इतना सारा धुआं कहॉं से
सुबह सुबह ही आ जाता।
सूरज को भी ढक लेता है,
साफ नजर न कुछ आता।।
किसने घर के बाहर जमा,
कूड़े में आग लगायी है।
या खेतों में पड़ी पराली,
कृषकों ने सुलगायी है।।
इसके कारण दादीजी की
श्वांस फूलने लगती है।
बैठी रहती है खटिया पर
सोती है,न जगती है।।
दादाजी भी खूब खांसते,
हाय राम ये क्या संकट?
आंखों में भी जलन हो रही
आयी समस्या बड़ी विकट।।
मत जलाओ पराली कूड़ा,
धुंअॉ न इतना फैलाओ।
पर्यावरण शुद्ध रखना है,
नयी तकनीकी अपनाओ।।
खाद बनाकर इनकी भईया
देना भूमि को भोजन।
पर्यावरण शुद्ध बनेगा,
स्वस्थ रहेगा जनजीवन।।
✍️डॉ.अनिल शर्मा अनिल
धामपुर, उत्तर प्रदेश
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अब काहे का रोना ,जब हो गया तुम्हें करोना ।
बाहर थे जब तुम जाते ,हम सब तुम को समझाते ।
हो गया जो था होना ,अब काहे का रोना ।।
गमछा गले में डाले , सबके तुम रखवाले ।
हो गई समाज की सेवा , मिल गया तुमको मेवा ।
अब अकेले ही तुम सब सहना , अब काहे का रोना ।।
समझाते थे तुमको सारे , मगर माने नहीं तुम प्यारे ।
अब तुमको ही सब सहना , पड़ेगा अस्पताल में रहना । मरीजों के संग तुम सोना , अब काहे का रोना ।।
जल्दी से घर को आना , बिल्कुल मत घबराना ।
कहती है तुम्हारी बहना ,हमारे लिए "तुम सब कुछ हो ना"
✍️ विवेक आहूजा
बिलारी, जिला मुरादाबाद
मोबाइल फोन नम्बर 9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
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एक बिल्ली का बच्चा एक दिन,
छोटा सा घर आया।
देख उसे मेरे गोलू का ,
नन्हा मन हर्षाया।।
उसका रंग काला सफेद था,
लगा बड़ा ही सुंदर।
म्याऊं ,म्याऊं का शोर मचाया,
उसने घर के अंदर।।
भूख प्यास से व्याकुल था वह,
लगा खूब चिल्लाने।
एक कटोरी लिया दूध ,
गोलू ने लगा पिलाने।।
दूध पिया सारा फिर भी,
वह चक्कर काट रहा था।।
भूख अभी बाकी थी ,
खाली बर्तन चाट रहा था।।
देख देख उसकी व्याकुलता ,
मन में दया समाई।
फेरा हाथ गोलू ने उस पर,
खिचड़ी उसे खिलाई।।
खा पीकर वह मस्त हो गया,
लगा शरारत करने।
देखी उसकी धमा चौकड़ी,
लोग लगे सब हंसने।।
कभी उछलता इधर उधर,
कभी गोदी में आ जाता।
घर वालोें का धीरे-धीरे,
जुड़ गया उससे नाता।।
चंचलता के कारण आखिर,
सबके मन वह भाया ।
बड़े प्यार से सबने उसका,
"औगी''नाम धराया ।।
एक दिन फिर"औगी''की सूरत
कहीं नजर न आई,।
ढूंढ ढूंढ कर हार गये सब ,
पड़ा न कहीं दिखाई।।
कई दिनों के बाद हटी गाड़ी,
तब देखा जाकर ।
औगी,मरा पड़ा बेचारा,
वहां रैट किल खाकर।।
याद में रोयेअपना गोलू ,
उसे भूल न पाता है।
प्रेम मिले तो मानव क्या,
पशुभीअपना हो जाता है।।
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
8218835 541
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देखो- देखो सर्दी आई
टोपा, मौजों की बारी लाई
सर्दी में जम जाते हाथ
किट किट कर बजते दांत
स्वेटर पहनना मुझे ना भाये
ना पहनू तो ठंड सताए
सन सन कर चलती हवा
सूरज दादा छिप जाते कहाँ
मम्मी मुझे रोज न नहलाना
गरम -गरम दूध पिलाना
सर्दी मुझको रास ना आती
खेलने पर भी पाबंदी लगाती
✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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बिल्ली बोली चूहे राजा,
