों,
मिलावटखोरी अब हमें बीमार करे है,

लगे हैं इतने मक्कारियों के दाग़ चेहरे पे,
आईना भी सच दिखाने से इंकार करे है,

अच्छे कामों का सिला मिलेगा ऊपर,
जाने क्यूँ ख़ुदा इन्सां से उधार करे है,

✍️ राशिद मुरादाबादी

रविवार, 1 नवंबर 2020

सागर तरंग प्रकाशन की कृति संदर्भ ग्रंथ संकेत का लोकार्पण समारोह 29 दिसंबर 2002 को हुआ था । प्रस्तुत है आयोजन का दैनिक जागरण मुरादाबाद के 30 दिसंबर 2002 के अंक में प्रकाशित समाचार


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----मै सड़क और सांड


हमारी पत्नी के दिमाग की

ना जानें कौन सी नस कुलबुलाई

उसने हमको

खूब खरी खोटी सुनाई

कोरोना की आड़ में

सारे दिन घर में पड़े रहते हो

हर एक घंटे के बाद

किचन में खडे़ रहते हो

सुबह उठते ही

खाने में लग जाते हो

खाते खाते थककर

फिर से सो जाते हो

खाना सोना,सोना खाना

इसीके चारों ओर घूमता है

तुम्हारी जिन्दगी का ताना बाना

कविंद्र जी को देखो

घर का सारा काम करते है

बीच बीच में कविताएं भी लिखते हैं

सारा मौहल्ला उनको जानता है

आदमी कम और कवि ज्यादा मानता है

हमको लगा,कोई पड़ोसन

हमारी पत्नि को भड़का रही है

या पत्नि समझदार हो गई है

हमको सही समझा रही है

कोरोना ने सबका भला किया है

अनपढ़ और मूर्ख लोगों को भी

कवि बना दिया है

हम तो फिर भी हाईस्कूल फेल हैं

हमारे लिए ये सब

बांए हाथ के खेल हैं


लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी

जब कुछ नहीं लिख पाया 

हमने हिन्दी के प्रोफेसर

पड़ोसी को फोन लगाया

गुरु जी

व्याकरण और छंद का ज्ञान

हमारे अंदर उतार दो

कोई कविता लिखवा दो

और हमको इस संकट से उबार लो

गुरु जी बोले

ज्ञान के चक्कर में मत पड़ो

जैसा मैं कहता हूं,वैसा लिखो

शुरुआत मैं से करो

फिर जहां पर हो,वो लिखो

हमने कहा ,सड़क पर हूं

वे बोले बेधड़क,

लिख डालो सड़क

सामने क्या है

सामने एक सांड खड़ा है

फ़ौरन लिखो सांड

ये शब्द बहुत बढ़िया मिला है

आसपास क्या है

एक तरफ मंदिर

दूसरी तरफ अस्पताल

अगली लाइन में डाल दो

मंदिर और अस्पताल

अब शुरू से पढ़ो

मैं,सड़क,सांड

मंदिर और अस्पताल

आपकी ये कविता

मचा देगी धमाल

हमने कहा

ये भी कोई कविता है

ना कोई तुक है

ना कोई अर्थ निकलता है

गुरुजी बोले,ये वास्तविकता है

आजकल ऐसा ही माल बिकता है

दो चार भाड़े के टट्टू

अपने साथ रखना

वो वाह वाह करके सब संभाल लेंगे

रही अर्थ की बात

पढ़ने सुनने वाले

तुमसे ज्यादा समझदार हैं

कुछ ना कुछ अर्थ अवश्य निकाल लेंगे


✍️ डॉ पुनीत कुमार, मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना -----गरीबी की रेखा-


एक बार अकबर ने बीरबल से चुहुल की।

एक कागज पर एक रेखा खींच दी।

बोले: बीरबल, तुम बड़ी बड़ी बुद्धिमत्ता की बात करते हो।

बहुत चतुर होने का दम्भ भरते हो।

जरा इधर आओ।

बगैर छुए ही इस रेखा को बड़ी करके दिखाओ।

अब तो पूरे दरबार में शांति छा गयी।

विरोधी खेमे में खुशी की लहर दौड़ गयी।

आज तो बीरबल को हार माननी पड़ेगी।

सारी चतुराई धरी रहेगी।

लेकिन बीरबल तो बीरबल ही थे।

बुद्धि के मामले में वाकई धनी थे।

तुरन्त उस रेखा के पास एक छोटी रेखा खींच दी।

लीजिए हुजूर,  आपकी ही रेखा बड़ी की।

काश, बीरबल आज भी जीवित होते।

हमारी सरकार के बहुत काम आते।

कुछ ऐसा ही कौतुक दिखाते।

और सबको गरीबी की रेखा से ऊपर उठाते।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG - 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता


