वोट देने हेतु
आस्तीन से पसीना
पोंछता कतार में लगा
भारतीय नागरिक
अपने अधिकारों की लड़ाई
हर बार हारा है ।
वह कल भी
असहाय बेचारा था,
वह आज भी,
असहाय बेचारा है ।।
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तीन चौके पन्द्रह
का हिसाब बैठा कर ,
गुणा भाग कर।
कच्चा- पक्का
हिसाब आ गया।
मेरी गली का गुंडा
सत्ता पा गया ।।
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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भावनाओं का तिरस्कार नहीं होना था।
क्रोध को प्रेम का आधार नहीं होना था।।
जब था विश्वास का सम्बंध तो हरगिज़ तुमको।
बेवफा़ई का तरफ़दार नहीं होना था।।
इक ज़रा बात पे मस्तक पे न बल डालने थे।
अपने लोगों से ये व्यवहार नहीं होना था।।
होली और ईद तो बस पर्व हैं सद्भावों के।
रक्त रंजित कोई त्यौहार नहीं होना था।।
ये विरह-वेदना दलदल की तरह लगती है।
दुख के सागर को यूँ मंझधार नहीं होना था।।
तुझ को करनी थी जो समझौते की बातें मुझ से।
तेरे वचनों में अहंकार नहीं होना था।।
मन के घावों पे मेरे, दृष्टि तेरी पड़नी थी।
तेरे अधरों को यूँ तलवार नहीं होना था।।
कैसा अनुरोध? कि मन रिक्त था इच्छाओं से।
दान में प्रेम भी स्वीकार नही होना था।।
बंदिशें भावों पे और शब्दों पे पहरे 'मीना'।
लेखनी पर ये मेरी भार नहीं होना था।।
✍️ मीना नक़वी
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कदम-कदम पर स्वर्ग-नर्क है,
स्वयं धरा पर बसा हुआ,
नेकी करो नेकियां पा लो,
दंड बदी से कसा हुआ।
ऊपर कुछ भी नहीं कहीं पर,
नहीं धाम वैकुंठ वहाँ,
धर्मों के दलदल में मानव,
डूबा है आकंठ यहाँ,
ज्ञानी भी खुद अंधकार के,
लगता दुख में धसा हुआ।
कदम-कदम पर---------------
धर्मराज को किसने देखा,
मिले नहीं यमराज कहीं,
वेदों की रचना करते भी,
दिखे नहीं गजराज कहीं,
अपने बुने जाल में मानव,
बुरी तरह से फसा हुआ।
कदम-कदम पर---------------
स्वागत होता हो फूलों से,
महके राह दुआओं से,
जीवन का क्षण-क्षण महका हो,
शीतल शुद्ध हवाओं से,
यही स्वर्ग है इसमें लगता,
जीवन का सुख बसा हुआ।
कदम-कदम पर----------------
अहित चाहने वाला प्राणी,
दानव दुष्ट कहाता है,
सरे राह वह इसी धरा पर,
रोज़ जूतियां खाता है,
यही नर्क है, जब अपना ही,
लगता खुद से कटा हुआ।
कफम-कदम पर-----------------
स्वर्ग - नर्क सब बेमानी हैं,
इसको विसरा कर देखो,
जैसी करनी वैसी भरनी,
का सच अपनाकर देखो,
पेच बुद्धि का ढीला कर लो,
जो स्वार्थ में कसा हुआ।
कदम-कदम पर-----------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
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कुंडलिया
गृहणी करवा चौथ पर, रखती हैं उपवास।
पतियों की दीर्घायु की, लिए ह्रदय में आस।।
लिए ह्रदय में आस, कठिन व्रत धारण करतीं।
रहे अखंड सुहाग, कामना ये ही रखतीं।।
हों भूमिजा प्रसन्न, रहें चिर मंगलकरणी।
यही कृष्ण की आस, रहे चिरजीवी गृहिणी।।
गज़ल
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पत्थरों सा जो हो गया होता।
आज मैं भी खुदा हुआ होता।
फूल ये इस तरह न मुरझाता।
प्यार से आपने छुआ होता।।
हम अँधेरों से पार पा लेते।
एक भी दीप यदि जला होता।
आपने यदि हवा न दी होती।
जख्म फिर से न ये हरा होता।
कंटकों से न घर सजाते तो।
आज दामन न ये फटा होता।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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जिंदगी तो एक दरिया खूब न्हाना चाहिए,
और उसकी धार में गोते लगाना चाहिए।
जिंदगी गफलत नहीं है जिंदगी जीवंत है,
जिंदगी में हर खुशी को अब मनाना चाहिए।
खार औ कांटें मिलें तो गम कभी करना नहीं,
सीखकर लघु कंटकों से मार्ग पाना चाहिए।
जिंदगी बंजर नहीं है जिंदगी उपजाऊ' है,
हसरतों के फूल दिल में भी उगाना चाहिए।
नफरतों को छोडकर सब गीत अब गायें नया,
प्यार से मिलकर रहें हम वो जमाना चाहिए।
भीड़ जिसपर भी पड़े तो हम मदद उसकी करें,
कर्म कुछ सदभाव के कर प्रीति पाना चाहिए।
हों अगर माॅयूसियाॅ तो त्याग दें उनको तनिक,
और रसमय भाव से नवगीत गाना चाहिए।
जब कभी हो गमजदा तो मुस्कुरा कर देखिए,
खुद हॅसो अरु दूसरों को भी हॅसाना चाहिए।
✍️ अटल मुरादाबादी
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बिताकर वर्ष आया
दीपावली का त्योहार
बढ़े सुख समृद्धि आपकी
और आपस में बढ़े प्यार
दीप जलें खुशियों के
दुखों का हो दूर अंधकार.
