शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा -----सत्ते पे अट्ठा

 


मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया शर्मा जी बाजार से घर का सामान लेकर लौटे तो देखा श्रीमती जी सास बहू सरीखा धारावाहिक देख रहीं थीं।

पति महोदय भड़क गये। "कूलर के साथ पंखा चल रहा है दिन में तीन तीन लाइट जल रहीं हैं, बिजली की बर्बादी हो रही है, इतना बिल भरना मेरे बस की बात नहीं।"

पत्नी , पति की बकवास बड़े शान्त भाव से सुनती रहीं।भड़ास निकाल कर शर्मा जी अपने कमरे में चले गए।

    करीब घण्टे भर बाद शर्मा जी उठे और सबमरसिबल चला कर अपनी बाईक धोने लगे। पानी थोड़ी देर चलकर बंद हो गया।तभी उनकी छ:वर्षीय पुत्री बाल्टी और जग लेकर आयी। शर्मा जी उसे आश्चर्य से देख रहे थे।उनकी नजर घूमी तो सामने दरवाजे पर पत्नी तनी खड़ी थी।

"पापा, ये आपके लिए। " बेटी एक कागज का पुर्जा उन्हें थमा कर चली गई। लिखा था---

"मिस्टर देवव्रत शर्मा जी

कितने लीटर पानी बरबाद करोगे? 

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

अब उपदेश तुम्हारे न मेरेे"

           आपकी राधा

पढ़कर शर्मा जी ने बाल्टी जग उठाये और अपने काम पर लग गए।

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

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