ओ,

मेरी आस्था और विश्वास

की लम्बी रेस के घोड़े

मैं,

तुझे कहाँ - कहाँ दौड़ाऊं

अगर भरी सड़क पर दौड़ाता हूँ

तो तू थक जाता है

और, यदि

खुले आसमान के नीचे 

ठंडी हवा में दौड़ाऊं तो,

तुझे सुस्ती आने लगती है

काम चोर हो जाता है

फिर,

तू ही बता तुझे कहाँ दौड़ाऊं

एक बार तुझे

विधान सभा की सड़क पर

दौड़ाया था,

तो, मुझे लेने के देने पड़ गए थे

तुझे

बड़ी मुश्किल से सम्भाल पाया था

क्योंकि,

वहाँ की आब- हवा तुझे क्या लगी

की वहां से हटने का नाम

नहीं ले रहा था,

बार - बार वहीं जाकर खड़ा 

हो जाता था ।

तुझे कैसे काबू कर पाया

यह मैं ही जानता हूँ।

जैसे - तैसे वहाँ से जान बची

तो सोचा,

कहीँ और चलकर दौड़ाऊं

 फिर  तुझे राजधानी में

लोकसभा की सड़क पर दौड़ाया

बस,फिर क्या था

तूने वहाँ कमजोर घोड़ों के उपर ही

हिनहिनाना आरम्भ कर दिया था

और,

मेरे हाथ से छूटकर ऐसा भागा

कि आज तक

 ढूंढ  रहा हूँ  हाथ नहीं आया,

राजधानी का पानी तुझे ऐसा भाया ।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

मो० 9411809222

मुरादाबाद के साहित्यकार रवि प्रकाश का गीत ----दुनिया में सबसे ऊँचे अपने सरदार पटेल



                       ( *1* )

सबसे ऊँची मूर्ति विश्व की यह जो लगी सही है 

परम   साहसी   दुनिया   में   ऐसा   दृढ़वती   नहीं  है

यह  पटेल  की  दूरदृष्टि  भारत  माता    के   गायक

शत  शत  नमन  देश का उसको  जो सचमुच जननायक

जो  रियासतें उच्छ्रंखल  थीं  उनकी  कसी नकेल

दुनिया  में  सबसे  ऊँचे  अपने   सरदार   पटेल

                          ( *2* )

यह  पटेल  थे  एकीकृत  भारत  के  नव निर्माता

यह पटेल थे जिन्हें याद करके साहस भर जाता

यह  पटेल  थे  देशभक्त  राजाओं  को   समझाया

विलय   रियासत का मृदुता से भारत में करवाया

खेला   अड़ियल   तानाशाहों   से   ताकत   का   खेल

दुनिया   में   सबसे   ऊँचे   अपने   सरदार  पटेल

                       ( *3* )

अगर  नहीं  होते   पटेल   तो   राजा .- रानी  ढोता

देश   पाँच   सौ   से   ज्यादा   राजा -रानी   का   होता

सब रियासतें अपना शासन अपना हुकम चलातीं

सभी  योजनाएँ   भारत   में   लागू   कब   हो   पातीं

परमिट - वीजा   लेकर   चलती   नागरिकों   की  रेल

दुनिया    में    सबसे    उँचे    अपने    सरदार    पटेल

                    ( *4* )

सौ- सौ होते काश्मीर जो ढ़पली अलग बजाते

दफा तीन सौ सत्तर लेकर भारत को धमकाते

भारत तो आजाद हुआ, जनता गुलाम ही रहती 

कब्जे   में   यह   राजाओं   के, सारी   दुनिया   कहती

दृढ़ता    थी     चट्टान     सरीखी  , संवादों     का   मेल

दुनिया    में    सबसे   ऊँचे   अपने     सरदार     पटेल

✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा , रामपुर  (उत्तर प्रदेश) 

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की कविता ----- बंदरबांट


सरकारी लट्टू ने

पुनः चक्कर लगाया,

और विद्यार्थियों के लिए,

दोपहर का भोजन,

आखिरकार विद्यालय में आया।

भोजन की सुलभता और पौष्टिकता,

अपना कमाल दिखाने लगी।

तभी तो गुरु जी की उपस्थिति,

विद्यालय में प्रतिदिन,

शत-प्रतिशत नजर आने लगी।

अजी! अब तो बड़े साहब भी,

अपना दायित्व बखूबी निभाते हैं।

तभी तो उनके घरेलू बर्तन,

विद्यालय की शोभा बढ़ाते हैं।

नौनिहालों का पेट,

आकाओं की नीयत,

वाह क्या मेल है।

अजी! इसके आगे तो

बंदरबांट भी फ़ेल है।

✍️ राजीव  'प्रखर', मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना --- बाकी