आनंदित हो पर्व मनाएं
शुभकामना करें स्वीकार
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8 जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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न जाने किस भँवर में ज़िन्दगी है
ठहाके मौन हैं ग़ायब हँसी हैनहीं परछाईयाँ तक साथ देतीं
इसी का नाम शायद बेबसी है
भटकती है दिशा से वो यक़ीनन
नदी जब भी किनारे तोड़ती है
चलीं तूफ़ान बनकर आँधियाँ जब
परिन्दों ने नई परवाज़ की है
हुई है मौत जिसकी तिश्नगी में
उसी की आँख में अब तक नमी है
मिलेगी कोशिशों से ही सफलता
यही हमको बड़ों ने सीख दी है
कहेगा सच हमेशा तल्ख़ियों से
तभी तो आँख की वह किरकिरी है
दुआएँ अब असर करती नहीं क्यों
हमारी ही कहीं कोई कमी है
✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम',मुरादाबाद
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दूर हटाने के लिये, अन्तस से अँधियार।
करे अमावस हर बरस, दीपों से शृंगार।।
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निद्रांचल को छोड़ कर, दिनकर ने दी डाल।
प्राची-पट पर प्रेम से, पुनः चुनरिया लाल।।
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मानुष-मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत गया संग्राम।।
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दीपक रूपी सत्य को, करके अंगीकार।
चलो मनायें साथियो, अब झिलमिल त्योहार।।
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अपने मीठे-मीठे गीत सुनाती रहना।
सबके मन को इसी तरह हर्षाती रहना।
माना यह उपवन भी तुमने पीछे छोड़ा,
प्यारी चिड़िया चीं-चीं करने आती रहना।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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आओ चलें वनों की ओर
जहाँ सुरीली होती भोर
खग समूह मिल सुर लगाते
खोल पंख उमंग दिखाते
नाचे मस्ती में है मोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।
प्रथम पहर में रवि किरण ने
नरम धूप की पकड़ी डोर
पात चमक उठे ज्यों झालर
उछल रहे पेड़ पर वानर
एक छोर से दूजे छोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।।
दिन दहाड़े गज चिंघाड़े
भालू बजा रहे नगाड़े
मृग नाचते ता ता थैया
मनहु सब हैं भैया भैया
चारों ओर खुशी का शोर
आओ चलें वनों की ओर ।
घूम रहे सिंह गरजते
सब जीव दल जान बचाते
कहीं शिकार कहीं शिकारी
सोच एक से एक भारी
लगी जीतने की है होर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।
✍️ डॉ रीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
एन के बी एम जी कॉलेज ,
चन्दौसी (सम्भल)
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बिखरे मोती तुमने गूँथे ,दी मजबूती माल को ।
मिलकर आओ नमन करें हम ,उस भारत के लाल को ।
लौह पुरूष जिनकी है उपमा ,
अथाह देश से प्यार था ।
सही अर्थ में मेरे देश में ,एक यही सरदार था ।
समग्र राष्ट्र को तुमने जोड़ा ,पौरुष जहाँ अपार था ।
एक देश का सबल राष्ट्र का ,किया स्वप्न साकार था ।
यश की कान्ति सतत चूमती भारत माँ के भाल को ।
मिलकर आओ*********
हे क्रांति वीर बिस्मार्क देश के ,
तुमने हमको समझाया है ।
एक रहेगें खूब फलेंगे हमको
यह पाठ पढाया है ।
देश से ऊपर धर्म न कोई ,जनजन ने अब गाया है ।
नमन ह्रदय से करें आज फिर
नहीं तुमको कभी भुलाया है ।
सदा आपकी रही जरूरत ,मेरे देश विशाल को ।
मिलकर आओ*****
✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद
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बहाया था दरिया वफ़ाओं का हमने।
कि तोड़ा गुमाँ भी घटाओं का हमने।।
मयस्सर हुआ जो भी उसमें रहे खुश।
न माँगा ज़खीरा दुआओं का हमने।।
हुआ जब से मशगूल अपनी दिशा में।
न देखा है जलवा अदाओं का हमने।।
गुलों से ये बुलबुल भी कहती है हँसकर।
सजाया है दामन फ़ज़ाओं का हमने।।
हमेशा ही "आनंद" दुश्मन को अपने।
दिया प्यार फिर फिर दुआओं का हमने।।
✍️अरविन्द कुमार शर्मा "आनंद", मुरादाबाद
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राम राज आया है यही क्या,हम तुम जो बीमार हुए?