क्यों मौसी से डरते हो,
निर्भय होकर घर-भर में,
क्यों नहीं कुलांचें भरते हो।
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छोड़ा मांसाहार कभी का,
छोड़ दिया अंडा खाना,
अब तो मुझे बहुत भाता है,
दाल - भात ठंडा खाना,
मेरी सच्ची बातों पर क्यों,
नहीं भरोसा करते हो।
बिल्ली बोली ----------------
मेरा मन करता है मैं भी,
साथ तुम्हारे नृत्य करूं,
साज उठाकरखुदको भी मैं,
सरगम में अभ्यस्त करूं,
फिरभी प्यारी मौसी से क्यों,
डर के मारे मरते हो।
बिल्ली बोली--------------
देखो मेरी कंठी - माला,
देखो राम दुपट्टा भी,
याद नहीं मैंने मारा हो,
तुम पर कभी झपट्टा भी,
मेरे सम्मुख खीर मलाई,
लाकर क्यों ना धरते हो।
बिल्ली बोली-------------
अब तो आँख मीच ली मैंने,
फिर काहे की शंका है,
धमा चौकड़ी खूब मचाओ,
बजा प्यार का डंका है,
मेरी गोदी में आने से,
तुम किसलिए मुकरते हो।
बिल्ली बोली---------------
सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली,
कितनी भोली बनती है,
एक आँख कर बंद, गौर से,
सबकी बोली सुनती है,
सुनो, शर्तिया मर जाओगे,
यदि तुम आज बिखरते हो।
बिल्ली बोली---------------
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
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कितने रंग बदलता बादल, समझ नहीं यह आता है ।
पूरब में नारंगी है तो, पश्चिम लाल दिखाता है ।।
उत्तर में नीला-भूरा सा, दक्षिण रंग जमाता है ।
बादल में क्या-क्या दिखता है, मानव समझ न पाता है ।। 1।।
आंँख-मिचौली खेलें तारें, शशि बादल से आता है ।
सुबह-सवेरे सूर्यदेव भी, बादल से उग आता है ।।
धरती को जब प्यास लगे तो, वर्षा तृप्त कराता है ।
उमड़-घुमड़ जब बादल आते, गड़गड़ ढ़ोल बजाता है ।। 2।।
कितने ग्रह हैं इस बादल में, समझ नहीं यह आता है ।
बिजली भी चमकाता बादल, कितने रंग दिखाता है ।।
धुंँआ-धुंँआ कहते बादल को, मेरा सिर चकराता है ।
तेरी माया तू ही जाने, भगवन जो दिखलाता है ।। 3।।
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर, उत्तर प्रदेश
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चमको चमको तारे बनकर,
जगमग कर दो घर और बाहर।
बिखरो फूल सी खुशबू बनकर।
महक उठे हर एक का घर, दर।
बढ़ते जाओ बढ़ते जाओ,
मन मे न हो बिल्कुल भी डर।
दूर गगन में तुम हो आओ,
पंछी और परियों सा उड़कर।
हिम्मत कभी न डिगने देना,
घोर मुसीबत में भी घिरकर।
खूब बड़ा बनना है तुमको,
मेहनत से ही लिखकर पढ़कर।
सपने जो देखे थे तुमने,
समय हुआ उनको पूरा कर।
अवरोधों से न डर बिल्कुल,
मार दे सबको जोर की ठोकर।
काम जो दिल मे ठान लिया है,
उसको पूरा कर पूरा कर ।, खुशियां सबके मुख पर ला दो,
खुद हंसकर और सबको हँसाकर।
✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल
बरखेड़ा (मुरादाबाद)
9456031926
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बच्चे प्यारे प्यारे,
होते राजदुलारे,
ये वो नन्हें फूल है,
मत मुरझाने देना प्यारे,
अपने आप में रहते मस्त,
हो कर एक दूसरे के बस,
भेद भाव का काम नहीं,
इनके यहाँ आराम नहीं,
✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
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