आँखो से उस पार ,देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

तम को चीरता प्रकाश ,अभी उसका गन्तव्य बाकी है ।

बाकी हैं, अभी और वो बहुत सारी मंजिले ।

उन मंजिलो का रहनुमा बनना अभी बाकी है ।

आँखो से उस पार ,देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

शायद इस बाकी में ही इस जीवन की सत्यता है।

तभी तो सब कुछ पाने के बाद भी कुछ बाकी है ।

माना हसरतें कभी किसी की पूरी नही होतीं।

और पूरी होने के बाद भी कुछ बाकी हैं।

आँखो से उस पार, देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है।

समय -समय की बात है ,समय -समय के साथ है ।

तभी तो समय के साथ बहुत कुछ बदलना बाकी है ।

बाकी हैं, वो बात जो अभी बाकी हैं।

तेरी -मेरी हम सबकी बात अभी बाकी हैं।

आँखो से उस पार ,देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

कहने को तो बहुत कुछ कहना अभी बाकी है ।

स्मृतियों के धुंधले पटल पर वो निशां अभी बाकी हैं।

बाकी है,उन स्मृतियों का फिर से विश्लेषण।

लौट के आ जाना वो बीता समय और ,समय के साथ उन बीते लम्हों में जीना अभी बाकी है।

आँखो से उस पार, देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की कविता ---- नर और नारी की जंग


