ओ,
मेरी आस्था और विश्वास
की लम्बी रेस के घोड़े
मैं,
तुझे कहाँ - कहाँ दौड़ाऊं
अगर भरी सड़क पर दौड़ाता हूँ
तो तू थक जाता है
और, यदि
खुले आसमान के नीचे
ठंडी हवा में दौड़ाऊं तो,
तुझे सुस्ती आने लगती है
काम चोर हो जाता है
फिर,
तू ही बता तुझे कहाँ दौड़ाऊं
एक बार तुझे
विधान सभा की सड़क पर
दौड़ाया था,
तो, मुझे लेने के देने पड़ गए थे
तुझे
बड़ी मुश्किल से सम्भाल पाया था
क्योंकि,
वहाँ की आब- हवा तुझे क्या लगी
की वहां से हटने का नाम
नहीं ले रहा था,
बार - बार वहीं जाकर खड़ा
हो जाता था ।
तुझे कैसे काबू कर पाया
यह मैं ही जानता हूँ।
जैसे - तैसे वहाँ से जान बची
तो सोचा,
कहीँ और चलकर दौड़ाऊं
फिर तुझे राजधानी में
लोकसभा की सड़क पर दौड़ाया
बस,फिर क्या था
तूने वहाँ कमजोर घोड़ों के उपर ही
हिनहिनाना आरम्भ कर दिया था
और,
मेरे हाथ से छूटकर ऐसा भागा
कि आज तक
ढूंढ रहा हूँ हाथ नहीं आया,
राजधानी का पानी तुझे ऐसा भाया ।
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
मो० 9411809222
बहुत सुन्दर।
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