शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ---रोटी का मोल


निधि की आँखों में आँसू थे ,वो यही सोच रही थी, कि क्या कभी की कही बातें सच हो जाती है।बचपन में रोटी छोडऩे पर माँ कहती, रोटी छोड़ा नही करते है।बहुत मेहनत से मिलती है, रोटी के लिए तो आदमी इधर से उधर मारा मारा फिरता है।आज इस कोरोना काल में माँ की यही आवाज निधि के कानों में गूंज रही थी।पति की नोकरी छूट चुकी थी, उसे खुद आधा वेतन मिल रहा था।जैसे तैसे तीन बच्चों के साथ घर का गुजारा हो रहा था।आज उसे सचमुच रोटी का मोल पता चल रहा था।

✍️डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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