 नर व नारी की जंग हो गई

 कौन है श्रेष्ठ बात दबंग हो गई

 नर ने अपनी बात रखी सारी

 नारी है कमजोर अबला बेचारी

 तूने ना जिंदगी नर के बिना गुजारी

 हर पल लेना पड़ा तुझे नर का ही सहारा

 हरदम है मिला तुझे नर का ही साया 

तेरी कहानी तुझ पर ही खत्म हो चली

 नारी फिर कैसे नर से श्रेष्ठ हो गई

 पूरा काल से अब तक 

ना तू अपने दम पर खड़ी हो सकी

 फिर क्यों कहती है तू नर से भी बड़ी हो चली

 मांग में सिंदूर जो हमारे नाम का सजा

 तभी तेरा अस्तित्व है कायम हुआ

 मां बनने का एहसास भी तुझे नर से ही मिला

 तभी तेरा जीवन है खुशियों से खिला

 अरे समाज में हर पहचान तुझे नर से है मिली

 नाम ही काफी है नर का फिर कैसे तू बड़ी हो चली

नारी ने उत्तर दिया जनाब का 

वेद पुराण गवाह है हर बात का

 नारी के हर दुख हर एहसास का

 जगत जननी मां दुर्गा के स्वरूप का

 आगे जिसके हाथ जोड़ देवता आए थे सभी 

कर दो देवी रक्षा द्वार तेरे देव खड़े सभी

 मां दुर्गा ने काली रूप में  संहार मचाया था 

देवताओं को भी पापी दैत्यों से बचाया था

 सभी देवों की शक्ति का रूप है नारी 

नहीं कोई कमजोर अबला बेचारी

 नर की कुंठित मानसिकता का शिकार है नारी 

नर है सर्वोपरि ऐसी अहंकारी प्रवृत्ति की मारी 

आज नर इस तरह गिर चुका है

 नारी को पल-पल कुचल रहा है

 अपना अस्तित्व बचाने को जैसे

 नारी से हर पल लड़ रहा है

 इसीलिए हर गली मोहल्ले में

 नारी की इज्जत का जैसे जनाजा निकल रहा है

नर क्या रक्षा करेगा नारी की अस्मिता की

 जिसको फिक्र है तो सिर्फ अपने अस्तित्व की 

नर होने पर गौरवान्वित हो जाता है 

फिर क्यों नारी की अस्मिता का तमाशा बनाता है

 अपने अहम की आग में स्वयं ही जल रहा है नर

 मैं हूं बड़ा कह कह कर नारी को डस रहा है नर

 नारी तो शब्द भी नर से बड़ा है

 पर इस पर भी नारी को गुमान कहां है 

कोख में नौ महीने रखती है बालक नारी

 नर को हो जाए जरा तकलीफ तो हिला दे दुनिया सारी

 नारी ना होती तो मां का आंचल पाते ही कैसे

 नारी ना होती तो गिर कर संभल पाते ही कैसे

 नारी ना होती तो जिंदगी को समझ पाते ही कैसे

 नारी ना होती तो नर कहलाते ही कैसे

 फिर कहती हूं है नर

 नारी नहीं कमजोर अबला बेचारी

 वह तो दया प्रेम ममता की मूरत है प्यारी 

दुनिया का बोझ उठाए पृथ्वी है नारी

 दुनिया को सुकून दे जाए वह हवा है प्यारी 

पर नर ना समझ पाएगा इसे 

वह स्वयं अपने अहम की आग में जले

 ऊंचा उठेगा उस दिन नर जरूर

 टूटेगा जिस दिन नर होने का गुरुर

 सीख लेगा जिस दिन नारी का करना सम्मान 

हे नर तू हो जाएगा उस ईश्वर से भी महान।


✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना -----बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर , झूमें राधा नंदकिशोर


बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर

झूमें राधा नंदकिशोर

आनंदित है सकल ब्रजमंडल

रास रचायें सब चित्तचोर ।

गोपी ग्वाले रस रंग डूबें

धुन वंशी की करे विभोर 

सुर छिड़े हैं जब प्रेम राग के

नाचे सबके ही मन मोर ।

चन्द्र किरणें खेल जल थल में 

लुभा रही हैं वे बहु जोर 

श्वेत रूप में सजी वसुंधरा

मनहु चाँद से मिली चकोर ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कविता ----मैं पुलिस हूं । उनकी यह कविता आध्यात्मिक साहित्यिक काव्यधारा ई पत्रिका के प्रवेशांक 2020 में प्रकाशित हुई थी ।




 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना -----


शरद 

पूर्णिमा रात 

अमृत बरसाता चाँद 

आती उनकी 

याद 


चाँद 

तूँ मेरा 

पहुँचा दें  संदेश 

पिया रहते 

परदेश 


रोती

विरह में 

सजनी उनकी,नीर 

नयनों से 

बहाती 

✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का गीत----आज शरद की रात ओ प्रियतम आ जाना


आज शरद की रात ओ प्रियतम आ जाना ।

सूने मन के निधिवन में सजीले मोहन

श्याम तू रास रचा जाना।।

जाने कबसे ए मोहन नीरस सी पड़ी है वेणु,

गुमसुम सी हो गई है तेरी अब श्यामा धेनु।

वही कदंब,की डाल तू तान सुना जाना।

जाने कब से यह विरहन मिलने की बाट निहारे।

जन्मों जन्मोंं की प्यासी और मन पर प्रीत संवारे।

एक झलक बस एक बूंद नैनों से श्याम पिला जाना।

आज शरद की धवल चांदनी तेरी बाट निहारे।

नखत गगन के व्याकुल होकर लुका छिपी खेलें सारे।

श्याम निभाने रीत प्रीत की भोर से पहले आ जाना।c

मुझ जोगन ने तेरे प्यार में लोक लाज विसराई है।

तन मन तेरे प्यार में डूबा प्रीत अनोखी पाई है । ।

रेखा जोगन हुई स्याम की आज दरस दिखला जाना। आज.........

✍️रेखा रानी, गजरौला

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की चार लघुकथाएं ---गैंगरेप


1.

 'भैया जी,मिठाई खिलाइए,आपके लिए बहुत अच्छी खबर लाया हूं।" चंदू दौड़ते हुए आकर,वेदप्रकाश जी से बोला।

"कौन सी खबर,जल्दी बता।" वेदप्रकाश जी ने उत्सुकता से पूछा।

"बस्ती में एक दलित लड़की का गैंग रैप के बाद मर्डर हो गया है"चंदू ने हांफते हुए बताया।

    "अरे,ये तो मिठाई नहीं,दावत वाली खबर है गैंगरेप, हत्या, दलित लड़की,क्या कमाल का समीकरण है।तूने हमारी सारी चिन्ता दूर कर दी।अगला चुनाव अब इसी मुद्दे पर लड़ा जायेगा।" वेदप्रकाश जी हंसते हुए बोले और चंदू को गले से लगा लिया।

2.

सुरेश की बड़े बाजार में जनरल आइटम्स की दुकान थी।आज सुबह से चार ग्राहक मोमबत्ती खरीद कर ले जा चुके थे।जब पांचवे ग्राहक ने भी आकर मोमबत्ती मांगी,तो उसका माथा  ठनका। "दिवाली तो अभी तीन महीने बाद है, शहर में लाइट भी लगातार आ रही है,फिर " एक अनजान भय से उसका पूरा शरीर सिहर उठा।उसने घबरा कर घर फोन मिलाया। "बिटिया कहां है"

"अभी आई है स्कूल से,खाना खा रही है"

 उसने राहत की सांस ली और दुकानदारी में लग गया।

3.

