रविवार, 1 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना --- बाकी


आँखो से उस पार ,देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

तम को चीरता प्रकाश ,अभी उसका गन्तव्य बाकी है ।

बाकी हैं, अभी और वो बहुत सारी मंजिले ।

उन मंजिलो का रहनुमा बनना अभी बाकी है ।

आँखो से उस पार ,देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

शायद इस बाकी में ही इस जीवन की सत्यता है।

तभी तो सब कुछ पाने के बाद भी कुछ बाकी है ।

माना हसरतें कभी किसी की पूरी नही होतीं।

और पूरी होने के बाद भी कुछ बाकी हैं।

आँखो से उस पार, देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है।

समय -समय की बात है ,समय -समय के साथ है ।

तभी तो समय के साथ बहुत कुछ बदलना बाकी है ।

बाकी हैं, वो बात जो अभी बाकी हैं।

तेरी -मेरी हम सबकी बात अभी बाकी हैं।

आँखो से उस पार ,देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

कहने को तो बहुत कुछ कहना अभी बाकी है ।

स्मृतियों के धुंधले पटल पर वो निशां अभी बाकी हैं।

बाकी है,उन स्मृतियों का फिर से विश्लेषण।

लौट के आ जाना वो बीता समय और ,समय के साथ उन बीते लम्हों में जीना अभी बाकी है।

आँखो से उस पार, देखा है मैने सब कुछ ।

कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोना बाकी है ।

किसी का कुछ देना बाकी है ,किसी का कुछ लेना बाकी है ।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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