हमारी पत्नी के दिमाग की
ना जानें कौन सी नस कुलबुलाई
उसने हमको
खूब खरी खोटी सुनाई
कोरोना की आड़ में
सारे दिन घर में पड़े रहते हो
हर एक घंटे के बाद
किचन में खडे़ रहते हो
सुबह उठते ही
खाने में लग जाते हो
खाते खाते थककर
फिर से सो जाते हो
खाना सोना,सोना खाना
इसीके चारों ओर घूमता है
तुम्हारी जिन्दगी का ताना बाना
कविंद्र जी को देखो
घर का सारा काम करते है
बीच बीच में कविताएं भी लिखते हैं
सारा मौहल्ला उनको जानता है
आदमी कम और कवि ज्यादा मानता है
हमको लगा,कोई पड़ोसन
हमारी पत्नि को भड़का रही है
या पत्नि समझदार हो गई है
हमको सही समझा रही है
कोरोना ने सबका भला किया है
अनपढ़ और मूर्ख लोगों को भी
कवि बना दिया है
हम तो फिर भी हाईस्कूल फेल हैं
हमारे लिए ये सब
बांए हाथ के खेल हैं
लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी
जब कुछ नहीं लिख पाया
हमने हिन्दी के प्रोफेसर
पड़ोसी को फोन लगाया
गुरु जी
व्याकरण और छंद का ज्ञान
हमारे अंदर उतार दो
कोई कविता लिखवा दो
और हमको इस संकट से उबार लो
गुरु जी बोले
ज्ञान के चक्कर में मत पड़ो
जैसा मैं कहता हूं,वैसा लिखो
शुरुआत मैं से करो
फिर जहां पर हो,वो लिखो
हमने कहा ,सड़क पर हूं
वे बोले बेधड़क,
लिख डालो सड़क
सामने क्या है
सामने एक सांड खड़ा है
फ़ौरन लिखो सांड
ये शब्द बहुत बढ़िया मिला है
आसपास क्या है
एक तरफ मंदिर
दूसरी तरफ अस्पताल
अगली लाइन में डाल दो
मंदिर और अस्पताल
अब शुरू से पढ़ो
मैं,सड़क,सांड
मंदिर और अस्पताल
आपकी ये कविता
मचा देगी धमाल
हमने कहा
ये भी कोई कविता है
ना कोई तुक है
ना कोई अर्थ निकलता है
गुरुजी बोले,ये वास्तविकता है
आजकल ऐसा ही माल बिकता है
दो चार भाड़े के टट्टू
अपने साथ रखना
वो वाह वाह करके सब संभाल लेंगे
रही अर्थ की बात
पढ़ने सुनने वाले
तुमसे ज्यादा समझदार हैं
कुछ ना कुछ अर्थ अवश्य निकाल लेंगे
✍️ डॉ पुनीत कुमार, मुरादाबाद 244001
M 9837189600
बहुत अच्छा व्यंग्य । बधाई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
हटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंवाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह, बहुत खूब लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद भाई ।
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