समीर अपने सात साल के बेटे विभोर के साथ बाजार से घर आ रहा था।रास्ते में कुछ युवा हाथो में मोमबत्ती लेकर,गैंग रेप पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे थे।बेटा काफी देर तक उस जुलूस को देखता रहा,फिर बोला "पापा, ये मोमबत्ती वाला त्यौहार,क्या हम रोज़ नहीं मना सकते।" समीर समझ नहीं पा रहा था कि क्या जवाब दे।उसने शर्मिंदगी से अपनी नजरें झुका लीं।

4.

अख़बार पढ़ते ही,गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया।कल उसकी संस्था ने गैंगरेप पीड़िता को शीघ्र न्याय दिलाने की मांग को लेकर शहर में,शांतिपूर्वक कैंडल मार्च निकाला था। आज अख़बार में उसकी फोटो और रिपोर्ट छपी थी।लेकिन पूरी रिपोर्ट में ना तो उसका कहीं नाम था,ना ही फोटो।उसने फोन पर इसकी शिकायत संस्था के अध्यक्ष से की।

"चिन्ता मत करो,बहुत जल्दी ऐसा मौका फिर आयेगा,और हम तुमको ही हाईलाइट करेंगे।" संस्था अध्यक्ष ने उसको समझाते हुए कहा।

✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --- अच्छी खबर


"उफ्फ... यह पेपर वाले भी न कोई ढंग की खबर छाप ही नहीं सकते ।" नेता जी ने पेपर को टेबल पर फेंकते हुए गुस्से से कहा ।

"सारी अच्छी ही तो खबर हैं साहब.... आज के पेपर में कोई भी बुरी खबर नहीं है ।" आदतन करीमन बाई ने पोछा निचोड़ते हुए कहा.

"इसे बोलने को कौन कहता है... चुप... नेताजी गुस्से से आग बबूला होते हुए अपनी धर्मपत्नी से बोले. अपनी डाट सुनकर करीमन चुप हो गई और जल्दी जल्दी पोछा लगाने लगी. सोचती जा रही थी कि आज सुबह जब उसने पेपर पढ़ा घर के बाहर से उठाते हुए तब तो कोई भी बुरी खबर नहीं थी. न किसी का अपहरण न चोरी डकैती, न खून और न ही धोखा धड़ी.... और कोई बलात्कार भी नहीं... छी l"

"टी. वी. ऑन तो कीजिए नेता जी देखिए... ।" बनवारी लाल छुटभैये ने खुशी से घर में घुसते ही चिल्लाते हुए कहा l

खबर देखकर नेता जी के  चेहरे पर रौनक ही छा गई.

बनवारी गाड़ी निकालो आज ही हमें इस गांव जाकर बलात्कार पीड़ित परिवार वालों को  सहानुभूति देकर अपने प्रतिद्वंदी को सत्ता से उतार कर कुर्सी छीननी ही है l

खुश होते हुए दोनों बाहर चले गए.

करीमन को अच्छी खबर की जानकारी आज हुई.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा -----सत्ते पे अट्ठा

 


मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया शर्मा जी बाजार से घर का सामान लेकर लौटे तो देखा श्रीमती जी सास बहू सरीखा धारावाहिक देख रहीं थीं।

पति महोदय भड़क गये। "कूलर के साथ पंखा चल रहा है दिन में तीन तीन लाइट जल रहीं हैं, बिजली की बर्बादी हो रही है, इतना बिल भरना मेरे बस की बात नहीं।"

पत्नी , पति की बकवास बड़े शान्त भाव से सुनती रहीं।भड़ास निकाल कर शर्मा जी अपने कमरे में चले गए।

    करीब घण्टे भर बाद शर्मा जी उठे और सबमरसिबल चला कर अपनी बाईक धोने लगे। पानी थोड़ी देर चलकर बंद हो गया।तभी उनकी छ:वर्षीय पुत्री बाल्टी और जग लेकर आयी। शर्मा जी उसे आश्चर्य से देख रहे थे।उनकी नजर घूमी तो सामने दरवाजे पर पत्नी तनी खड़ी थी।

"पापा, ये आपके लिए। " बेटी एक कागज का पुर्जा उन्हें थमा कर चली गई। लिखा था---

"मिस्टर देवव्रत शर्मा जी

कितने लीटर पानी बरबाद करोगे? 

