शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ----शांति


"एक  कप चाय बना देना जरा।" ऑफिस से दिन भर काम करके आए हुए शर्मा जी ने अपनी पत्नी की तरफ देख कर प्यार से  कहा।

 "हां ठीक है"  श्रीमती जी ने हामी भरी और कहा "आप जल्दी से यह सामान ला कर दो और देख लेना लिस्ट ठीक से चेक कर लेना कोई सामान रह ना जाए तुम तो हमेशा  कुछ ना कुछ भूल ही जाते हो" कहते हुए श्रीमती जी ने सामान की लिस्ट शर्मा जी के हाथ में पकड़ा दी।

 चाय पीने की इच्छा तो काफूर हो गई बेचारे सामान की लिस्ट लेकर बाहर निकल गए। सारा सामान लेकर शर्मा जी डेढ़ घंटे बाद पुनः घर में प्रवेश करते हैं। चीख-पुकार की आवाज आती है श्रीमती जी की "पूरे दिन बच्चे मेरा दिमाग खा जाते हैं। मैं तो थक जाती हूं परेशान हो जाती हूं और एक काम वाली है उसको भी बार बार बताना पड़ता है कि काम ठीक तरीके से किया कर लेकिन नहीं साहब यहॉं सभी लाट साहब बने हुए हैं। मैं हीं घर में पिसती हूं पूरा दिन बच्चे देखूं, काम देखूं, कपड़े देखूं, खाना देखूं और एक ये है कि इन्हें ऑफिस से आते ही चाय सूझने लगती है।" यह सब बोलते हुए श्रीमती जी बच्चों के ऊपर अच्छा खासा गुस्सा निकाल रही थी।  पर पता नहीं गुस्सा किस बात का था। यह तो उनका प्रतिदिन का नियम सा था  कि सब के ऊपर चीख चीखकर अपनी थकान जैसे मिटा रही हो।  

शर्मा जी चुपचाप सारा सामान किचन में रखकर अतिथि कक्ष में चुपचाप शांति की अपेक्षा में बैठ  जाते हैं । आंखें बंद करके अपने ही घर में एक ऐसा कोना ढूंढते हैं जहां उन्हें कुछ क्षण शांति के मिल सके पर अफसोस पुन:  श्रीमती जी की आवाज आती है कहां गए अभी इसे रोहन को संभालो तो मैं खाना बना दूं जल्दी से़़़़़़़़़़़।

✍️मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-11-2020) को    "पर्यावरण  बचाना चुनौती" (चर्चा अंक- 3872)        पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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  2. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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