तन से तो बीमार थे पहले अब मन भी बीमार हुए।
भ्रात बन्धु के सारे रिश्ते पल मे तारम तार हुए,
देख जगत की हालत ऐसी राम शर्मसार हुए।
जात धर्म के नशे मे केवल आपस मे तकरार हुए,
आज अखण्ड भारत के टुकड़े होने को तैयार हुए।
राम नाम बस कंठों तक ही हाथों मे तलवार हुए,
आज संकट मे हर बेटी, हर घर और संसार हुए।
नोच रहे हैं जालिम बोटी, गिद्धों से बेकार हुए
युवा पीढ़ी पतन को निश्चित कुछ ऐसे आसार हुए।
क्या तरक्की मुल्क की ऐसे, अनसुनी दरकार हुए
कैसे आका अफसर कैसे , फरियादी लाचार हुए।
भेद वर्गों के मिट जाते पर इन पर ही व्यापार हुए,
एक अबला असहाय पर कितने व्यभिचार हुए।
इश्क का जो दम भरते थे, भँडुए सब दिलदार हुए
जिसके नही बहन कोई बेटी ऐसी तो सरकार हुए।
सच को जो पर्दे मे रखते ऐसे तो पत्रकार हुए,
गृह क्लेश ये निबटे कैसे लड़ने सब बेकरार हुए।
बैरभाव जहां मिट जाए तो आपस मे फिर प्यार हुए,
प्रेमी बन कर रहने वाले जन सभी लाचार हुए।
✍️ इंदु ,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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आओ ! चले उस बाग में
जहाँ फूलों की कलियाँ खिली हुई हो
पंछी मंद-मंद मुस्कुरा रहे हों
कोमल पवनें लहरा रही हों
भौंरों की आँखें कुम्भला रहीं हैं
कोयल मधुर संगीत गा रहीं हो
आओ ! चलें उस बाग में
जहाँ चेहरों पर खुशियाँ खिली हुई हो
✍️प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार ,मुरादाबाद
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एक दिन नव दंपति में हो गई लड़ाई!
पत्नी ने मार दी फेंक कर
चूल्हे पर रखी तेल से भरी कढ़ाई
पति भी बहुत बड़बड़ाया,
पत्नी भी बहुत बड़बड़ाई
दोनों ने निश्चय किया
चलो डूबकर मरेंगे,
आखिर एक दूसरे को तंग तो नहीं करेंगे
कुएं पर पहुंचकर पतिव्रता पत्नी ने
पति का हाथ पकड़ा,
पति बोला लेडीज फर्स्ट!
प्रिय आप ही कीजिए कष्ट !
मैं बाद में मौका देख कूदूंगा l
✍️नकुल त्यागी, मुरादाबाद
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लोकतंत्र के पर्व में ,डूबा आज बिहार !
इसी पर्व में जीत है, इसी पर्व मे हार !
न्यायाधीश जनता बनी,नेता बेवस आज ;
जिस पर जनता हो फिदा,उसकी ही सरकार !
है समाज संजीवनी,लोकतंत्र का तन्त्र !
निजता को दे सबलता,लोकतंत्र का मन्त्र !
सुख-शान्ति-समृद्धता-मंगलमय हों लोग ;
सदा सदा कायम रहे,भारत में गणतंत्र!
अज्ञान और मूर्खता की जिद को छोड़कर !
जाति अरु मजहब की दीवारों को तोड़ कर !
आओ हम सब एक बने,देर न करें
आओ सबका साथ दे, हर एक मोड़ पर।
✍️ विकास मुरादाबादी
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कभी ठुकराये कभी दुलार करे है,
उँगली उठाये बातें हज़ार करे है,
ये दुनिया है अजीब यहाँ हर कोई,
एक दूसरे से बेवजह की रार करे है,
तुम हुस्न हो इश्क़ चाहेगा ही तुम्हें ,
कि भंवरा फूल पे जां निसार करे है,
आँधियाँ उजाड़ देती हैं इक पल में,
जो फ़सल काश्तकार तैयार करे है,
ख़ुद दे रहे दावत मौत को हम लोगों,
मिलावटखोरी अब हमें बीमार करे है,
लगे हैं इतने मक्कारियों के दाग़ चेहरे पे,
आईना भी सच दिखाने से इंकार करे है,
अच्छे कामों का सिला मिलेगा ऊपर,
जाने क्यूँ ख़ुदा इन्सां से उधार करे है,
✍️ राशिद मुरादाबादी
सराहनीय आयोजन
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