सरकारी लट्टू ने
पुनः चक्कर लगाया,
और विद्यार्थियों के लिए,
दोपहर का भोजन,
आखिरकार विद्यालय में आया।
भोजन की सुलभता और पौष्टिकता,
अपना कमाल दिखाने लगी।
तभी तो गुरु जी की उपस्थिति,
विद्यालय में प्रतिदिन,
शत-प्रतिशत नजर आने लगी।
अजी! अब तो बड़े साहब भी,
अपना दायित्व बखूबी निभाते हैं।
तभी तो उनके घरेलू बर्तन,
विद्यालय की शोभा बढ़ाते हैं।
नौनिहालों का पेट,
आकाओं की नीयत,
वाह क्या मेल है।
अजी! इसके आगे तो
बंदरबांट भी फ़ेल है।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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