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

अब उपदेश तुम्हारे न मेरेे"

           आपकी राधा

पढ़कर शर्मा जी ने बाल्टी जग उठाये और अपने काम पर लग गए।

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ----शांति


"एक  कप चाय बना देना जरा।" ऑफिस से दिन भर काम करके आए हुए शर्मा जी ने अपनी पत्नी की तरफ देख कर प्यार से  कहा।

 "हां ठीक है"  श्रीमती जी ने हामी भरी और कहा "आप जल्दी से यह सामान ला कर दो और देख लेना लिस्ट ठीक से चेक कर लेना कोई सामान रह ना जाए तुम तो हमेशा  कुछ ना कुछ भूल ही जाते हो" कहते हुए श्रीमती जी ने सामान की लिस्ट शर्मा जी के हाथ में पकड़ा दी।

 चाय पीने की इच्छा तो काफूर हो गई बेचारे सामान की लिस्ट लेकर बाहर निकल गए। सारा सामान लेकर शर्मा जी डेढ़ घंटे बाद पुनः घर में प्रवेश करते हैं। चीख-पुकार की आवाज आती है श्रीमती जी की "पूरे दिन बच्चे मेरा दिमाग खा जाते हैं। मैं तो थक जाती हूं परेशान हो जाती हूं और एक काम वाली है उसको भी बार बार बताना पड़ता है कि काम ठीक तरीके से किया कर लेकिन नहीं साहब यहॉं सभी लाट साहब बने हुए हैं। मैं हीं घर में पिसती हूं पूरा दिन बच्चे देखूं, काम देखूं, कपड़े देखूं, खाना देखूं और एक ये है कि इन्हें ऑफिस से आते ही चाय सूझने लगती है।" यह सब बोलते हुए श्रीमती जी बच्चों के ऊपर अच्छा खासा गुस्सा निकाल रही थी।  पर पता नहीं गुस्सा किस बात का था। यह तो उनका प्रतिदिन का नियम सा था  कि सब के ऊपर चीख चीखकर अपनी थकान जैसे मिटा रही हो।  

शर्मा जी चुपचाप सारा सामान किचन में रखकर अतिथि कक्ष में चुपचाप शांति की अपेक्षा में बैठ  जाते हैं । आंखें बंद करके अपने ही घर में एक ऐसा कोना ढूंढते हैं जहां उन्हें कुछ क्षण शांति के मिल सके पर अफसोस पुन:  श्रीमती जी की आवाज आती है कहां गए अभी इसे रोहन को संभालो तो मैं खाना बना दूं जल्दी से़़़़़़़़़़़।

✍️मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ---रोटी का मोल


निधि की आँखों में आँसू थे ,वो यही सोच रही थी, कि क्या कभी की कही बातें सच हो जाती है।बचपन में रोटी छोडऩे पर माँ कहती, रोटी छोड़ा नही करते है।बहुत मेहनत से मिलती है, रोटी के लिए तो आदमी इधर से उधर मारा मारा फिरता है।आज इस कोरोना काल में माँ की यही आवाज निधि के कानों में गूंज रही थी।पति की नोकरी छूट चुकी थी, उसे खुद आधा वेतन मिल रहा था।जैसे तैसे तीन बच्चों के साथ घर का गुजारा हो रहा था।आज उसे सचमुच रोटी का मोल पता चल रहा था।

✍️डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा -----एक पत्र मां के नाम


मेरी प्यारी माँ,

सादर प्रणाम, 

समझ नहीं  आ रहा क्या लिखूँ?आपके जीते जी मैंने आपको कभी खत नहीं  लिखा। आज यह पहला खत लिख रही हूँ। आप मुझे बुलाया करती थीं। लेकिन मैं कभी परिवार ,कभी बच्चों की पढा़ई,कभी सास की बीमारी में  ऐसी उलझी की आपसे मिलने बहुत कम आ पाती  थी। जब मैंअपनी मजबूरी बताती थी तब आप कहती थीं, "ठीक  है बेटा! मत आओ अपने परिवार में खूब खुश रहो" आज भी मुझे याद है भाई  दूज से पहले पड़वा का वो दिन  आपने फोन किया और कहा था, तुमसे मिलने को बहुत मन हो रहा है भाई- दूज पर आ जाओ। 

मैंने आपको कहा, "मम्मी मैं नहीं  आ पाऊँगी भाई दूज का टीका करने मेरी ननद आ रही हैं।" आपने गुस्से में यह कहकर कि मत आओ फोन कट कर दिया था। मेरे दोबारा  मिलाने पर भी नहीं उठाया था।अगले दिन में मेरे घर ननद-ननदोई के आ जाने की वजह से मैं  आपको फोन नहीं  मिला पायी।

तीज के दिन  सुबह चार बजे फोन की घन्टी घनघनाई और भाई ने बुरी खबर सुना दी, " 'चुनमुन'  मम्मी नहीं  रहीं" सच कहती हूँ मम्मी! मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी।मैंने भाई को बोला, "तुम झूठ क्यों बोल रहे हो।"

