शाम के आठ बजे गये थे। दीनानाथ की पत्नी ने रसोई से ही आवाज लगायी, खाना रख दिया है जल्दी आ जाओ। दीनानाथ तुरंत हाथ धोकर खाने की मेज पर आ गये। रोज की तरह पूछा;अम्मा को खाना खिला दिया। हाँ, उन्हें खाना दे तो आयी हूं, कह रही थीं, भूख नहीं है।
अरे, ऐसे कैसे-भूख नहीं है, कहते हुए दीनानाथ उठे और अम्मा के कमरे में जाकर बोले, खाना खा लो अम्मा, खाना रखा है।
ना लल्ला, मुझे भूख नहीं लग रही, अम्मा तुरंत बोलीं।
अरे ऐसे कैसे भूख नहीं है। कुछ तो खाना पड़ेगा।
नहीं बिल्कुल भूख नहीं है।
अरे आपने अभी कुछ खाया थोड़े ही है, ऐसे तो कमजोरी आ जायेगी, बिस्तर से भी नहीं उठा पाओगी, फिर बोतल चढ़वानी पड़ेगी। थोड़ा थोड़ा खाओ, भूख भी लगने लगेगी, कहते कहते दीनानाथ ने अम्मा को अपने हाथ से कौर दिया। बोतल चढ़ने के डर से अम्मा भी चुपचाप खाने लगीं।
उधर दीनानाथ अपने बचपन में पहुँच गया था, जब वह किसी न किसी बहाने खाना खाने से जी चुराता था, और अम्मा इसी तरह से बहला फुसला कर उसे खाना खिलाती थीं। सोचते-सोचते वह बुदबुदा उठा, सच ही कहा है, बुढ़ापे में व्यक्ति फिर से बच्चा बन जाता है।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर 9456641400
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