एक ही झटके में मेरी व्यस्तता समाप्त हो गयी और मैं  दौड़ पडी़ आपसे मिलने। मैंने आपको बहुत जगाया पर आप नहीं  जगीं।  आप ऐसी नाराज हुयीं कि आपने मुझसे फिर  कभी बात ही नहीं  की। सात साल हो गये आपको गए खुद को कसूरवार  मानती हूँ। काश! आपके बुलाने पर पहले ही दौड़ जाती तो आपसे बात  तो कर पाती। 

माँ! एक विशेष बात आपको बताना है, मैंने साहित्य  पथ चुन लिया है।साहित्य में नित नवीन उपलब्धियाँ हाँसिल करके आपकी 'चुनमुन' आपका नाम रोशन कर रही है।

 जब सब यह कहते हैं कि विमला की छोरी तो खूब नाम कमा रही है।मेरा सीना गर्व से फूल जाता है,और खुशी होती है मेरी मम्मी का नाम मेरे कारण आदर से लिया जा रहा है।मैंने किसी को आपको भुलाने नहीं  दिया।बस अफसोस इस बात  का है कि आपको अपने प्रतीक चिह्न  न दिखा सकी। यह सब आपके जाने के बाद  ही शुरू किया। लेकिन मैं जानती हूँ आप जहाँ  भी हो अपना आशीर्वाद मुझे  भेज रही हो, और मेरे लिए  खुश हो रही हो। आपके आशीष से ही मुझे सफलताएँ प्राप्त हो रही हैं। बस एक बार माँ! मेरे सपने मैं ही आकर मुझसे बात कर लो।"

        आपसे एक बार बात करने की इच्छा में 

           आपकी अपनी चुनमुन

✍️रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ------काली आंखें

 


गंगा शरद् ॠतु में अपने शान्त स्वभाव में बहते हुए मन में शान्ति अनुभव करती प्रतीत हो रही थी ।जैसे निर्मल मन वाली कोई पवित्र आत्मा । गंगा भी हम जैसे मानवों के कलुष धोने के लिए धरती पर परोपकार करने के लिए ही प्रकट हुई है ।।गंगा के परोपकार की यात्रा अनवरत चल ही रही है लेकिन हमारे प्रयासों में आज तक कोई सच्चाई नही आई ।इंसानों की इतनी तामसिकता ही आपदाओं का बुलावा है ।तो... बात मैं, कर रही थी हमारी कुत्सित और कुंठित भावनाओं की और गंगा के तट पर बैठे -बैठे आज एकाएक मुझे अतीत की स्मृति हो आयी । पावन नदियों के किनारे स्त्री पुरुष बालक बालिकाएँ, किशोर किशोरियाँ आबाल वृद्ध ,अमीर गरीब सब एक तट पर ही समान्यतः स्नान करते रहें हैं और किस पुरुष की निगाहें क्या देख रही रहीं हैं वह उसके संस्कारों पर ही निर्भर है या दैव कृपा पर । गंगा माँ तो अपने सभी प्रकार के बच्चों को समान भाव से अभिसिक्त करती है तो आज तट पर बैठे हुए चारों तरफ वो काली निगाहें साथ चलने लगीं । मम्मी पापा के साथ फैमिली ट्रिप पर मैं गंगा स्नान के लिए आयी थी और साथ में पापा पड़ोसी के किसी रिश्तेदार को भी साथ में गंगा -स्नान कराने के लिए ले आए थे । ग्यारह -बारह साल की उम्र में किसी बालिका को इतनी तमीज नही होती कि वह किसी गलत बात का विरोध कर सके या किसी को वह बात बता सके लेकिन नाव में बैठे बैठे एकटक देखते रहना और नजर पडते ही ऐसे रियक्ट करना कि जैसे चोरी पकड़ी गई हो ।बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन क्या कह सकते थे ।फिर गंगा स्नान के बाद जैसे ही कपड़े बदलने के लिए कुटिया में आयी तो लगा कुटिया की दीवार से कोई आंखें नजरें गड़ाए हुए हैं ।मेरी जान निकल रही थी कौन है वहाँ ? कौन है वहाँ ?? और जल्दी जल्दी चेंज कर के मम्मी के पास भागी । फिर अगले दिन वही डर । लेकिन मम्मी से कह नही पायी ।फिर पुनः वही काली आकृति । जोर से चीखी तब कुछ अश्लील से शब्द । घबराहट के मारे शीघ्रता से बाहर निकली तो देखा कि वही व्यक्ति जो हमारे साथ आया था वही तेजी से वहाँ निकला और भागा ।जाकर मम्मी को बताया तो मम्मी ने सान्त्वना दी सहलाया लेकिन उस समय कुछ कहा नही लेकिन उन आँखों की भयावहता आज भी सिहरन पैदा कर देती है और मन में एक ग्लानि का भाव ।आज तो बच्चों को हम अच्छे स्पर्श और गन्दे स्पर्श के बारे में समझातें हैं और उन्हें अलर्ट करतें हैं । इतनी हिम्मत हमारे समाज ने पैदा कर ली है और यह जरूरी भी है ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा ।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---सिसकती सड़क


आज पहली बार अवसर मिला था  अवनि को अपने मंगेतर के साथ घूमने फिरने का।दो महीने शेष हैं शादी में । अमनदीप  आधुनिक विचारों का अठ्ठाईस वर्ष का युवक जो अवनि को अपने कल्पना लोक में लेकर विचरण करता है ।आज अवनि उसके आग्रह को टाल न सकी ।मन के किसी कोने में दबी हुई उसकी भी इच्छा साकार रूप लेने लगी । वह न जाने क्यों आज इतनी ढीठ हो रही थी ।मां और पिता जी को भी उसने समझा दिया कि वह एक घंटे में वापस आयगी । बाइक पर प्रेमिका के साथ लम्बी ड्राइव पर जाने का सपना आज साकार होता देख अमनदीप खुशी से पागल था । दो प्रेमी ,इतनी नजदीकी में बाबले हो गये ।तेज रफ्तार में उनके दिलों की धडकने तेज हो उठीं।कहाँ जाना है ,इसका  विस्मरण ही हो गया । अचानक अमनदीप को तेज झटका लगा ।अवनि की बाहों का पाश अचानक ढीला हो गया ।सन्ध्या के धुंधले कुहरे में अवनि चीख पड़ी ।बाइक फिसल कर सड़क के किनारे पर चली गई ।अमनदीप के माथे से लहु वह निकला ।अवनि की रुह काँप उठी ।मेरे मनभावन, यह कहकर वह रोती हुई अमनदीप से लिपट गई ।

दुपट्टे को माथे पर बाँधकर उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया।

किसी तरह घर पर फोन लगाया और मां को सब बात बताई ।भाई और पिता गाड़ी लेकर पहुंच गये ।अस्पताल में अमनदीप के सिरहाने बैठी अवनि मन ही मन अपनी अनुशासन हीनता और नासमझी के लिये स्वयं को दोषी मानने लगी । काश!कि उसने अमनदीप को समझाया होता। ईश्वर आपको धन्यवाद।आपने मेरी लाज बचा ली । अपनी सिसकियों के बीच आज अवनि। सड़कों की मनहूसियत में मनुष्यों के कृत्यों का विश्लेषण करने लगी ।सिसकती  सड़क ,मानो अभी भी उससे क्षमा याचना कर रही थी ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा -----बुढ़ापे का बचपन


शाम के आठ बजे गये थे। दीनानाथ की पत्नी ने रसोई से ही आवाज लगायी, खाना रख दिया है जल्दी आ जाओ। दीनानाथ तुरंत हाथ धोकर खाने की मेज पर आ गये। रोज की तरह पूछा;अम्मा को खाना खिला दिया। हाँ,  उन्हें खाना दे तो आयी हूं, कह रही थीं, भूख नहीं है।

अरे, ऐसे कैसे-भूख नहीं है, कहते हुए दीनानाथ उठे और अम्मा के कमरे में जाकर बोले, खाना खा लो अम्मा, खाना रखा है। 

ना लल्ला,  मुझे भूख नहीं लग रही, अम्मा तुरंत बोलीं।

अरे ऐसे कैसे भूख नहीं है। कुछ तो खाना पड़ेगा। 

नहीं बिल्कुल भूख नहीं है। 

अरे आपने अभी कुछ खाया थोड़े ही है, ऐसे तो कमजोरी आ जायेगी, बिस्तर से भी नहीं उठा पाओगी,  फिर बोतल चढ़वानी पड़ेगी।  थोड़ा थोड़ा खाओ,  भूख भी लगने लगेगी, कहते कहते दीनानाथ ने अम्मा को अपने हाथ से कौर दिया। बोतल चढ़ने के डर से अम्मा भी चुपचाप खाने लगीं।

उधर दीनानाथ अपने बचपन में पहुँच गया था, जब वह किसी न किसी बहाने खाना खाने से जी चुराता था, और अम्मा इसी तरह से बहला फुसला कर उसे खाना  खिलाती थीं। सोचते-सोचते वह बुदबुदा उठा, सच ही कहा है, बुढ़ापे में व्यक्ति फिर से बच्चा बन  जाता है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल नंबर 9456641400